वाराणासी में नवरात्र के चौथे दिन माता कुष्मांडा देवी के दर्शन का विधान है. यह मंदिर वाराणसी के दक्षिण क्षेत्र में देवी दुर्गा कुष्मांडा रूप में विराजमान हैं. मंदिर से लगे कुंड को दुर्गा कुंड कहा जाता है. यह अत्यंत ही प्राचीन दुर्गा मंदिर है. यह मंदिर नागरी शैली में निर्मित है। मन्दिर का इतिहास काफी पुराना है. मन्दिर के बारे में मान्यता है कि यह मानव निर्मित नही अपितु स्वयं ही प्रकट हुवा था. नवरात्र में इस मन्दिर में हजारों श्रद्धालु बड़ी ही संख्या में आते हैं. ऐसा कहा जाता है कि नवरात्र में माता के दर्शन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती हैं.
नवरात्रि के चौथे दिन दुर्गाकुंड स्थित माता कुष्मांडा देवी के दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ अहले सुबह से ही लगनी शुरू हो जाती हैं. यहां लाल फूल, चुनरी, नारियल लेकर भक्त माता के दर्शनों के लिए लंबी कतारों में शामिल होकर जयकारा लगाते हैं. मन्दिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण कई राजाओं द्वारा कराया गया है.
देवी भागवत के अनुसार दुर्गा ने यही पर द्वापर युग में काशिराज कि कन्या अम्बा को दर्शन दिया था और भीष्म पितामह कि मृत्यु का कारण होने का वरदान दे दिया था. वहीं अम्बा अगले जन्म में शिखंडी के रूप में महाभारत युद्ध में पितामह भीष्म कि मृत्यु का कारण बनी और युद्ध का पासा ही पलट गया. पुराणों के अनुसार काशी कि रक्षा के लिए काशीराज कि तपस्या से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा स्वयं मूर्ती रूप में यही स्थापित हो गयी थी.
काशी खण्ड के अनुसार शिव कि नगरी काशी में शक्ति कि पूजा भी कुछ विशेष होती है. ऐसा माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ और काशी का दर्शन पूजन तबतक अपूर्ण रहता है जब तक कि माँ दुर्गा का दर्शन ना कर लिया जाये. माता को प्रसन्न करने के लिए नारियल की बलि दी जाती हैं. माता के दर्शन नवरात्र में करने आने वाले भक्तों पर माता धन – वैभव- सुख- समृद्धि की कृपा करती हैं.
इनपुट : विपिन कुमार