फ़िल्म-बंदों में था दम
स्पोर्ट्स डॉक्युमेंट्री- बंदों में था दम
निर्देशक- नीरज पांडे
प्लेटफार्म-वूट सिलेक्ट
रेटिंग-तीन
क्रिकेट को आधार बनाकर अब तक कई हिंदी फिल्मों की कहानी ने रुपहले पर्दे पर दस्तक दी है,वूट सिलेक्ट पर आयी स्पोर्ट्स डॉक्युमेंट्री बंदों में था दम, क्रिकेट और क्रिकेटर्स की कहानी होते हुए कई मायनों में अलग है. इसका डॉक्युमेंट्री फ़ॉर्मेट इसमें नया रंग भरता है.कुछ खामियों के बावजूद यह कोशिश भारतीय सिनेमा के परिपेक्ष्य में नयी है,जो निश्चित रूप से नए संभावनाओं के दरवाजे खोलेगी,जिसमें क्रिकेट ही नहीं, दूसरे स्पोर्ट्स की ऐतिहासिक जीत और उससे जुड़े खिलाड़ियों के अनुभवों को डॉक्युमेंट्री फॉरमेट में हमेशा के लिए दस्तावेज की जा सकती है. जो मनोरंजन के साथ साथ युवाओं को एक नए जोश से भी भरेगी.
बंदों में था दम की बात करें,तो यह स्पोर्ट्स डॉक्युमेंट्री भारतीय क्रिकेट टीम के साल 2020-21 की उस ऐतिहासिक जीत की कहानी कहती है,जिसमें दुनिया की नंबर 1 टेस्ट टीम, ऑस्ट्रेलिया को उसी की सरजमीं पर मात मिली थी. खास बात है कि इस ऐतिहासिक जीत में भारतीय क्रिकेट के वो खास नाम नहीं थे,जिनके बिना हम किसी भी जीत की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. एक युवा भारतीय क्रिकेट टीम के साहस, समर्पण, कड़ी मेहनत और खेल भावना की कहानी को मैच के फुटेज ,खिलाड़ियों और पत्रकारों के इंटरव्यू के ज़रिए दर्शाया गया है.
चार एपिसोड के ज़रिए इस ऐतिहासिक जीत की कहानी को कहा गया है, ये चारों एपिसोडस के नाम जेम्स बांड की फिल्मों से प्रेरित है.आखिरकार भारतीय युवा क्रिकेट खिलाड़ियों की यह जांबाजी की कहानी जेम्स बांड की फ़िल्म से कम दिलचस्प नही थी. सीरीज को चार एपिसोडस में सीमित रखना इस डॉक्यु सीरीज की अच्छे पहलुओं में से एक है ,बेवजह खींचा नहीं गया है. ऑन-फील्ड और ऑफ-फील्ड खिलाड़ियों की गंभीर चोटें, अपनों के खोने का दर्द, क्वारन्टीन पीरियड में टीम इंडिया का बाहर निकलना,पिंक बॉल जैसे कई विवाद शामिल थे, उन पक्षों को उजागर किया गया.प्लेयर्स के दिमाग में उस वक़्त क्या कुछ चल रहा था.कैसे वो खुद को मोटिवेट कर रहे थे.किस तरह से वे मिलकर रणनीति तैयार कर रहे थे.यह सभी पहलू सीरीज को दिलचस्प बनाता है.सीरीज के हर एपिसोड क्रिकेट खिलाड़ियों के जज्बे को दिखाता है.
अंडर डॉग से चैंपियन बनने की इस डॉक्यूमेंट्री सीरीज की बात करें तो असल सीरीज से जितना ड्रामा जुड़ा हुआ था.वह उसके नरेशन में इस कदर प्रभावी नहीं आ पाया है कि नॉन क्रिकेट लवर्स इस सीरीज से जुड़ पाएं.हो सकता है कि मेकर्स की यह कोशिश रही हो कि ज़्यादा ड्रामा ना डाला जाए,लेकिन यह सीरीज देखते हुए आपको वो ड्रामों की कमी खलती है.कई क्रिकेटर्स उस तरह से हालात को अपने शब्दों में बयां नहीं कर पाएं हैं कि आप थम जाए या चकित रह जाए .जिम्मी शेरगिल सीरीज में नरेटर की भूमिका में हैं.वे औसत रहे हैं.सीरीज के बैकग्राउंड म्यूजिक पर भी काम करने की थोड़ी ज़रूरत थी.
अगर किसी कारण आपने यह टेस्ट सीरीज मिस कर दी थी,तो इस वेब सीरीज के ज़रिए आप उन पलों को जी सकते हैं. अगर आपने सीरीज देखी थी ,तो यह फिर आपको उन पुरानी यादों को ताजा कर जाएंगी. कुलमिलाकर यह सीरीज क्रिकेट फैंस के लिए एक ट्रीट की तरह है.