कोल माइंस का पानी छोड़ने से पाकुड़ की बांसलोई नदी हुई काली, DC ने गठित की जांच टीम
पाकुड़ में गंगा की प्रमुख सहायक नदी बांसलोई की पानी काली हो गयी है. कारण है कोल माइंस से कोयले का काला पानी को नदी में बहाया जाना. इस मामले को डीसी से गंभीरता से लेते हुए जांच टीम गठित की है. वहीं, DBL कोल कंपनी ने नदी में काला पानी बहाने से इनकार किया है.
Jharkhand News: पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड क्षेत्र से होकर गुजरने वाली बांसलोई नदी एक तो अस्तित्व के संकट से गुजर रही है, उस पर से नदी में कोयले का पानी छोड़ने से स्थिति और भी भयावह होती जा रही है. मालूम हो कि पचुवाड़ा सेंट्रल कोल ब्लॉक में कार्य तेजी से चल रहा है. सेंट्रल कोल ब्लॉक में काफी वर्षों से पानी जमा था, जिसे निकाला जा रहा है. यह पानी निकाल कर नदी में ही बहाया जा रहा है. हाल के दिनों में कोल कंपनी ने कोल माइंस में विस्फोट कर कोयले का उत्खनन भी शुरू कर दिया है. ऐसे में बारिश होने से कोयला मिश्रित पानी बहकर नदी में मिल रहा है, जिससे नदी का पानी पूरी तरह काला हो गया. इस संबंध में डीसी वरुण रंजन ने एक जांच टीम का गठन किया है. एसडीओ के नेतृत्व में बनायी गयी जांच टीम को दो दिन में जांच रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है.
क्या है मामला
मालूम हो कि अमड़ापाड़ा बाजार के ग्रामीण बांसलोई नदी के किनारे स्थित मंदिर में पूजा करने गए थे, लेकिन सुबह-सुबह नदी का पानी बिल्कुल काला देखकर चौंक उठे. पानी इतना काला था कि लोगों ने पूजा के लिए नदी से पानी नहीं लिया. वहीं, सुबह-सुबह जो लोग नदी में नहाने गए थे वे भी काला गंदा पानी के कारण नहा नहीं पाये. जिसको लेकर ग्रामीणों में काफी आक्रोश देखा गया. ग्रामीणों में बताया कि नदी में कोल माइंस का काला पानी छोड़ने के कारण नदी का पानी बिल्कुल काला हो गया है.
DBL ने काला पानी नदी में बहाने से किया इनकार
बता दें गंगा की प्रमुख सहायक नदी बांसलोई है. ऐसे में बिना पानी को साफ किये कोयला खदान से निकलने वाले पानी का नदी में मिलना गंभीर चिंता का विषय है. इस संबंध में सेंट्रल कोल ब्लॉक में काम कर रही कोल कंपनी डीबीएल के प्रोजेक्ट मैनेजर साव्यसाची मिश्रा ने बताया कि नदी में कोयला खदान से निकलने वाला पानी तो जाता है, लेकिन बरसात में पर्यावरण भी थोड़ा बहुत छूट देता है. अभी नदी में काला पानी नहीं बह रहा है. हमलोग सप्ताह में दो बार पानी की जांच रिपोर्ट वन विभाग और जिला प्रशासन को देते हैं. उसके बाद ही पानी को नदी में बहाया जाता है.
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नदी में कोयले का काला पानी बहना चिंताजनक : वन प्रमंडल पदाधिकारी
इस संबंध में वन प्रमंडल पदाधिकारी रजनीश कुमार से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि पिछले पांच सप्ताह से कोल कंपनी डीबीएल की ओर से किसी भी तरह की पानी की जांच की कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी गयी है. नदी में कोयले का काले पानी का बहना काफी चिंताजनक है. इसकी जांच कर आगे की कार्रवाई की जाएगी.
बेहद गंभीर मामला : रवि कुमार
वहीं, पर्यावरण विभाग के साइंटिफिक पदाधिकारी रवि कुमार ने बताया कि पचुवाड़ा सेंट्रल कोल कंपनी से पानी निकाल कर नदी में पानी बहाया जा रहा है. इसको लेकर पर्यावरण विभाग से किसी भी तरह की स्वीकृति कोल कंपनी द्वारा नहीं ली गई है. यह बेहद गंभीर मामला है. इस पर जांच कर मामले का पता लगाया जाएगा.
जलीय जीवों की मौत का कारण बन सकता है कोयले का काला पानी
इस संबंध में पर्यावरणविद् प्रो प्रसेनजीत मुखर्जी ने बताया कि कोयले के पानी का नदी में बहना काफी चिंताजनक है. यह नदी में रहने वाले जलीय जीवों की मौत का कारण बन सकता है. पीएच, आर्सेनिक, आयरन और हैवी मेटल की मात्रा बढ़ जाएगी. मछलियों में स्वसन दर बढ़ जाएगा. जिससे उनपर प्रतिकूल प्रभाव बढ़ जाएगा. इससे नदी के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. पानी का गुण रंगहीन, स्वादहीन और गंधहीन होता है. ऐसे में यह जल प्रदूषण का बड़ा गंभीर मामला है. क्योंकि बांसलोई संथाल परगना की प्रमुख नदी है. जिसके आस-पास सौकड़ों गांव और लाखों लोग निवास करते हैं. ऐसे में ना ये नदी के साथ किया गया गंभीर खिलवाड़ है बल्कि जलीय जीवों, जानवरों और मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी इसका गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है. उपचारित पानी को ही नदी में छोड़ना चाहिए.
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रिपोर्ट : रमेश भगत, पाकुड़.