Basant Panchami 2021, Jharkhand News, Hazaribagh News, बड़कागांव (संजय सागर) : ऋतुराज वसंत ऋतु का आगमन होते ही प्रकृति बसंती रंग से सराबोर होना शुरू हो गया है. हवाएं भी इठलाने लगी है. ग्रामीण क्षेत्रों में सरसों के फूल, जंगल, झाड़ और पलाश के फूल लोगों को बरबस ही लुभाने लगे हैं. माघ के महीने की पंचमी को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. मौसम का सुहाना होना इस मौके को और रूमानी बना देता है. बसंत पंचमी को श्री पंचमी तथा ज्ञान पंचमी भी कहते हैं.
बसंत कामदेव का मित्र है, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है. इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है यानी जब कामदेव कमान से तीर छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नहीं होती है. कामदेव का एक नाम ‘अनंग’ यानी बिना शरीर के यह प्राणियों में बसते हैं. एक नाम ‘मार’ है यानी यह इतने मारक हैं कि इनके बाणों का कोई कवच नहीं है. बसंत ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है. इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है.
गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की अगन को और भड़काता है. तापमान न अधिक ठंडा, न अधिक गर्म. सुहाना समय चारों ओर सुंदर दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक ये सब प्रीत में उत्साह भर देते हैं. यह ऋतु कामदेव की ऋतु है. यौवन इसमें अंगड़ाई लेता है. दरअसल बसंत ऋतु एक भाव है जो प्रेम में समाहित हो जाता है. प्रेम के साथ ही बसंत का आगमन हो जाता है. जो प्रेम में है वह दीवाना हो ही जाता है. प्रेम का गणित मस्तिष्क की पकड़ से बाहर रहता है. इसलिए प्रेम का प्रतीक हृदय के चित्र में बाण चुभा बताता है.
बसंत ऋतु में वातावरण इतना सुवासित व सुमधुर होता है कि संपूर्ण जनमानस इसे ‘ऋतुराज’ की संज्ञा देते हैं. ऋतुराज बसंत वास्तविक रूप में ऋतु शिरोमणि है. ऋतुराज बसंत का आगमन बच्चे, बूढ़े, युवक आदि प्रत्येक वर्ग के लोगों के लिए सुखदायी होता है. इसके अगमन से पूर्व शरद ऋतु की भीषण ठंड दूर हो जाती है. शरद ऋतु की कंपन से दूर यह ऋतु सृष्टि में नवीनता का प्रतिनिधि बनकर आती है. इसके आगमन के समय वातावरण में न विशेष गरमी होती है और न ही ठंड. हर ओर सुवासित वायु लोगों के मन को आकृष्ट करती है.
ऋतुराज बसंत के आगमन पर संपूर्ण धरती मानो खुशी से झूम उठती है. पेड़-पौधे, फूल-पत्तियां आदि सभी ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे बसंत के आगमन पर खुशी में नृत्य कर रहे हैं. वन, उपवन, गली-कूचे, गांव, घर सभी ओर बसंत ऋतु की छटा देखते ही बनती है. इस ऋतु में पूरी धरती पर हरियाली छा जाती है. धरती पर बिछी हरी-हरी घास व वातावरण में सब ओर नवीनता मन को अत्यधिक प्रफुल्लित करती है.
बसंत ऋतु काल में वृक्षों पर नये पत्ते आ जाते हैं जो प्राय: शीत ऋतु में झड़ गये होते हैं. उपवनों में नये-नये रंग- बिरंगे पुष्पों के खिलने का समय भी बसंत ऋतु ही होता है. इन आकर्षक फूलों की सुंदरता देखते ही बनती है. दिल्ली का मुगल गार्डन भी तरह- तरह के आकर्षक एवं खुशबूदार पुष्पों के लिए प्रसिद्ध है. यह वर्ष भर में इसी अवधि में जन साधारण के लिए खुलता है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.
बसंत ऋतु के आगमन पर आम के वृक्ष बौर से लद जाते हैं. चारों ओर कोयल की मधुर कुक सभी का मन मोह लेती है. इसी समय सरसों की फसल भी फूलती है. खेतों में चारों ओर पीली सरसों ऐसी प्रतीत होती है जैसे प्रकृति ने पूरी धरती पर पीली ओढ़नी डाल दी है.
जब सुवासित वायु के संपर्क से यह फसल झूमती है, तो कृषकों का मन यह सब देखकर फूले नहीं समाता है. इसी प्रकार प्रकृति की सुंदरता उस समय देखते ही बनती है जब प्रात:काल धरती पर बिछी हुई घास पर ओस नहीं, बल्कि मोती बिखरे होते हैं. ऐसे मादक वातावरण में कवि का हृदय भी झूम उठता है.
‘आज इस यौवन के माधवी कुंज में कोकिल बोल रहा! मधु पीकर पागल हुआ, करता प्रेम–प्रलाप’.
इस ऋतु में पड़ने वाले हिंदुओं के प्रमुख पर्व होली व रामनवमी सभी के लिए विशेष महत्व रखते हैं. रंगों का त्योहार होली खुशियों के अनेक रंग भारतीय जनमानस के लिए लाता है. सभी इस त्योहार में अपने वैमनस्य को भुलाकर गले मिलते हैं व खुशी मनाते हैं. हिंदुओं की पौराणिक मान्यता है कि समस्त देवगण भी इसी ऋतु में धरा पर अवतरित होते हैं. लोग पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ चैत्र नवरात्रि में व्रत व उपवास रखते हैं. कई स्थानों पर मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है.
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह ऋतु श्रेष्ठ होती है. चारों ओर हरियाली व सुहावने वातावरण से मनुष्य में एक नयी स्फूर्ति व चेतना का विकास होता है. कवियों और साहित्यकारों के लिए बसंत ऋतु अत्यधिक महत्वपूर्ण है. प्रकृति की अनुपम छटा उनके लिए प्रेरणास्त्रोत बनती है.
Posted By : Samir Ranjan.