फ़िल्म – बवाल
निर्माता – साजिद नाड़ियादवाला
निर्देशक – नितेश तिवारी
कलाकार – वरुण धवन, जाह्नवी कपूर, मनोज पाहवा, हेमंग व्यास,प्रतीक पचौरी और अन्य
प्लेटफार्म – अमेजॉन प्राइम वीडियो
रेटिंग – तीन
चिल्लर पार्टी, दंगल, छिछोरे जैसी फ़िल्में बना चुके निर्देशक नितेश तिवारी की बवाल प्रेम कहानी है. रुपहले पर्दे पर अलग कहानियों को तरजीह देने वाले नितेश तिवारी ने अपनी इस प्रेम कहानी वाली फिल्म को सेकेंड वर्ल्ड वॉर से जोड़ा गया है. जो इसे बॉलीवुड में रिश्तों पर बनी अब तक की कहानियों से अलहदा कर गया है. इंसान के मन के अंदर चल रही लड़ाई और लालच तानाशाह हिटलर और सेकेंड वर्ल्ड वॉर से अलग नहीं है. फिल्म बखूबी इस बात में सामंजस्य बिठाती है. कुछ खामियों के बावजूद फिल्म अपने एंटरटेनमेंट के मकसद में कामयाब होते हुए एक सन्देश भी दे जाती है. जो निर्देशक नितेश तिवारी की फिल्मों की खासियत होती है.
फिल्म की कहानी अजय उर्फअज्जू भैया (वरुण धवन) की है. अज्जू एक टीचर है, फिल्म के पहले 5 मिनट में अज्जू के प्रोफेशन और व्यक्तित्व को जिस तरह से स्क्रीन को ब्लैक एंड वाइट से रंगीन कर गया है. वह बता गया है कि अज्जू के लिए तरह से बदला जाता है. वह यह बता जाता है कि इमेज ही सब कुछ है. उसने निशा से शादी की है, जो एक मिर्गी की बीमारी से जूझ रही है.निशा की यह बीमारी अज्जू की बनी बनायीं इमेज को ख़राब कर सकता है. निशा उसके लिए डिफेक्टिव पीस है, इसलिए वह निशा से दूरी बना लेता है. दोनों की शादी तलाक तक पहुंच जाती है,लेकिन कहानी में हालात कुछ ऐसे बनते है कि दोनों को एक साथ यूरोप टूर पर जाना पड़ता है.इस दौरान क्या ये एक-दूसरे के करीब आ पाएंगे. इनकी शादी बच जाएगी. अज्जू की इमेज का क्या होगा. यही आगे की कहानी है.
स्क्रिप्ट की खूबियां खामियां
फिल्म की कहानी पढ़ने के बाद आपको यह फिल्म आम रिश्तों की कहानी का एहसास कराएगी, लेकिन फिल्म को देखते हुए ऐसा नहीं लगेगा. कहानी अलहदा है. वर्ल्ड वॉर 2 को वर्त्तमान से जोड़ा गया है. अधिक चाहने के लालची गुण की तुलना दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर के लालच से करना, खुद को द्वितीय विश्व युद्ध के दुखद प्रसंगों के बीच खुद को खोजना.युद्ध जैसे बुरे हालात नहीं है, तो फिर क्यों हम ख़ुशी से जिंदगी नहीं जी रहे है.कहानी बहुत प्रभावी ढंग से किरदारों की मनस्थिति को सामने लेकर आती है.नितेश तिवारी की फिल्मों में हास्य हमेशा ही कहानी में अहमियत रखता रहा है. यह फिल्म भी इससे अलग नहीं है. गुजराती किरदार हेमंग व्यास ने कहानी को अपनी मौजूदगी से इंटरटेनिंग बनाया है. वरुण के दोस्त प्रतीक पचौरी का किरदार भी दिलचस्प है.खामियों की बात करें तो फिल्म में थोड़े इमोशन की कमी रह गयी है. जाह्नवी के किरदार से उस तरह का कनेक्शन नहीं जुड़ पाता है, जैसी कहानी की जरूरत थी. फिल्म फर्स्ट हाफ में थोड़ी खींच गयी है.मूल कहानी पर सेकेंड हाफ में आती है. स्कूल का बवाल कहानी में कुछ खास नहीं जोड़ पाया है.फिल्म का गीत संगीत औसत रह गया है. फिल्म का संवाद ज़रूर इस प्रेम कहानी के साथ न्याय कर गया है.फिल्म की सिनेमाटोग्राफी कहानी के अनुरूप है.
अभिनेता के तौर पर वरुण धवन पूरी सहजता और हास्य के साथ अपने किरदार को जिया है .जाह्नवी कपूर अपने किरदार के साथ न्याय करती है, लेकिन उनका किरदार अधपका सा है.शादी से पहले वह आत्मविश्वास से भरी इंडिपेंडेंट लड़की लगती है, लेकिन शादी के बाद घर में वह एकदम से उनका किरदार अलग दिखता है फिर यूरोप टूर में फिर वह बदली नज़र आती हैं. मनोज पाहवा, हेमंग व्यास, प्रतीक पचौरी बेहतरीन रहे हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपनी भूमिका में जमें हैं.