फ़िल्म – रॉ (बीस्ट)
निर्देशक- नेल्सन दिलीप कुमार
कलाकार- विजय थलपति, पूजा हेगड़े,योगी बाबू और अन्य
रेटिंग- दो
साउथ फिल्मों के सुपरस्टार विजय थलपति की फ़िल्म बीस्ट अपनी रिलीज से पहले ही सुर्खियां बटोर रही थी क्योंकि इस फ़िल्म को कई इस्लामिक देशों ने अपने देशों में रिलीज करने से मना कर दिया है.यह फ़िल्म इस्लामिक आतंकवाद पर थी.उम्मीद थी कि अभिनेता विजय और निर्देशक नेल्सन की जुगलबंदी आतंकवाद की कोई नयी कहानी कहेगी लेकिन इस फ़िल्म की कोई कहानी ही नहीं बल्कि कई होस्टेज ड्रामा फिल्मों का इसे कॉकटेल कहा जा सकता है .
हॉलीवुड फिल्म डाई हार्ड से लेकर हालिया रिलीज जॉन अब्राहम की फ़िल्म अटैक की याद यह फ़िल्म दिलाता है.जिसमें पाकिस्तानी आतंकवाद के घिसे पिटे फॉर्मूले को जोड़ दिया गया है .
हिंदी दर्शकों को ध्यान में रखते हुए तमिल की बीस्ट हिंदी में रॉ शीर्षक से रिलीज हुई है.कॉकटेल कहानी वाली इस होस्टेज ड्रामा फ़िल्म की कहानी वीर राघवन (विजय थलपति) एक रॉ एजेंट है.जो एक हादसे के बाद रॉ की नौकरी छोड़ चुका है.हालात ऐसे बनते हैं कि वह एक सिक्योरिटी एजेंसी में नौकरी करने के लिए राजी हो जाता है और वह अपने नए बॉस और लेटेस्ट प्रेमिका ( पूजा हेगड़े)के साथ मॉल में जाता है और मॉल में आतंकी हमला हो जाता है .वहां मौजूद सभी लोगों को होस्टेज बना लिया जाता है और मांग की जाती है कि आतंकियों के सरगना को भारत की जेल से रिहा कर दिया जाए.
अब हीरो मॉल में है तो वो बचाएगा भी. वह बचा भी लेता है लेकिन जिस तरह से वह सभी को बचाता है.वो बहुत ही बचकाना है. कहानी को घसीटा गया है.कभी भी कुछ भी हो रहा है.होस्टेज का मास्टरमाइंड और उसके आतंकी बेहद कमजोर हैं दिमाग से नहीं हर पहलू में जबकि किसी होस्टेज ड्रामा की सबसे बड़ी जरूरत एक खूंखार खलनायक होता है.फ़िल्म से लॉजिक के साथ साथ इमोशन भी गायब है.किरदार और कहानी से आप कनेक्ट ही नहीं हो पाते हैं.
अभिनय की बात करें तो विजय ने इस कमज़ोर कहानी को अपने अभिनय और स्टाइलिश एक्शन से एंगेजिंग बनाने की बहुत कोशिश की है लेकिन परदे पर उनकी कोशिश कामयाब नहीं हो पायी है.पूजा हेगड़े फ़िल्म में खूबरसूरत भर ही नज़र आईं हैं क्योंकि उनके करने को कुछ खास नहीं था.सेल्वराघवन होस्टेज निगोशिएटर के किरदार को अच्छे ढंगे से निभाया है.योगी बाबू और सहित बाकियों ने अपनी कॉमेडी से अलग रंग फ़िल्म में भरने की कोशिश की है .
गीत संगीत के पहलू पर गौर करें तो हलमिथि हबीबी पहले ही हिट हो चुका है बाकी के गानों की पिक्चराइजेशन अच्छी है लेकिन वह प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी के अनुरूप है. हिंदी संवादों पर थोड़ी और मेहनत करने की ज़रूरत थी. कुलमिलाकर विजय थलपति की यह फ़िल्म निराश करती है.