15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Bengal Chunav 2021: सोशल मीडिया के जमाने में दीवार लेखन का रंग पड़ रहा फीका

Bengal Chunav 2021: चुनाव के समय दीवारों पर एक से बढ़कर एक चुभते नारे और व्यंग्य लिखे जाते थे. इससे विरोधी दल के लोग तिलमिला उठते थे, तो आम लोग उसका आनंद लेते थे. इस काम में सिद्धहस्त कलाकारों की बाकायदा एक जमात थी.

  • प्रचार के अन्य साधनों का सहारा ले रहे राजनीतिक दल

  • बंगाल के चुनाव में कभी प्रचार का सशक्त साधन था दीवार लेखन

  • चुनाव के समय चुभते नारों और व्यंग्य से सज जाती थीं दीवारें

दुर्गापुर : बंगाल में चुनावी माहौल है. चुटीले नारों और चुभते कार्टूनों वाली दीवार लेखन की कला अब दम तोड़ती दिख रही है. चुनाव प्रचार के दूसरे साधनों की बाढ़ और सोशल मीडिया के बढ़ते असर ने इस कला को पीछे धकेल दिया है. नब्बे के दशक तक राज्य में तमाम मुद्दे इन दीवारों पर उभर आते थे.

वह चाहे ट्रेड यूनियन की हड़ताल हो या फिर केंद्र के खिलाफ तब की सरकार के व्यंग्य बाण. तब चुनाव के समय दीवारों पर एक से बढ़कर एक चुभते नारे और व्यंग्य लिखे जाते थे. इससे विरोधी दल के लोग तिलमिला उठते थे, तो आम लोग उसका आनंद लेते थे. इस काम में सिद्धहस्त कलाकारों की बाकायदा एक जमात थी.

जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी ने तरक्की की, दीवार लेखन का रंग फीका पड़ने लगा. अभी भी दीवार लेखन किया जा रहा है, लेकिन वह पहले के चुनावों की तुलना में काफी कम है. बंगाल में दीवार लेखन की कला बहुत पुरानी है. चुनाव हो या कोई राजनीतिक रैली, तमाम दल दीवारों पर ही अपने एजेंडा का प्रचार करते थे.

Also Read: नारों और ‘पैरोडी’ से चुनाव प्रचार कर रहे बंगाल के राजनीतिक दल, CPM का ‘लुंगी डांस’ हुआ Viral
चुनावों में सतरंगी हो जातीं थीं दीवारें

दीवार लेखन के जरिये राजनीतिक पार्टियां लोगों से सीधे संपर्क में आ जातीं थीं, जबकि इस कला से जुड़े लोगों की अच्छी-खासी कमाई हो जाती थी. चुनावों के दौरान तो तमाम दीवारें सतरंगी हो जाती थीं. समय बदलने के साथ चुनाव प्रचार के दूसरे तरीके इस पारंपरिक प्रचार पर हावी हो गये.

इन दिनों प्रचार के लिए पोस्टर और बैनर का काफी सराहा लिया जा रहा है. आसानी से उपलबद्ध हो जाने के कारण इनका प्रयोग लोग अधिक कर रहे हैं. वहीं, चुनाव प्रचार के लिए पार्टियों ने सोशल मीडिया पर जोर देना शुरू कर दिया है. फलस्वरूप दीवार लेखन की विशिष्ट कला अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है.

Also Read: ममता बनर्जी का ‘चोट’ से है पुराना नाता, कई बार हमले झेल चुकीं हैं बंगाल की ‘अग्निकन्या’
सोशल मीडिया पर प्रचार है सस्ता

दीवार पर चुनाव प्रचार तो अब भी हो रहा है, लेकिन यह सांकेतिक ही है. नेताओं का मानना है कि समय के साथ बदलना जरूरी है. अब सोशल मीडिया दीवार लेखन से ज्यादा असरदार है. सोशल मीडिया का असर और पहुंच अधिक है. सबके पास मोबाइल है. दीवार लेखन के मुकाबले सोशल मीडिया पर प्रचार सस्ता भी है और त्वरित भी.

कलाकारों की कमी

दीवार लेखन का क्रेज धीरे-धीरे कम होने की वजह यह है कि दीवार लेखन के कलाकार भी कम हो रहे हैं. दीवार लेखन का काम करनेवाले ज्यादातर कलाकार अब पोस्टर-बैनर और दूसरे धंधे में लग गये हैं. पहले हर राजनीतिक दल में कुछ ऐसे लोग होते थे, जिनका काम ही था साल भर ताजातरीन मुद्दों पर नारे और व्यंग्य लिखना. अब ऐसे लोगों की संख्या काफी कम हो गयी है. यही वजह है कि दीवार लेखन भी कम हो रहे हैं.

Also Read: नंदीग्राम में शुभेंदु अधिकारी का विरोध, बोले भाजपा नेता- TMC को नंदीग्राम में शहीद दिवस मनाने का अधिकार नहीं

Posted By : Mithilesh Jha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें