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बंगाल : नशा मुक्ति केंद्र बन गये हैं यातना केंद्र, लगातार बढ़ती ही जा रही हैं शिकायतें

महानगर समेत राज्यभर में जितनी तेजी से नशे के सेवन की प्रवृत्ति फैल रही है, उतनी ही तेजी से नशा मुक्ति केंद्रों का व्यापार फल फूल रहा है. अगर कोलकाता की बात करे तो यहां लगभग पांच से 10 किलोमीटर के अंतराल पर नशा मुक्ति केंद्र मिल जायेंगे.

कोलकाता, अमर शक्ति/ शिवशंकर ठाकुर : राज्य सहित पूरे देश में बढ़ती नशे की लत एक गंभीर समस्या बनती जा रही है और इस समस्या का समाधान करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें विफल रही हैं. नशे की बढ़ती लत पर भारत सरकार द्वारा किये गये सर्वे के अनुसार, तकरीबन 7.13 करोड़ भारतीय तरह-तरह के नशों की गंभीर लत से जूझ रहे हैं. बताया गया है कि सर्वे में सबसे ज्यादा 5.17 करोड़ लोगों में शराब की गंभीर लत पायी गयी है. अगर शराब का सेवन करने वालों की जनसंख्या की बात करें, तो उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 4.2 करोड़ लोग शराब पीते हैं. दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां 1.4 करोड़ लोग हैं और तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश में 1.2 करोड़ लोग शराब पीते हैं.

नशा मुक्ति केंद्रों को लेकर शिकायतें लगातार बढ़ती जा रही हैं

इनमें नशे की लत इतनी बढ़ चुकी है कि इन्हें तत्काल इलाज की जरूरत है, जो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है. यही कारण है कि महानगर सहित पूरे राज्य भर में समाजसेवा के नाम पर कुकुरमुत्ते की तरह फैले नशा मुक्ति केंद्रों को लेकर शिकायतें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. अब तो यह कहा जा रहा है कि ये नशा मुक्ति केंद्र नहीं, बल्कि यातना केंद्र हैं. इन केंद्रों में नशा छुड़ाने के नाम पर पीड़ितों को यातनाएं दी जाती हैं और इसका जीता-जागता उदाहरण पिछले कुछ दिनों में देखने को भी मिला है. महानगर से सटे हावड़ा जिले के बाउरिया, पश्चिम बर्दवान जिले में दुर्गापुर व आसनसोल में नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती हुए पीड़ितों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी.

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आरोप है कि इन केंद्रों में पीड़ितों को थर्ड डिग्री दी जा रही

आरोप है कि इन केंद्रों में पीड़ितों को थर्ड डिग्री दी जा रही है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि इन केंद्रों के संचालन के लिए सामाजिक न्याय विभाग की न तो कोई गाइडलाइन है और न ही इनकी निगरानी की कोई व्यवस्था. बताया जाता है कि नशा मुक्ति केंद्रों का पंजीकरण सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत किया जाता है, लेकिन यहां जिन पीड़ितों का इलाज होता है, उनके स्वास्थ्य के बारे में राज्य के स्वास्थ्य विभाग को रिपोर्ट पेश करनी होती है, लेकिन आरोप है कि अधिकांश नशा मुक्ति केंद्र ऐसा नहीं करते. लिहाजा नौसिखिये संचालक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती मरीजों से अनैतिक व्यवहार कर रहे हैं. गौरतलब है कि मारपीट तो आम बात है, इन मरीजों पर थर्ड डिग्री तक इस्तेमाल किये जाने के मामले भी सामने आ चुके हैं.

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केंद्रों को सरकार की ओर से नहीं मिलती कोई मदद

जानकारी के अनुसार, सिर्फ कोलकाता व इससे सटे जिलों जैसे उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना व हावड़ा में ही लगभग 100 नशा मुक्ति केंद्र हैं. इन केंद्रों को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती. इसलिए ये संस्थाएं नशे से पीड़ित मरीज के परिजनों से पांच से 10 हजार रुपये मासिक लेकर उन्हें सेंटर पर तीन से छह महीने के लिए रखते हैं.

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किस प्रकार के नशे की लत में फंसे हैं लोग

भारत सरकार के इस सर्वे के अनुसार, सबसे ज्यादा 5.17 करोड़ लोगों में शराब की गंभीर लत पायी गयी है. इसके अलावा 72 लाख लोग भांग, 60 लाख लोग अफीम व चरस आदि और 11 लाख लोग नशीली गोलियों या इंजेक्शन से होने वाले नशे की लत में फंसे हुए हैं. सर्वे में 70,293 लोग ऐसे भी शामिल हैं, जो नशे के लिए खतरनाक किस्म के ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं. सर्वे में पता चला है कि देश में कुल लगभग 16 करोड़ शराब पीने वाले लोग हैं, जिनकी आयु 10 वर्ष से 75 वर्ष के बीच है और इनमें से 19 फीसदी लोग शराब की गंभीर लत के आदि हो चुके हैं. शराब और ड्रग्स के अलावा भी लगभग 4.6 लाख बच्चे और 18 लाख वयस्क सर्दी-जुकाम में दवा के तौर पर इस्तेमाल होने वाले इनहेलर और नशीली दवाइयों की लत से जूझ रहे हैं.

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नशा मुक्ति केंद्र में मरीजों को रखने को लेकर हाइकोर्ट ने भी की है टिप्पणी

इस संबंध में कलकत्ता हाइकोर्ट ने भी एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि रिहैबिलिटेशन के नाम पर नशा मुक्ति केंद्र में लोगों को उनकी मर्जी के बिना नहीं रखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि नशे से छुटकारा दिलाने के लिए राज्य व केंद्र सरकार द्वारा पर्याप्त व्यवस्था न करने की वजह से आज प्राइवेट नशा मुक्ति केंद्रों की बाढ़ सी आ गयी है. लोगों को मर्जी के बगैर नशा मुक्ति केंद्र में हिरासत में रखने से समस्या बढ़ी है. कोर्ट ने कहा था कि नशा मुक्ति केंद्र का काम सिर्फ लोगों का इलाज करना है. वह किसी को भी उनकी मर्जी के बगैर जबरन नहीं रख सकता. हाइकोर्ट ने राज्य सरकार से नशा केंद्रों की संख्या व गाइडलाइन को लेकर रिपोर्ट भी मांगी थी, लेकिन अब तक राज्य सरकार ने यह जानकारी हाइकोर्ट को नहीं दी है. अवैध रूप से चल रहे नशा मुक्ति केंद्र को बंद कर दिया जायेगा, तो फिर उसमें रह रहे लोगों को कहां भेजा जायेगा, इस सवाल पर बेंच ने कहा कि नियमों की अनदेखी कर चल रहे नशा मुक्ति केंद्रों को अब नये मरीजों की भर्ती करने पर रोक लगा देनी चाहिए.

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नशा मुक्ति केंद्रों पर सरकार की निगरानी की जरूरत

महानगर समेत राज्यभर में जितनी तेजी से नशे के सेवन की प्रवृत्ति फैल रही है, उतनी ही तेजी से नशा मुक्ति केंद्रों का व्यापार फल फूल रहा है. अगर कोलकाता की बात करे तो यहां लगभग पांच से 10 किलोमीटर के अंतराल पर नशा मुक्ति केंद्र मिल जायेंगे. नशा मुक्ति केंद्रों के संचालन के लिए स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त मेडिकल लाइसेंस के साथ ही फायर एवं ट्रे़ड लाइसेंस की भी जरूरत पड़ती है. पर महानगर में संचालित नशा मुक्ति केंद्रों में सरकार के इन नियमों की अनदेखी की जाती है. वहीं, राज्य स्वास्थ्य विभाग भी इन नशा मुक्ति केंद्रों पर लगाम नहीं लगाता.

नशा मुक्ति केंद्रों को  चलाया जा रहा है बिना किसी साइंटिफिक पद्धति के

आलम यह है कि धड़ल्ले से खुले नशा मुक्ति केंद्र सरकार के आपे से बाहर हैं. यहीं कारण हैं कि इन केंद्रों से अपराध के तमाम मामले सामने आते रहते हैं. नशा मुक्ति केंद्रों के विषय में अधिक जानकारी के लिए हमने मनो चिकित्सक प्रोफेसर डॉ इंद्रनील विश्वास और मनोवैज्ञानिक डॉ अभिषेक हंसा से बात की. डॉ हंसा ने बताया कि कोलकाता या राज्य में संचालित अधिकांश नशा मुक्ति केंद्रों को ऐसे भी लोग चला रहे हैं, जो पहले कभी नशा के आदी थे. स्वस्थ होने के बाद उन्होंने खुद का नशा मुक्त केंद्र खोल लिया. कोलकाता में अधिकतर नशा मुक्ति केंद्रों को सोसाइटी एक्ट के माध्यम से रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. अधिकतर नशा मुक्ति केंद्रों को बिना किसी साइंटिफिक पद्धति के चलाया जा रहा है.

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केंद्र में 24 घंटे डॉक्टर व मनोचिकित्सक का रहना जरूरी

डॉ अभिषेक हंसा ने बताया कि नशे की लत वाले लोग कभी भी उग्र हो सकते हैं. इस वजह से नशा मुक्ति केंद्रों में 24 घंटे एक मेडिकल ऑफिसर और एक मनोचिकित्सक का रहना जरूरी है. पर नशा मुक्ति केंद्रों में ऐसा नहीं होता है. इन केंद्रों में सप्ताह में एक दिन कुछ घंटों के लिए मनोचिकित्सक होते हैं. नशा मुक्ति केंद्र के निर्माण के दौरान कुछ खास बातों का ध्यान भी रखा जरूरी है. नशे के आदी लोगों की कई बार मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है. इस स्थिति में वे आत्महत्या भी कर लेते हैं. इन बातों को ध्यान में रखते हुए नशा मुक्ति केंद्र का निर्माण कराया जाना चाहिए. पर ऐसा होता नहीं है. लोग किसी फ्लैट या साधारण इमारत में नशा मुक्ति केंद्र खोल लेते हैं.

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नशा छुड़वाने के लिए विशेष चिकित्सीय देखभाल की जरूरत

डॉ इंद्रनील विश्वास ने बताया कि नशे की लत वाले लोगों को इलाज के दौरान मानसिक सेहत बिगड़ सकती है. इस कारण मोटिवेशनल थेरेपी, साइको थेरेपी समेत अन्य इलाज की जरूर पड़ती है. पर अधिकतर नशा मुक्ति केंद्र में इन चिकित्सकीय प्रोटोकॉल पर ध्यान नहीं दिया जाता है. डॉ विश्वास ने बताया कि राज्य के किसी सरकारी अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र नहीं है. कई बार मेंटल अस्पतालों में ऐसे कुछ मरीजों का इलाज किया जाता है. ऐसे में सरकारी अस्पतालों में नशा मुक्ति केंद्र खोले जाने की जरूरत है.

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नशा छुड़वाने के लिए विशेष चिकित्सीय देखभाल की जरूरत

डॉ इंद्रनील विश्वास ने बताया कि नशे की लत वाले लोगों को इलाज के दौरान मानसिक सेहत बिगड़ सकती है. इस कारण मोटिवेशनल थेरेपी, साइको थेरेपी समेत अन्य इलाज की जरूर पड़ती है. पर अधिकतर नशा मुक्ति केंद्र में इन चिकित्सकीय प्रोटोकॉल पर ध्यान नहीं दिया जाता है. किसी सरकारी अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र नहीं डॉ विश्वास ने बताया कि राज्य के किसी सरकारी अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र नहीं है. कई बार मेंटल अस्पतालों में ऐसे कुछ मरीजों का इलाज किया जाता है. ऐसे में सरकारी अस्पतालों में नशा मुक्ति केंद्र खोले जाने की जरूरत है.

नशा मुक्ति केन्द्र  में जिंदगी बनी जलालत

नशा चाहे शराब का हो या नशे से जुड़ी अन्य किसी चीज का, यह नशा करने वाले शख्स ही नहीं, बल्कि उससे जुड़े अपनों की जिंदगी को भी नर्क बना देता है. ऐसे में कई लोग नशा के जाल में जकड़े अपनों को सुधारने के लिए नशा मुक्ति केंद्र की ओर रुख करते हैं. नशा मुक्ति केंद्र के जरिये कई लोगों को फायदा पहुंचा है, लेकिन हाल में हुईं कुछ घटनाओं से इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है कि नशा छुड़ाने के नाम पर कुछ अवैध नशा मुक्ति केंद्र भी धड़ल्ले से चलाये जा रहे हैं. यहां एक ऐसे ही शख्स से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट पेश की जा रही है, जो नशा मुक्ति केंद्र में यातनाओं का शिकार हुआ. उस युवक ने अपनी आपबीती बताने के दौरान सबसे पहले यही कहा कि उसके लिए नशा मुक्ति केंद्र जैसे यातनाओं के घर के सामान है.


दो कैटेगरी में मरीजों का होता है इलाज

नशामुक्ति केंद्रों में कुछ मरीज पुलिस पिकअप होते हैं कुछ अभिभावक खुद छोड़ जाते है, यहां रखने और उनका इलाज करने की व्यवस्था है. एक वीआइपी कैटेगरी और दूसरा नार्मल कैटेगरी, वीआइपी में रहने और खाने पीने की व्यवस्था थोड़ी उन्नत होती है. सधारण कैटेगरी के लिए महीने में से 6 से 8 हजार रुपये और वीआइपी कैटेगरी में 20 हजार रुपये तक भी लिये जाते हैं. इलाज की एक ही व्यवस्था होती है. उक्त युवक ने बताया कि वीआइपी मरीजों ने साथ भी पिटाई होती है, उनसे भी साफ सफाई का काम कराया जाता है. बस उन्हें खाने को थोड़ा बेहतर मिलता है और रहने के लिए अलग व्यवस्था होती है.

पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता आकर देते हैं नसीहत

युवक ने बताया कि समय-समय पर पुलिस के अधिकारी और समाजसेवी संस्था के लोग नशामुक्ति केंद्रों में आकर उपदेश देते हैं. इस दौरान केंद्र के लोग सभी मरीजों को नहला- धुलाकर साफ कपड़े पहनाकर कार्यक्रम में बैठाया जाता है. हरेक को हिदायत दी जाती है कि कोई भी किसी से कुछ नहीं कहेगा, यदि किसी ने कुछ कहा तो बाद में उसकी खैर नहीं. एक मरीज ने अपने उपर हो रहे अत्याचार की कहानी सुनानी चाही तो केंद्र के लोगों ने बड़ी चालाकी से यह कह दिया कि इसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. कुछ भी बोलता रहता है.


चिकित्सक से बात नहीं करने दिया जाता

युवक ने बताया कि सप्ताह में एक दिन चिकित्सक आकर केंद्र के मरीजों की स्थिति की जांच करते थे, मरीज से चिकित्सक की कोई बात नहीं होती थी. सभी मरीज लाइन में खड़े हो जाते थे. केंद्र के लोग वहां रहते थे और वे ही चिकित्सक को मरीज की स्थिति की जानकारी देते थे, जिसके आधार चिकित्सक दवा देते थे. किसी दिन में दो और अधिकांश को रात को सोने से पहले दवा दी जाती थी. किसी भी अभिभावक को चिकित्सक से मिलने की इजाजत नहीं होती थी. सारा कुछ केंद्र के लोगों के पास होता था. केंद्र के संचालकों में नशामुक्ति केंद्र के कुछ पुराने मरीज शामिल रहते हैं. उन्हें मरीजों की पूरी स्थिति की जानकारी होती है.

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