Bengal Election 2021: बंगाल विधानसभा चुनाव के चौथे चरण की वोटिंग 10 अप्रैल को पांच जिले की 44 सीटों पर है. इस बीच पहले से चौथे चरण के लिए चुनाव प्रचार में तमाम मर्यादाएं टूट गई. चौथे चरण के करीब पहुंचते-पहुंचते बात हिंदू-मुसलमान तक पहुंच गई. यहां तक कि पीएम मोदी की एक तसवीर पर भी खूब हंगामा हुआ. जबकि, शुभेंदु अधिकारी और ममता बनर्जी को बयान के लिए चुनाव आयोग की नोटिस भी मिल गई है. बड़ा सवाल यह है कि आखिर पश्चिम बंगाल चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक कितना बड़ा फैक्टर है? हर पार्टी मुस्लिम वोटबैं क में सेंधमारी क्यों करना चाहती है?
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बंगाल चुनाव की बात करें तो राज्य की 294 सीटों पर वोटिंग होगी. चौथे फेज को मिला दें तो इसमें 135 सीटें शामिल हैं. प्रभात खबर कोलकाता के सीनियर रिपोर्टर अमर शक्ति की मानें तो बंगाल में मुस्लिमों की आबादी 27 फीसदी है. इस आबादी का राज्य के करीब 90 सीटों पर सीधा प्रभाव माना जाता है. बाकी बचे चार फेज में 169 सीटों पर वोटिंग होगी. इन सीटों में 25 फीसदी से ज्यादा अल्पसंख्यक आबादी है. पांचवें और आठवें चरण में यह 35 फीसदी तक पहुंच जाएगा. यही कारण है सभी पार्टियों को मुस्लिम वोट बैंक की फिक्र है. इस वोट बैंक में सभी अपने हिसाब से सेंधमारी की फिराक में हैं.
पश्चिम बंगाल चुनाव के रिजल्ट से जुड़ी लोक नीति के रिपोर्ट की बात करें तो 2006 के चुनावों में मुसलमानों का 46 फीसदी वोट लेफ्ट, 25 फीसदी कांग्रेस और 22 फीसदी तृणमूल कांग्रेस को मिला था. 2011 के चुनाव में लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस के बीच मुस्लिम वोट बैंक का अंतर सात फीसदी के करीब था. 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 40 फीसदी मुसलमानों का वोट हासिल किया था. इसकी बदौलत तृणमूल कांग्रेस को लोकसभा की कुल 42 में से 34 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 में कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन था. दोनों को 55 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक मिले थे पर फायदा नहीं मिला.
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अब, बात करते हैं 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की. इसमें लेफ्ट और कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था. उसमें गठबंधन को अल्पसंख्यकों के सिर्फ 38 फीसदी वोट मिले थे. तृणमूल कांग्रेस के लिए 51 फीसदी मुसलमानों ने वोट किया. माना जाता है कि इस जबरदस्त वोट बैंक की बदौलत तृणमूल कांग्रेस ने कुल 294 में से 211 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार भी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी और बीजेपी के बीच वोट बैंक की खींचतान दिख रही है. दोनों पार्टियां इस कोर वोट बैंक में सेंध लगाने की फिराक में हैं. जबकि, लेफ्ट और कांग्रेस ने आईएसएफ से हाथ मिलाया है. इनकी उम्मीद फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से है.