पश्चिम बंगाल सरकार ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की समिति की उस रिपोर्ट को “एकतरफा” बताते हुए बुधवार को खारिज कर दिया, जिसमें “विभिन्न स्तरों पर परोसे जाने वाले भोजन के संबंध में प्रस्तुत सूचना में गंभीर विसंगतियां” पाये जाने की बात कही गयी है. राज्य सरकार का कहना है कि इस रिपोर्ट में राज्य के विचारों को जगह नहीं दी गयी है और इसमें दिये गये आंकड़ों के “सत्यापन की जरूरत” है. शिक्षा मंत्रालय (एमओई) ने अनियमितताओं की शिकायतों के बाद पश्चिम बंगाल में केंद्र प्रायोजित योजना ‘पीएम पोषण’ के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए जनवरी में ‘संयुक्त समीक्षा मिशन’ (जेआरएम) का गठन किया था.
समिति ने कहा कि पश्चिम बंगाल में स्थानीय प्रशासन ने पिछले साल अप्रैल से सितंबर तक 100 करोड़ रुपये से अधिक लागत में लगभग 16 करोड़ मध्याह्न भोजन थालियां परोसने की जानकारी दी थी. समिति ने अग्नि पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करने के लिए मध्यान भोजन योजना के लिए आवंटित धन के उपयोग, खाद्यान्नों के दोषपूर्ण आवंटन, चावल, दाल और सब्जियां “निर्धारित मात्रा” से 70 प्रतिशत तक कम बार पकाने और खराब हो चुकी वस्तुओं के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाए.
रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने कहा कि संयुक्त समीक्षा मिशन (जेआरएम) ने राज्य की मध्याह्न भोजन योजना के परियोजना निदेशक के हस्ताक्षर के बिना रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो राज्य सरकार के प्रतिनिधि हैं. श्री बसु ने एक बयान में कहा, “इसलिए, अगर रिपोर्ट को उनके विचारों या सुझावों के लिए उनके साथ साझा नहीं किया गया है, तो संयुक्त समीक्षा समिति में ””संयुक्त”” का क्या मतलब रह गया है? इसलिए यह स्पष्ट है कि राज्य के विचारों को शामिल नहीं किया गया है.
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जेआरएम के अध्यक्ष को हम पहले ही विरोधस्वरूप पत्र लिख चुके हैं, जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.” श्री बसु ने सवाल किया कि अगर राज्य सरकार के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है तो यह ””लुका-छिपी”” क्यों? उन्होंने कहा कि मीडिया में जो आंकड़े सामने आये हैं, उन्हें सत्यापित करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, “यह देखना होगा कि क्या जेआरएम रिपोर्ट में वास्तविक तथ्य दर्शाए गये हैं और क्या विसंगतियों के संबंध में राज्य सरकार के विचारों को शामिल किया गया है?”