कोलकाता: बदलते मौसम में अक्सर लोगों को इन्फ्लूएंजा यानी फ्लू हो जाता है. इस स्थिति में मरीजों को बुखार, खांसी, जुकाम और सांस संबंधी बीमारियां जकड़ लेती हैं. ज्यादातर मामलों में फ्लू के लक्षण मरीजों में दो सप्ताह तक देखने को मिलते हैं. सही इलाज के बाद मरीज ठीक हो जाता है. हालांकि कई बार यह जानलेवा भी साबित होता है. यह कहना है महानगर के कोलंबिया एशिया अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर पल्लव चटर्जी का है.
डाॅ चटर्जी के अनुसार भारत जैसे देश में बदलते मौसम में यह समस्या आमतौर पर बढ़ जाती है. ऐसे में इन्फ्लुएंजा से बचने के लिए अप्रैल में ही टीकाकरण कर लेने से अच्छा होता है. बुजुर्ग, वयस्क, मधुमेह और अस्थमा जैसे कोमोरिडिटी वाले रोगियों में जोखिम सबसे अधिक होता है. डाॅ पल्लव चटर्जी कहते हैं कि फ्लू के संक्रमण की तीव्रता जलवायु पर निर्भर करती है, जिससे यह मौसमी हो जाता है. वायु प्रदूषण से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, चूंकि भारत दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है, इसलिए यहां गर्मी के मौसम में फ्लू के मामलों में बढ़ोतरी देखी जाती है. इसलिए यहां टीकाकरण का सही समय अप्रैल से शुरू होता है. ऐसे में विशेषज्ञ अप्रैल में ही फ्लू के मौसम से पहले वैक्सीन लेने की सलाह देते हैं, क्योंकि इससे एंटीबॉडीज को शरीर में विकसित होने और फ्लू से बचाने के लिए पर्याप्त समय मिलता है. कोविड-19 का टीका लगानेवालों को फ्लू वैक्सीन लेने से पहले 30 दिनों तक इंतजार करना चाहिए.
इन्फ्लुएंजा टीकाकरण पर डाॅ पल्लव चटर्जी ने कहा कि इससे मधुमेह, सीओपीडी और सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों में इन्फ्लुएंजा से संक्रमित होने की आशंका 55 प्रतिशत कम होती है.
उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस और इन्फ्लुएंजा, दोनों के मरीजों में समान लक्षण देखे जाते हैं. हालांकि दोनों मरीजों में एक सामान्य अंतर है. कोविड-19 वाले रोगियों में सूखी खांसी होना प्रमुख लक्षण है. लेकिन नाक नहीं बहती है. वहीं, इन्फ्लुएंजा के मरीजों को आमतौर पर बहती नाक, बुखार और खांसी के साथ आम सर्दी होती है. इसलिए, इन्फ्लुएंजा के टीके को छह महीने से पांच साल के सभी बच्चों और 65 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
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Posted By- Aditi Singh