पश्चिम बंगाल के हल्दिया का चौलखोला व शिवरामनगर क्षेत्र लक्ष्मी गांव के नाम से जाना जाता है हालांकि दुर्गोत्सव बंगालियों का सबसे अच्छा त्योहार है, लेकिन लक्ष्मी पूजा इस दो गांवों के लोग काफी उत्साह के साथ मनाते है. इस गांव के लोग लोग इस पूजा का इंतजार काफी बेसब्री से करते हैं. जहां दुर्गा पूजा पर हर कोई नए कपड़े खरीदता है, वहीं यहां के लोग लक्ष्मी पूजा पर नए कपड़े खरीदते हैं. आज यहां के लोग कोजागरी लक्ष्मी पूजा उत्सव काफी धूम-धाम से मनाते नजर आये. यह उत्सव अगले पांच दिनों तक जारी रहेगा. इस गांव को लक्ष्मी गांव के नाम से जाना जाता है क्योंकि पिछले 100 सालों से इस गांव में अलग अलग थीम पर लक्ष्मी पूजा होती है.
औद्योगिक नगरी हल्दिया के निकट इस क्षेत्र में पूजा देखने के लिए जिले के साथ-साथ अन्य जिलों के भी काफी लोग आते है. जिस तरह दुर्गा पूजा के दौरान लाखों रुपये की थीम मूर्तियां और मंडप बनाए जाते हैं, उसी तरह यहां भी थीम, मूर्तियां और मंडप बनाए जाते हैं. यहां के लोग पूजा का आनंद लेते हैं. धर्म के भेदभाव को भूलकर यहां के लोग पूजा का आनंद लेते हैं. पूजा में कई मुस्लिम समुदायों के लोग भाग लेते हैं और पूजा में हाथ बंटाते हैं. यहां जो लोग व्यवसाय के सिलसिले में बाहर रहते हैं वे इस पूजा के लिए घर आते हैं. पूजा के अलावा कई सामाजिक गतिविधियां भी की जाती हैं. इस गांव में पूजा समितियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. परिणामस्वरूप, आगंतुकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है.
Also Read: Bengal Weather Forecast : काली पूजा से पहले बंगाल में दस्तक दे सकती है गुलाबी सर्दी, क्या कहा मौसम विभाग ने..
बांकुड़ा जिले के बेलियातोड़ थाना अंतर्गत रामकनाली गांव में कोजागरी लक्खी की पूजा गजलक्ष्मी के रूप में होती है. जिसका उद्देश्य रामकनाली गांव में हाथियों से फसल को बचाना है. फसलों को बचाने के लिए ही गजलक्ष्मी की पूजा होती है जो सौ साल से भी ज्यादा पुरानी मानी जाती है. बांकुड़ा जिले के विभिन्न हिस्सों में एक समय वनों का प्रभुत्व था. सौ साल पहले से ही दलमा के दमाल तांडव मचाते रहते थे. इसका प्रमाण जिले के बेलियाटोर थाने के रामकनाली गांव में गजलक्ष्मी की पूजा से मिलता है. इस गांव में लगभग 126 साल पहले, गांव के प्राचीन लोग खेत की फसलों, घरों और यहां तक कि अपने जीवन को हाथियों के उत्पात से बचाने के लिए देवी गजलक्ष्मी की पूजा करते थे. यहां देवी लक्ष्मी ‘गज’ यानी हाथी की पीठ पर विराजमान हैं देवी. दोनों ओर दो सखियां विराजमान दिखाई गई हैं. मूर्ति पर दोनों तरफ दो मोर भी आच्छादित हैं. इस गांव में गजलक्ष्मी प्रतिमा की ही पूजा की जाती है.
कहा जाता है कि एक बार इस रामकनाली गांव के निवासी हाथियों के उत्पात से तंग आ गये थे. तब उन्होंने हाथियों के हमले से बचने के लिए गजराज की पूजा करनी शुरू कर दी. वन विभाग के अनुसार, बांकुड़ा उत्तर वन विभाग के जंगल में 40 से अधिक हाथी अभी मौजूद हैं. साल भर इलाके के लोगो को आतंक का जीवन गुजारना पड़ता है. इस गांव के लोगों का मानना है कि आज भी गांव में हाथियों के हमले से फसलों को बचाने के लिए इस देवी की कृपा प्राप्त करनी पड़ती है. लगभग 126 वर्षों से रामकनाली गांव के निवासियों की परंपरा का पालन करते हुए हर साल कोजागरी पूर्णिमा पर देवी गजलक्ष्मी पूजा का आयोजन होता है. इस दिन आसपास के 15 से 20 गांवों के लोग लक्ष्मी पूजा देखने आते हैं और पूजा में भाग लेते हैं. इस बारे में ग्रामीण गणेश दास एवम उत्तम शीट का कहना है कि पूर्वजों के मुताबिक हाथियों के हमले से फसलों और लोगों को बचाने के लिए देवी की कृपा के लिए गज लक्ष्मी की पूजा की जाती है. यह परंपरा आज भी जारी है. र दिनों तक विभिन्न संगीत कार्यक्रम गांव में होता है.
Also Read: राशन वितरण भ्रष्टाचार : मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक के आवासों समेत 12 जगहों पर इडी के छापे