क्या ममता बनर्जी के राष्ट्रीय नेता बनने की राह में रोड़ा बनेगा स्थानीय बनाम बाहरी का नारा ? पढ़े Detail Story
राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के नेता का चेहरा बनकर उभर रहीं ममता बनर्जी की राह में उनका ही नारा 'स्थानीय बनाम बाहरी' रोड़ा बनता जा रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर उनकी किरकरी होने लगी है. बंगाल आ रहे भाजपा के नेता तो ममता को इस मुद्दे पर घेर ही रहे हैं, साथ ही ममता बनर्जी को नि:शर्त, नैतिक व सक्रिय समर्थन दे रही शिवसेना, राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी भी अब असमंजस की स्थिति में है.
कोलकाता (नवीन कुमार राय): राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष के नेता का चेहरा बनकर उभर रहीं ममता बनर्जी की राह में उनका ही नारा ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ रोड़ा बनता जा रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर उनकी किरकरी होने लगी है. बंगाल आ रहे भाजपा के नेता तो ममता को इस मुद्दे पर घेर ही रहे हैं, साथ ही ममता बनर्जी को नि:शर्त, नैतिक व सक्रिय समर्थन दे रही शिवसेना, राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी भी अब असमंजस की स्थिति में है.
तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव से लेकर संजय राउत, फारूख अब्दुल्ला आदि भी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख के समर्थन में प्रचार के लिए पश्चिम बंगाल आनेवाले थे. ऐसे में उनलोगों को ममता बनर्जी प्रचार के लिए कैसे और किस मुंह से बुलायेंगी.
इतना ही नहीं, अब अगर वह विपक्षी दलों की राष्ट्रीय स्तर पर नुमाइंदगी करने जाती हैं, तो बाहरी के नारे से उन्हें घेरने के लिए भाजपा तैयार बैठी है. इस बारे में ममता बनर्जी के साथ विभिन्न आंदोलनों में साथ रहनेवाले प्रदेश के वरिष्ठ नेता प्रभाकर तिवारी का मानना है कि बंगाल विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर को देखते हुए दीदी ने तात्कालिक लाभ के लिए इस नारे को उछाला है.
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हालांकि यह रणनीति उन पर ही उलटी पड़ गयी. भवानीपुर की अपनी परंपरागत सीट छोड़ कर जब वह नंदीग्राम में चुनाव लड़ने गयीं, तो शुभेंदु अधिकारी ने उन्हें ‘बाहरी’ करार देते हुए खुद को ‘भूमिपुत्र’ कह कर उन्हें घेरा. ऐसे में उनका यह नारा राष्ट्रीय स्तर पर उनकी सोच को सामने ला दिया है कि वह कभी भी देश को लेकर चल नहीं सकती हैं.वह भी अरविंद केजरीवाल, मुलायम सिंह यादव व लालू प्रसाद की तरह एक क्षेत्रीय नेता के रूप में रह जायेंगी.
भाजपा के वयोवृद्ध नेता भंवरलाल मूंधड़ा का कहना है कि भाजपा एक राष्ट्रीय दल है. ऐसे में जब भाजपा का कोई प्रत्याशी कहीं से भी उम्मीदवारी करता है, तो उसके प्रचार में पार्टी के नेता जाते ही हैं, क्योंकि देश एक है और प्रदेश उसका हिस्सा है. ममता बनर्जी इस सच्चाई को नकार रही हैं. राष्ट्रीय स्तर पर वह देश की एकता और अखंडता को लेकर क्या सोचती हैं, यह इससे ही यह साबित होता है.
ममता बनर्जी भाजपा नेताओं को इस देश का नागरिक मानने की बजाय बाहरी मानती हैं. जबकि यही ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के लिए तात्कालिक लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ पर शाल और कागज फेंक कर अपना विरोध जतायीं थी. आज वही ममता, बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर चुप्पी साधी हैं और देश के नागरिकों को ही बाहरी करार दे रही हैं. ऐसे में राष्ट्रीय नेता के रूप में उन्हें कौन स्वीकार करेगा.
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वरिष्ठ नेता व खादी ग्रामोद्योग के चेयरमैन रहे अनिंदगोपाल मित्रा का मानना है कि ममता बनर्जी की यह चाल उल्टी पड़ गयी. वह देश के लोगों को ही बाहरी बोल रही हैं. जाहिर है जब वह किसी अन्य प्रदेश में जायेंगी, तो उन्हें राष्ट्रीय नेता के रूप में कौन स्वीकार करेगा.
Posted By: Pawan Singh