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BHU 103rd Convocation: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह 16 दिसंबर को होगा आयोजित

BHU 103rd Convocation: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) शनिवार, 16 दिसंबर को अपने 103वें दीक्षांत समारोह की मेजबानी करने के लिए तैयार है. दीक्षांत समारोह स्वतंत्रता भवन में सुबह 9:30 बजे शुरू होगा.

BHU 103rd Convocation: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) शनिवार, 16 दिसंबर को अपने 103वें दीक्षांत समारोह की मेजबानी करने के लिए तैयार है. दीक्षांत समारोह स्वतंत्रता भवन में सुबह 9:30 बजे शुरू होगा. शैक्षणिक सत्र 2022-23 के स्वर्ण पदक भी वितरित किये जायेंगे. भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे. मुख्य समारोह के तुरंत बाद सभी विभागों और कॉलेजों के स्नातकों को डिग्री प्रदान की जाएगी.

अजय कुमार सूद दीक्षांत भाषण देंगे. सूद प्रधान मंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करते हैं. वह भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बैंगलोर में राष्ट्रीय विज्ञान अध्यक्ष प्रोफेसर के पद पर भी हैं. यह भी पढ़ें | बीएचयू समग्र विकास के लिए करियर, प्लेसमेंट, छात्र कल्याण में सुधार के लिए कदम उठाता है. उन्हें शिक्षाविदों और वैज्ञानिक अनुसंधान में उनके योगदान के लिए पद्म श्री सहित कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं.

उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए जीडी बिड़ला पुरस्कार, भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन का मिलेनियम गोल्ड मेडल, यूजीसी का सर सी वी रमन पुरस्कार और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का होमी भाभा पदक भी मिला. पिछले साल, कुल 37,896 छात्रों को उनकी डिग्री प्राप्त हुई और 91 छात्रों को उनके शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए पदक प्रदान किए गए. सत्र 2019-20, 2020-21 और 2021-22 के लिए बीएचयू स्वर्ण पदक 102वें दीक्षांत समारोह के दौरान प्रदान किए गए क्योंकि दीक्षांत समारोह सीओवीआईडी-19 महामारी के कारण तीन साल बाद आयोजित किया गया था.

इस वर्ष, बीएचयू ने प्लेसमेंट और छात्रों के कल्याण में सुधार के लिए कैरियर मार्गदर्शन, प्लेसमेंट और प्रशिक्षण, छात्र कल्याण और कौशल विकास कोशिकाओं का भी पुनर्गठन किया है. इन कोशिकाओं का उद्देश्य छात्रों को उनके मानसिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिए आवश्यक कौशल और प्रशिक्षण प्रदान करते हुए परामर्श, परामर्श प्रदान करना है.

105 साल पुरानी इस यूनिवर्सिटी

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू का नाम देश के उन संस्थानों में लिया जाता है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं. 105 साल पुराने इस यूनिवर्सिटी में आज भी दाखिला पाने के लिए लाखों की संख्या में उम्मीदवार प्रवेश परीक्षा में शामिल होते हैं.1360 एकड़ में फैले इस यूनिवर्सिटी का इतिहास भी बड़ा रोचक है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण की कहानी पर एक नजर डालते हैं.

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय की नींव रखी थी

1915-1916 में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय देश के सबसे प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है. जो पवित्र शहर वाराणसी में स्थित है. 1916 में बसंत पंचमी के दिन ही महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय की नींव रखी थी. उस समय विदेशी शासन होने के बावजूद इस विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 1360 एकड़ जमीन महामना को दान में मिली थी.

बीएचयू की स्थापना

बीएचयू की स्थापना 04 फरवरी 1916 को हुई थी. इसके निर्माण के कई किस्से हैं, जिसमें सबसे मशहूर है कि जब मालवीय जी द्वारा इस विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए काशी नरेश से जमीन मांगा गया तो उन्होंने इसके लिए एक अनोखी शर्त रखी थी. काशी नरेश ने ये शर्त रखी कि एक दिन में पैदल चलकर वो जितनी जमीन नाप लेंगे, उतना उन्हें दान में मिल जाएगी. फिर महामना दिन भर पैदल चल विश्वविद्यालय के लिए काशी नरेश से जमीन ली. इसमें उन्हें 11 गांव, 70 हजार वृक्ष, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला दान में मिला था.

बीएचयू की आधिकारिक वेबसाइट

वहीं बीएचयू की आधिकारिक वेबसाइट- bhu.ac.in पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एशिया का एकमात्र सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है. पंडित मदन मोहन मालवीय जी, डॉ एनी बेसेंट और डॉ एस राधाकृष्णन् जैसे महान लोगों के संघर्ष की वजह से इतना बड़ा शिक्षा का केंद्र स्थापित हो पाया.

इतिहासकार बताते हैं कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कि पहली कल्पना दरभंगा नरेश कामेश्वर सिंह ने की थी. 1896 में एनी बेसेंट ने सेंट्रल हिन्दू स्कूल बना दिया था. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का सपना महामना के साथ इन दोनों लोगों का भी था. 1905 में कुंभ मेले के दौरान यह प्रस्ताव लोगों के सामने लाया गया. उस समय सरकार को एक करोड़ रुपए जमा करने थे. 1915 में पूरा पैसा जमा कर लिया गया.

जनवरी 1906 में सनातन धर्म महासभा की बैठक में लिए गए निर्णय को शामिल करते हुए महामना ने बतौर समिति के सचिव के रूप में 12 मार्च 1906 को विश्वविद्यालय की पहली विवरणिका जारी की. इस विश्वविद्यालय में आयुर्वेदिक (चिकित्सा), वैदिक, कृषि, भाषा, विज्ञान, अर्थशास्त्र, ललित कला महाविद्यालय जैसे विभाग शामिल है. इस संस्थान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.

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