सरकार कोरोना काल में मरीजों की समस्याओं को दूर करने व हालत नाजुक होने पर उन्हें एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने के लिए आवश्यक संसाधनों को मुहैया कराने के लिए मास्टर प्लान बना लागू कर रही है, लेकिन उसका अनुपालन जिले में कितना प्रतिशत हो रहा है, मलेरिया विभाग के पीछे पानी में सड़ रहे दर्जन भर के करीब एंबुलेंसों को देख सहज अनुमान लगाया जा सकता है. पानी में एंबुलेंस सड़ रहे हैं और और नये एंबुलेंस खरीदने की चर्चा हो रही है.
जानकार बताते हैं कि मामूली खराबी के कारण ये एंबुलेंस मात्र शोभा की वस्तु बन गये हैं. हालत यह है कि कई पीएचसी से या फिर किराये के एंबुलेंस को मंगाकर सदर अस्पताल में संक्रमित मरीजों को पहुंचाया जा रहा है. यदि इन एंबुलेंसों को मामूली खर्चकर दुरुस्त करा लिया जाये तो दूसरे जगह से मंगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
मलेरिया विभाग के पीछे पानी में सड़ रहे इन एंबुलेंसों एंबुलेंसो में किसी का टायर खराब है तो किसी में लाइट नहीं है. किसी का प्लेट टूटा हुआ है तो किसी का कलच वायर नहीं है, जो मामूली खर्च में बनकर तैयार हो जा सकता है.
सदर अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को ढोने के लिए एक भी एंबुलेंस नहीं है, जबकि गर्भवती महिलाओं के लिए भी प्राथमिकता के आधार पर उन्हें अस्पताल लाने और घर ले जाने के लिए एंबुलेंस रहना चाहिए. परिजनों को मजबूरन निजी एंबुलेंस का उपयोग करना पड़ता है. यहां बता दें कि कोरोना संक्रमितों को ढोने के लिए एक दर्जन एंबुलेंस लगाये गये है.
जिले में कुल 45 एंबुलेंस है, उसमें सभी चलंत है. हल्की-फुल्की खराबी होती है तो उन्हें बनवाकर चलाया जाता है. मलेरिया विभाग के पीछे खड़ी एंबुलेंस काफी दिनों से खराब पड़ा हुआ है,जिसे बनवाने में काफी खर्च हो सकता है.
डॉ अखिलेश्वर प्रसाद सिंह, सिविल सर्जन, मोतिहारी
POSTED BY: Thakur Shaktilochan