सीतामढ़ी के परिहार में महादलित बस्ती से आने वाली इंद्रा पहली ऐसी लड़की है जो गांव से निकलकर मैट्रिक की परीक्षा देने जिला मुख्यालय स्थित गीता भवन परीक्षा केंद्र पर पहुंची है. इंदिरा परिहार प्रखंड के बथुआरा पंचायत अंतर्गत दुबे टोला गांव निवासी है. इंद्रा बचपन बचाओ आंदोलन की बाल समिति सदस्य भी हैं.
सोमवार को बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने इंद्रा कुमारी से मोबाइल फोन के माध्यम से बात की और उसका मनोबल बढ़ाया. सत्यार्थी ने इंद्रा से पूछा कि वह आगे क्या बनना चाहोगी?
सत्यार्थी के सवाल पर इंद्रा ने कहा कि जैसे वो यानी सत्यार्थी बच्चों के हक के लिए लड़ते हैं, उसी तरह वह पढ़ लिखकर वकील बन कर बच्चों के हक के लिए लड़ेंगी. सत्यार्थी ने इंद्रा को शाबाशी देते हुए जीवन में आगे बढ़ने की शुभकामना भी दी.
सत्यार्थी ने कहा कि किसी भी इंद्रा की हर तरह से सहायता की जायेगी जिससे वह अपने जीवन में आगे बढ़े और अपने सपने को पूरा करे. जिस दिन इंद्रा परीक्षा देने पहली बार जा रही थी, उस दिन गांव के कई लोग उसे परीक्षा केंद्र तक छोड़ने आये थे. इंद्रा ने कहा था कि उसके मैट्रिक परीक्षा देने से पूरे गांव के लोग खुश हैं.
200 परिवार व एक हजार से अधिक आबादी वाले गांव की इंद्रा का कहना है कि उसके मैट्रिक की परीक्षा देने से पूरे गांव के लोग खुश हैं. इससे वह अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रही है. वह प्रयास करेगी कि गांव की सभी लड़कियां उच्च शिक्षा हासिल करें. इंद्रा ने बताया कि उसकी उम्र की तकरीबन 150 लड़कियां नन मैट्रिक हैं.
इंद्रा के पिता महेश मांझी चेन्नई में मजदूरी करते हैं. तीन भाई-बहनमें इंद्रा सबसे बड़ी है. बाल समिति का सदस्य बनने के बाद वह अपनी टीम के सहयोग से 40-50 बच्चों का स्कूल में नामांकन करा चुकी है. इसी प्रकार कोरोना का टीका लेने से आनाकानी करने पर उसने गांव के लोगों को जागरूक भी किया.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan