बिहार को कोरोना संकट से उबरने के लिए तत्काल बड़े पैमाने पर राहत व स्पेशल पैकेज की जरूरत है. विशेष राज्य का दर्जा भी मिलना चाहिए, नहीं तो पिछड़ेपन की मार झेल रहे इस प्रदेश को कोरोना संकट से उबरने में दशकों लग जायेंगे. ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत पहले औद्योगिक पैकेज का बिहार को दीर्घकालीन लाभ मिल सकेगा. ये बातें अर्थशास्त्री शैबाल गुप्ता ने कही है. आगे उन्होंने कहा कि बिहार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय औद्योगिक मानचित्र पर नहीं है, इस कारण तत्काल इसका लाभ नहीं दिखेगा. बिहार को सबसे अधिक केंद्र की मदद और राहत की दरकार है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा तो इसमें निवेश की संभावनाएं भी बढ़ेगी. इससे रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे और राज्य की अर्थव्यवस्था भी सुधरेगी.
ब्रिटिश काल से लेकर बिहार की गिनती पिछड़े इलाके में होती रही है. वर्ष 2000 में झारखंड के अलग होने के बाद बिहार में कोई बड़ा उद्योग नहीं रह गया. छोटी व मंझोली औद्योगिक इकाइयों के होने अौर हाल के दिनों में नॉन बैकिंग माइक्रो फिनांस कपंनियों से बिहार में थोड़ी बहुत तेजी आयी है. लघु, सुक्ष्म और मंझोले उद्योगों के लिए केंद्र सरकार की ओर से तीन लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा से बिहार को इस सेक्टर में लाभ होगा. हालांकि, बिना जमानत के तीन लाख करोड़ का लोन बांटने का लाभ उन्हीं को मिल पायेगा, जो पहले से मजबूत हैं.
प्रवासियों के पुर्नवास व राहत के लिए सरकार को पहली प्राथमिकता देनी होगी. पलायन सिर्फ रोजगार के लिए नहीं हुआ, बल्कि बिहार में सामंती प्रभाव से जकड़े होने के कारण हुए वर्ग संघर्ष के कारण भी बड़े पैमाने पर लोग घर-बार छोड़ने को मजबूर हुए. इनके लिए रोजगार के साधन मुहैया कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को खास पहल करनी होगी. इतनी बड़ी संख्या में बिहार लौटे प्रवासी आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए उनको कोई भी सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती. पलायन एक सामाजिक अवधारणा भी है, जिसे समझने की जरूरत है. बिहार की अर्थव्यवस्था में उसे तुरंत जोड़ कर देखना सही नहीं है. बड़े पैमाने पर उनके स्किल के आधार पर उन्हें रोजगार दिलाने का सरकार प्रबंध करे, तो तस्वीर बदल सकती है.
बिहार की अर्थव्यवस्था बड़ी संकट के दौर में है. राज्य सरकार ने अपने पब्लिक फिनांस को अच्छे तरीके से प्रबंध कर रखा है, लेकिन आर्थिक आधार कमजोर होने से इसकी ताकत कम रही है. बिहार पहले से ही केंद्र सरकार, योजना आयोग और वित्त आयोग से नजरअंदाज होते रहा है. इसके चलते राज्य की योजना और गैर योजना खर्च देश में सबसे कम रही है. हाल के दशक में कुछ सकारात्मक बदलाव देखे गये हैं. जो बदलाव हुए हैं, वे कम हैं, पर प्रभावी हैं. इस वजह से बिहार को विशेष राज्य के दर्जा के साथ विशेष पैकेज चाहिए. इससे बिहार में नॉलेज सोसायटी विकसित होगी और राज्य में चौथी आैद्योगिक क्रांति विकसित होगी. जीएसटी और नोटबंदी के बाद तीसरा बड़ा संकटअब एमएसएमइ की अवधारणा बदल गयी है. अब सर्विस सेक्टर को भी इसमें शामिल किया गया है. बिहार की यह बिडंबना है कि निजी क्षेत्र में बड़ा सर्विस सेक्टर मौजूद नहीं है. केंद्र के इस पैकेज से तभी लाभ मिल पाता, जब बिहार में सर्वेिस सेक्टर बड़े पैमाने पर होता. माैजूदा आपदा ने संगठित और असंगठित क्षेत्र को काफी प्रभावित किया है. जीएसटी और नोटबंदी के झटके से यह सेक्टर अभी उबर ही रहा था कि यह नया संकट पैदा हो गया. आने वाले समय की सबसे बड़ी समस्या रोजगार की होगी. निजी क्षेत्र को अपने कामगारों की नौकरी बचाये रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी.