कभी बुद्ध आए थे बांका के भदरिया गांव, अब पास के चांदन नदी में मिले बौद्धकालीन भवनों के अवशेष
बांका जिला के अमरपुर प्रखंड अंतर्गत भदरिया गांव के समीप चांदन नदी में करीब पचास फीट की दूरी तक ईंटों के बने पुराने भवनों का एक अवशेष मिला है. यह अवशेष यहां चांदन नदी के जमीन के अंदर पायी गयी है. जहां ईंट का साइज लंबाई 18 इंच, चौडाई 9 फीट एवं मोटाई करीब 2 इंच की निकली है. ईंटों का बना यह अवशेष 6ठीं शताब्दी के पहले की बतायी जा रही है. यहां के आसपास के क्षेत्रों में पूर्व में भी मृदभांड मिले हैं.
बांका जिला के अमरपुर प्रखंड अंतर्गत भदरिया गांव के समीप चांदन नदी में करीब पचास फीट की दूरी तक ईंटों के बने पुराने भवनों का एक अवशेष मिला है. यह अवशेष यहां चांदन नदी के जमीन के अंदर पायी गयी है. जहां ईंट का साइज लंबाई 18 इंच, चौडाई 9 फीट एवं मोटाई करीब 2 इंच की निकली है. ईंटों का बना यह अवशेष 6ठीं शताब्दी के पहले की बतायी जा रही है. यहां के आसपास के क्षेत्रों में पूर्व में भी मृदभांड मिले हैं.
क्षेत्र में वैदिक युग के खिलौने, बटखरा, मृदभांड सहित स्क्रैपरर्स भी इस इलाकें में इकठ्ठा किये गये हैं
क्षेत्र में वैदिक युग के खिलौने, बटखरा, मृदभांड सहित स्क्रैपरर्स भी इस इलाकें में इकठ्ठा किये गये हैं. पुरातत्वविद सह पूर्व सीओ सतीश कुमार का मानना है कि जिस तरह का ईट की तस्वीर मिली है, उससे स्पष्ट होता है कि यह ईंट हाथ से थापकर बनाया गया है तथा इसे धान के डंठल से पकाया गया है. महात्मा बुद्ध की पहली चारिका के नाम पर विशाखा का नाम आता है. जिन्हें मिगारमाता भी कहा जाता है. विशाखा भद्दई ग्राम की थी, जहां सैकड़ों वर्ष पहले बुद्ध आये थे, बौद्ध विद्धानों ने क्षेत्र में प्राप्त साक्ष्य के आधार पर भदरिया गांव को ही भदई ग्राम बताया है.
भगवान बुद्ध चारिका करते हुए लगभग 12 सौ भिक्षुओं के साथ भद्दिय आए थे
उधर मामले में टीएनबी कॉलेज इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. रविशंकर कुमार चौधरी का कहना है कि बौद्ध ग्रंथों में वर्णित है कि भद्दिय अर्थात भदरिया एक उन्नत ग्राम था, जहां मेण्डक एक बड़े श्रेष्ठी याने व्यपारी थे. बौद्ध ग्रंथों में यह भी वर्णित है कि वैशाली के बाद भगवान बुद्ध चारिका करते हुए लगभग 12 सौ भिक्षुओं के साथ भद्दिय (भदरिया) आये थे. इस बात की भी चर्चा है कि श्रेष्ठी मेण्डक ने भद्दिय आगमन पर भगवान बुद्ध के स्वागत के लिये अपनी सात वर्षीय पोती विशाखा को भेजा था, जो आगे चलकर बुद्ध की एक प्रमुख शिष्या के रुप में विख्यात हुयी. विशाखा के पिता का नाम धनंजय तथा माता का नाम सुमना था. बताया जा रहा है कि छठी शताब्दी में ही उक्त स्थल पर भवनों का निर्माण हुआ होगा. जिसके अवशेष अब मिल रहे हैं.
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भदरिया पहुंचे अधिकारी,पटना के पुरातत्व विभाग को मामले की जानकारी दी
हालांकि पूरे मामले में पुरातत्व विभाग के अवलोकन के बाद ही सटीक जानकारी मिल सकती है. उधर मामले की जानकारी स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा जिला प्रशासन को दी गयी, जिसके बाद एसडीओ मनोज कुमार चौधरी, एसडीपीओ डीसी श्रीवास्तव, थानाध्यक्ष अरविंद कुमार राय व सीओ अनिल कुमार साह आदि ने भदरिया पहुंचकर मामले की जानकारी ली, और पुराने अवशेष का तस्वीर उतारा एवं पटना के पुरातत्व विभाग को मामले की जानकारी दी, साथ ही उक्त स्थल पर वर्तमान में चौकीदार को लगाया गया है.
बुद्ध की पर्यटन भूमि और विभिन्न घटनाओं से जुड़ा है भदई (भदरिया गांव)
प्राचीण ग्रंथों के अनुसार भदरिया गांव में भगवान बुद्ध के पहुंचने की चर्चा है, वैशाली के बाद भगवान बुद्ध चारिका करते हुए यहां पहुंचे थे. जिसको लेकर वर्तमान में गांव के समाजसेवी लखन लाल पाठक के द्वारा क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए लगातार प्रयास जारी है. मालूम हो कि विगत 2018 में विशाखा को लेकर जापान के बौद्ध भिक्षु किरनी हुतो भदरिया गांव पहुंचे थे, जिन्होंने यहां पहुंचकर तत्कालीन गवर्नर के द्वारा दिये गये बौद्ध वृक्ष को लगाया गया था. जबकि 13-14 अप्रैल 2019 को भदरिया गांव में बुद्ध पद का भी शिलान्यास किया गया था. जिस मौके पर डा. रामजी सिंह, डा. शैलेंद्र सिंह, डा. अमरेंद्र, डा. रामचंद्र घोष सहित कई इतिहासकार पहुंचे थे