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बिहार में 110 साल पुराने जर्जर पुल पर दौड़ती रही ट्रेनें, 5 साल पहले ही हो चुका खतरनाक घोषित, मरम्मत शुरू

खगड़िया-बेगूसराय रेलखंड पर उमेशनगर रेलवे स्टेशन के पास गंडक नदी पर बने 110 वर्ष पुराने रेल पुल के क्षतिग्रस्त पिलरों का मरम्मत कार्य शुरू हो गया है. छह करोड़ रुपये की लागत से ये कार्य होगा. प्रभात खबर ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था.

खगड़िया-बेगूसराय रेलखंड पर उमेशनगर रेलवे स्टेशन के समीप गंडक नदी पर बने 110 वर्ष पुराने रेल पुल के क्षतिग्रस्त पिलरों के मरम्मत का काम शुरू हो गया है. इस कार्य पर छह करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. कटिहार-बरौनी रेलखंड के अंतर्गत खगड़िया-उमेश नगर के बीच बुढ़ी गंडक नदी पर बने 110 वर्ष पुराने जर्जर पुल की मरम्मत का कार्य शुरू कर दिया गया है.

प्रभात खबर में छपी खबर तो हरकत में आया प्रशासन

बता दें कि पिछले वर्ष ही इस कार्य की निविदा निकाली गयी थी. लेकिन अधिकारियों के टालमटोल रवैये के कारण काम शुरू होने में तीन महीने का विलंब हुआ.गौरतलब है कि प्रभात खबर में जर्जर पुल के संबंध में प्रमुखता से खबर प्रकाशित होने के बाद ही रेल प्रशासन हरकत में आया. अब जाकर पुल के मरम्मत का काम शुरू हुआ है.

1912 में बने पुल पर चल रही ट्रेनें

बता दें कि खगड़िया व उमेशनगर रेलवे स्टेशन के बीच वर्ष 1912 में गंडक नदी पर पुल बनाया गया था. अंग्रेज जमाने में बना यह पुल फिलहाल क्षतिग्रस्त हो गया है. इस पर कॉशन लेकर ट्रेन 10 से 20 किलोमीटर की रफ्तार से चलायी जा रही है. मिली जानकारी के अनुसार पुल के दूसरे पिलर की जैकेटिंग प्रक्रिया के तहत कार्य तेजी से किया जा रहा है. पिलर की जैकेटिंग में उसके चारों तरफ एक फीट आरसीसी ढलाई किया जाना है.

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ऐसे होगा काम

पुल के पिलर की जैकेटिंग प्रक्रिया के तहत गंडक नदी के नौ मीटर से अधिक गहरे पानी वाले हिस्से में पिलर के चारों तरफ स्टील की कोठी बनाकर उसको वाटर प्रूफ बनाया जायेगा. उसके बाद कोठी से पानी निकालकर पिलर के निचले हिस्से से ऊपर तक उसकी जैकेटिंग की जायेगी. पिलर की जैकेटिंग प्रक्रिया को लेकर मजदूरों द्वारा वर्तमान समय में पिलर तक मटेरियल ले जाने के लिए रास्ता बनाने का काम किया जा रहा है.

पांच वर्ष पहले ही इंजीनियर ने पुल के खतरनाक होने की दी थी रिपोर्ट

वर्ष 2017-18 में रेलवे इंजीनियरों ने निरीक्षण के दौरान पुल के पिलर नंबर दो एवं तीन को डैमेज होने की बात कही थी. इंजीनियरों के पुल के निरीक्षण के बाद ट्रेनों का परिचालन 30 किलोमीटर कॉशन पर किया जाने लगा. पुल की स्थिति लगातार दयनीय होते जाने के आलोक में ट्रेनों का परिचालन 30 किलोमीटर प्रति घंटा से घटाकर 20 किलोमीटर अब 10 किलोमीटर कर दिया गया है. इंजीनियरों के द्वारा 110 वर्ष पुराने पुल को खतरनाक घोषित किए जाने के बाद वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 में पुल के पिलर की मरम्मत करायी गयी.

उसके बाद अधिकारियों की लापरवाही के कारण बीते तीन वर्षों से पुल के पिलर की मरम्मती भी नहीं करायी जा सकी. पुल की मरम्मती का कार्य करा रहे मेसर्स ओम कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर ने स्वीकार किया कि उनकी निविदा पिछले वर्ष स्वीकृत हुई थी परंतु तकनीकी कारणों से मरम्मती कार्य के लिए वर्क आर्डर नहीं मिल सका था.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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