बीरभूम, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मुरारई दो ब्लॉक के पाईकर गांव में एक ऐसा भी मंदिर है जहां बिना किसी प्रतिमा के ही वर्षो से पूजा होती आ रही है. लेकिन इस मंदिर में भक्तों की भीड़ कम नहीं होती. इस अद्भुत मंदिर के प्रति लोगों की आस्था चरम पर है. यही कारण है कि बिना किसी प्रतिमा अथवा मूर्ति के ही इस मंदिर में लोग पूजा कर अपनी मन्नते मांगते हैं. सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर में मौजूद दुर्गा रूपी क्षेपाकाली की पूजा अर्चना होती आ रही है. पाईकर गांव की क्षेपाकाली मंदिर में कोई मूर्ति पूजा नहीं होती है. दुर्गा पूजा एक प्रतीकात्मक मूर्ति के रूप में पत्थर के खंड पर सिंदूर लगाकर की जाती है.
गांव के एक पुजारी ने बताया कि दुर्गा पूजा के चार दिनों के दौरान इस मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती है. बताया जाता है कि पाईकर निवासी एक वैद्य संत ने दुर्गा रूपी क्षेपाकाली की स्थापना कर पूजा की शुरुआत यहां की थी. वैद्य साधक को विलासितापूर्ण जीवन जीने के कारण पागलाखेपा के नाम से जाना जाता था. वर्तमान में हाजरा परिवार के सदस्य इस दुर्गा रूपी क्षेपाकाली की पूजा करते हैं. मंदिर में कोई छत नहीं है. खुले आसमान के नीचे हरी-भरी प्रकृति के आंचल में विराजमान हैं शिला रूपी माता दुर्गा क्षेपाकाली. विशेष पूजा के दिनों में मंदिर परिसर में एक बड़ा मेला लगता है.
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हाजरा परिवार के सदस्य तथा मंदिर के पुरोहित तन्मय सेन हाजरा ने बताया कि दुर्गा रूपी क्षेपाकाली के देश भर में हजारों भक्त हैं. दुर्गा पूजा और काली पूजा के अलावा प्रति शनिवार और मंगलवार को सैकड़ों श्रद्धालु पूजा करने यहां पहुंचते हैं. दुर्गा पूजा और काली पूजा के दौरान रात को मंदिर परिसर में पूजा होती है. घर में कोई भी शुभ कार्य हो तो इस मंदिर में पूजा के साथ शुभ कार्य की शुरुआत स्थानीय लोग करते हैं. जमीन की फसलों से लेकर पेड़ों के फलों तक, सब कुछ इस दुर्गा रूपी क्षेपाकाली को अर्पित करने के बाद भक्त अपने घर में कुछ खाते हैं या इस्तेमाल करते हैं.