Birsa Munda Death Anniversary: नौ जून को भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस है. भगवान बिरसा मुंडा की जयंती हर वर्ष 15 नवंबर को एवं पुण्यतिथि हर वर्ष नौ जून को मनाया जाता है. जब से झारखंड राज्य अलग हुई है, तब से अब तक इनकी जयंती एवं शहादत दिवस एक औपचारिकता सा लगने लगा है. मन में सवाल खड़ा होता है कि जिस भारत का सपना, जिस झारखंड का सपना भगवान बिरसा मुंडा ने देखा था, क्या आज वही भारत है? क्या आज वही झारखंड है? झारखंड के जल, जंगल और जमीन पर नजर डालने के बाद ऐसा लगता है कि भगवान बिरसा का सपना अधूरा रह गया.
जल, जंगल और जमीन को बचाए रखने की चिंता
भले ही जंगल-झाड़, नदियों, तालाबों एवं जमीन को बचाए जाने की हर एक कार्यक्रम में भाषण दी जाती है. लेकिन, भाषण के अनुकूल कार्य नहीं दिखती है. इससे झारखंड के मूल निवासियों में दुखदायी पीड़ा उत्पन्न होती है. झारखंड के विभिन्न जिलों, प्रखंडों एवं गांव में बड़ी-बड़ी कंपनियां स्थापित होने लगी है. इस कारण जंगलों में पेड़-पौधों को काट दिये जा रहे हैं. भू-रैयतों के इच्छा के विरुद्ध जमीन जबरन कंपनी द्वारा ली जा रही है. किसान विस्थापित नहीं होना चाहते हैं, इसके बावजूद उन्हें विस्थापित कर दिया जा रहा है. अगर इसका ताजा उदाहरण देखनी हो, तो हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में आकर देख सकते हैं. यहां एनटीपीसी त्रिवेणी सैनिक द्वारा किसानों एवं रैयतों के इच्छा अनुकूल जमीन अधिग्रहण नहीं की गई. इस व्यवस्था के खिलाफ कई आंदोलन हुए, पर उन्हें किसी न किसी तरह से दबा दिया गया.
कई सवालों का आज भी नहीं मिला जवाब
– क्या भगवान बिरसा मुंडा का जल, जंगल और जमीन बचाने का सपना पूरा हो रहा है
– क्या इसी दिन के लिए भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों से लोहा लिया था
– खनिज संपदा से भरपूर झारखंड का दोहन कौन कर रहा
– हमारा झारखंड राज्य का अलग होने का सपना पूरा हो गया
भगवान बिरसा मुंडा के नाम का लें संकल्प
हे, झारखंड के नागरिक! झारखंड के नवनिर्माण, जल, जंगल, जमीन बचाने, गरीबी एवं बेरोजगारी दूर करने के लिए भगवान बिरसा मुंडा के नाम का संकल्प लीजिए. आप ऐसा काम करें कि भगवान बिरसा मुंडा का सपना पूरा हो जाए. हमारा झारखंड अलग होने का सपना पूरा हो जाए.
मूलवासियों का सपना आज भी अधूरा
झारखंड अलग होने के बाद वैसे तो विकास हुआ, लेकिन झारखंड के मूल निवासियों का सपना अब तक पूरा नहीं हुआ है. झारखंड निर्माण के बाद से पारा शिक्षकों का स्थायीकरण मुद्दा, झारखंड के विभिन्न गांव में अस्पताल, सड़क, पुल- पुलिया, बेरोजगारों को रोजगार, खेत-खलिहान, सब्जियों का आयात -निर्यात करने के लिए सुविधाओं का अभाव, विद्यालयों में खेल एवं चित्रकला समेत अन्य संस्कृति से संबंधित शिक्षकों की कमी, गांव देहातों के स्कूलों में विज्ञान भवन एवं प्रयोगशाला, विज्ञान शिक्षकों की कमी आदि समस्याएं अंगद के पांव की तरह जमे हुए हैं.
…और बिरसा मुंडा ऐसे हो गए शहीद
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1874 को चालकद ग्राम में हुआ. बिरसा मुंडा का पैतृक गांव उलिहातु था. इनके जन्म स्थान को लेकर यद्यपि इतिहासकारों में मतभेद है कि उनका जन्म स्थान चालकद है या उलिहातु. बिरसा का बचपन अपने दादा के गांव चालकद में ही बीता. 1886 से 1890 तक बिरसा का चाईबासा मिशन के साथ रहना उनके व्यक्तितत्व का निर्माण काल था. बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ उलगुलान का आह्वान किया. वे उग्र हो गये. शोषकों, ठेकेदारों और अंग्रेजी चाटुकारों को मार भगाने का आह्वान किया. पुलिस को भगाने की इस घटना से आदिवासियों का विश्वास बिरसा मुंडा पर होने लगा. विद्रोह की आग धीरे-धीरे पूरे छोटानागपुर में फैलने लगी. कोल लोग भी विद्रोह में शामिल हुए. लोगों को विश्वास होने लगा कि बिरसा मुंडा भगवान के दूत के रूप में शोषकों से मुक्ति के लिए स्वर्ग से यहां पहुंचे हैं. अब दिकुओं का राज समाप्त हो जाएगा. अपने कमरे में बिरसा मुंडा आराम से सो रहे थे. काफी मशक्कत के बाद बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया. बिरसा मुंडा के खिलाफ मुकदमा चलाया गया. एक जून, 1900 को डिप्टी कमिश्नर ने ऐलान किया कि बिरसा मुंडा को हैजा हो गया तथा उनके जीवित रहने की कोई संभावना नहीं है. आखिरकार नौ जून, 1900 को भगवान बिरसा मुंडा ने जेल में अंतिम सांस ली.
रिपोर्ट : संजय सागर, बड़कागांव, हजारीबाग.