बिरसा मुंडा ने जिस गांव में अंग्रेजों के दांत खट्टे किये, वह आज भी विकास के लिए कर रहा संघर्ष
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी जिले के उलीहातू में हुआ था, लेकिन अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए उन्होंने पश्चिमी सिंहभूम जिले के बंदगांव प्रखंड की टेबो पंचायत के संकरा गांव को चुना था.
बिरसा मुंडा का जन्म खूंटी जिले के उलीहातू गांव में 15 नवंबर 1875 को हुआ लेकिन उन्होंने जिस धरती पर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था वो आज भी विकास की बाट जोह रहा है. उन्होंने पश्चिमी सिंहभूम जिले के बंदगांव प्रखंड की टेबो पंचायत के संकरा गांव अंग्रेजों से लोहा लिया था. लेकिन आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी ये गांव विकास पथ पर बेहद पिछड़ा नजर आता है.
शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पेयजल, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं. गांव में एक भी सरकारी योजना नहीं चल रही है. वे जिस घर में रहते थे, वह टूट गया है. गांव में एक उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन 2013 से बंद है. गांव के बच्चे स्कूल जाने के बजाय दिनभर जंगल में मवेशी चराते हैं. नलकूप और सोलर जलमीनार खराब हैं. इस कारण ग्रामीण नदी किनारे चुआं खोद कर पानी पीते हैं. आंगनबाड़ी केंद्र भवनहीन है.
सोलर आधारित बिजली की व्यवस्था पांच साल पहले की गयी थी. एक साल चलने के बाद वह भी खराब हो गयी. चार सालों से गांव में बिजली नहीं है. स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने के कारण बीमार पड़ने पर इलाज के लिए 40 किलोमीटर दूर चक्रधरपुर जाना पड़ता है. गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना का एक भी लाभुक नहीं है. लोग मिट्टी के घरों में रहते हैं. संकरा से टेबो जाने वाली सड़क का निर्माण सालों बाद अब शुरू हुआ है.
अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण संकरा गांव में सरकारी अफसर या जनप्रतिनिधि नहीं आते हैं, जिससे इसका विकास नहीं हो पा रहा है. ग्रामीणों की मानें, तो पंचायत के मुखिया भी कभी-कभी ही गांव आते हैं.
लकड़हारे के साथ गांव में मुंशी का काम करते थे बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान किया था. तीन-धनुष को हथियार बना कर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी. इसके बाद अंग्रेजों ने उनकी गिरफ्तारी का एलान किया. जब उनकी तलाश तेजी से होनी लगी, तो वह संकरा गांव में रह कर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाने लगे. यहीं से तीन फरवरी 1900 को उन्हें गिरफ्तार किया गया था.
उनकी गिरफ्तारी के बाद संकरा गांव इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. गिरफ्तारी से पहले संकरा गांव में बिरसा मुंडा एक लकड़हारे के साथ मिलकर मुंशी का काम करते थे. संकरा के ग्रामीण साहू मुंडा के घर पर रह कर वह अपने अभियान को जारी रखे हुए थे. साहू मुंडा के भाई जावरा मुंडा के साथ मिलकर वह अंग्रेजों की साजिशों को नाकाम करने में लगे थे. घर के बरामदे में ही दोनों रात गुजारते थे. जावरा मुंडा की छोटी बहन कैरी मुंडा उन्हें भोजन बनाकर खिलाती थीं.
तीर-धनुष से ही अंग्रेजों से लड़े और जीते भी
अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा मुंडा की लड़ाई यूं तो बहुत कम उम्र में ही शुरू हो गयी थी, लेकिन एक लंबा संघर्ष 1897 से 1900 के बीच चला. इस बीच मुंडा जाति के लोगों और अंग्रेजों के बीच युद्ध होते रहे. बिरसा और उनके समर्थकों ने तीन-कमान से ही अंग्रेजों से युद्ध लड़ा और जीता भी. बाद में अपनी हार से गुस्साए अंग्रेजों ने कई आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार किया.
जनवरी 1900 में डोम्बरी पहाड़ पर एक जनसभा को संबोधित कर रहे बिरसा मुंडा पर अंग्रेजों ने हमला किया. इस हमले में कई महिलाएं व बच्चे मारे गये. तीन फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों ने इन्हें बंदी बना लिया. 9 जून 1900 को रांची कारागार में अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को जहर देकर मार दिया. रांची के डस्टिलिरी पुल के पास बिरसा मुंडा की समाधि बनी है.
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Posted By: Sameer Oraon