भगवान बिरसा मुंडा की 15 नवंबर (मंगलवार) को जयंती है. देश भर में उनकी जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जायेगा. भगवान बिरसा मुंडा की वीरता और अंग्रेजों के खिलाफ उनके संघर्ष को याद किया जायेगा. बिहार से अलग होकर बना झारखंड 15 नवंबर को 22 साल का हो जायेगा. बिरसा जयंती की पूर्व संध्या पर प्रभात खबर की टीम ने उनके गांव का दौरा किया. उस गांव की जमीनी हकीकत की पड़ताल की, जहां धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था.
उलिहातू में भगवान बिरसा के नाम पर लाइब्रेरी, रहता है बंद
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 64 किलोमीटर दूर खूंटी जिला में स्थित है उलिहातू, जहां भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. खूंटी-चाईबासा मुख्य सड़क से जब आप उलिहातू के लिए जायेंगे, तो सड़कें चकाचक मिलेंगी. यहां आते ही आपको लगेगा कि आप किसी विकसित देश में आ गये हैं. बिजली की व्यवस्था है. सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है. गांव में भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर पुस्तकालय यानी लाइब्रेरी भी बना है. लेकिन, यह बंद ही रहता है.
उलिहातू में बिना डॉक्टर और नर्स के चलता है स्वास्थ्य उप-केंद्र
उलिहातू गांव जाने वाली सड़क पर दो जगह पुलिस कैंप हैं. उलिहातू में भी एक कैंप है. इसी कैंप परिसर में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा है, जिस पर माल्यार्पण करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू खूंटी आ रही हैं. इसी परिसर में एक आवासीय विद्यालय है. स्वास्थ्य उप-केंद्र भी है. लेकिन, गंगी मुंडा ने प्रभात खबर की टीम को बताया कि स्वास्थ्य उप-केंद्र बस नाममात्र का है. यहां न तो कभी कोई डॉक्टर आता है, न ही नर्स यहां रहती है. कोई बीमार पड़ जाये, तो उसका यहां इलाज नहीं होता.
कच्चे मकान में रहते हैं बिरसा के वंशज
चमचमाती सड़क और बिजली की सुविधा तो है, लेकिन बिरसा के गांव में पक्का मकान का घोर अभाव है. यहां तक कि भगवान बिरसा के वंशज आज भी कच्चे मकान में ही रहते हैं. स्वच्छ भारत अभियान के तहत उनके आंगन में एक शौचालय बना है. बिरसा मुंडा के वंशज जिस मकान में रहते हैं, वहां दो या तीन कमरे हैं. परिवार इकट्ठा होता है, तो कुल 17-18 लोग इन्हीं घरों में रहते हैं.
उलिहातू में पेयजल की भारी समस्या
धरती आबा की प्रपौत्र वधू गंगी मुंडा कहती हैं कि परिवार के लोग खूंटी या अन्य जगहों पर जाकर काम करते हैं. गांव में पेयजल की घोर समस्या है. बिरसा मुंडा के वंशजों को ही नहीं, पूरे उलिहातू गांव को पेयजल की किल्लत झेलनी पड़ती है. गांव में जलमीनार है, लेकिन गर्मी के दिनों में उससे पानी नहीं मिल पाता. लोगों को गांव से करीब एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, चुआं का पानी लाने के लिए.