आलोक धन्वा. हिंदी के प्रख्यात कवियों में से एक सुप्रसिद्ध कवि. आज उनका जन्मदिन है. बिहार के मुंगेर में 2 जुलाई, 1948 को जन्मे आलोक धन्वा कवि होने से अधिक एक कवि कार्यकर्ता के रूप में ज्यादा जाने पहचाने गये. अस्सी के दशक में उन्होंने कविता को एक नयी पहचान दी. उनकी कविताएं, जैसे भागी हुई लड़कियां, गोली दागो पोस्टर, ब्रूनों की बेटियां बेहद चर्चित हैं. आलोक धन्वा की कविताएं एक तरह से युवा लड़कियों और गरीब बच्चों की आत्मा का पाठ हैं. उनके जन्मदिन पर पढ़िये उनकी कुछ कविताएं…
मैं उसका मस्तिष्क नहीं हूं
मैं महज उस भूखे बच्चे की आंत हूं.
उस बच्चे की आत्मा गिर रही है ओस की तरह
जिस तरह बांस के अंखुवे बंजर में तड़कते हुए ऊपर उठ रहे हैं
उस बच्चे का सिर हर सप्ताह हवा में ऊपर उठ रहा है
उस बच्चे के हाथ हर मिनट हवा में लंबे हो रहे हैं
उस बच्चे की त्वचा कड़ी हो रही है
हर मिनट जैसे पत्तियां कड़ी हो रही हैं
और
उस बच्चे की पीठ चौड़ी हो रही है जैसे कि घास
और
घास हर मिनट पूरे वायुमंडल में प्रवेश कर रही है
लेकिन उस बच्चे के रक्त़संचार में
मैं सितुहा-भर धुंधला नमक भी नहीं हूं
उस बच्चे के रक्तसंचार में
मैं केवल एक जलआकार हूं
केवल एक जल उत्तेजना हूं.
पुराने शहर उड़ना
चाहते हैं
लेकिन पंख उनके डूबते हैं
अक्सर ख़ून के कीचड़ में !
मैं अभी भी
उनके चौराहों पर कभी
भाषण देता हूं
जैसा कि मेरा काम रहा
वर्षों से
लेकिन मेरी अपनी ही आवाज
अब
अजनबी लगती है
मैं अपने भीतर घिरता जा रहा हूं
सवाल ज्यादा हैं
और बात करने वाला
कोई-कोई ही मिलता है
हार बड़ी है मनुष्य होने की
फिर भी इतना सामान्य क्यों है जीवन ?
देखना
एक दिन मैं भी उसी तरह शाम में
कुछ देर के लिए घूमने निकलूंगा
और वापस नहीं आ पाऊंगा !
समझा जायेगा कि
मैंने ख़ुद को ख़त्म किया !
नहीं, यह असंभव होगा
बिल्कुल झूठ होगा !
तुम भी मत यक़ीन कर लेना
तुम तो मुझे थोड़ा जानते हो !
तुम
जो अनगिनत बार
मेरी कमीज़ के ऊपर ऐन दिल के पास
लाल झंडे का बैज लगा चुके हो
तुम भी मत यक़ीन कर लेना.
अपने कमज़ोर से कमज़ोर क्षण में भी
तुम यह मत सोचना
कि मेरे दिमाग़ की मौत हुई होगी !
नहीं, कभी नहीं !
हत्याएं और आत्महत्याएं एक जैसी रख दी गयी हैं
इस आधे अंधेरे समय में.
फर्क कर लेना साथी !
Also Read: साहित्य-उत्सवों ने हिंदी समाज को लोकतांत्रिक बनाया
Posted By : Vishwat Sen