ज्ञानवापी विवाद: धार्मिक उन्माद की तपती दोपहरी में ठंडी हवा का झोका है बिस्मिल्लाह खां का यह वीडियो

Varanasi : उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के इस वीडियो को देखने के बाद आपको ऐसा महसूस होगा मानो धार्मिक उन्माद की तपती दोपहरी में इंसानियत की ठंडी हवा आपको छू रही है.

By Rajat Kumar | May 18, 2022 3:57 PM
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Varanasi : बनारस जो अपनी मस्ती के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है पर इस समय ये शहर किसी और वजह से सुर्खियों में बना हुआ है. ऐसा दावा किया जा रहा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है. शिवलिंग मिलने के दावे के बाद से सोशल मीडिया पर एक एक अलग ही नजारा देखेने को मिल रहा है. हर पक्ष दूसरे की टांग खींचने में लगा है. वहीं सोशल मीडिया पर ट्रोल्स आर्मी के फैले इस मायाजाल के बीच एक सुकून देने वाला वीडियो भी सामने आया है. इस वीडियो को देखने के बाद आपको ऐसा महसूस होगा मानो धार्मिक उन्माद की तपती दोपहरी में इंसानियत की ठंडी हवा आपको छू रही है.

https://twitter.com/omthanvi/status/1373574539058114562

सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हो रहा है वो है दुनिया को शहनाई (Bismillah Khan Shehnai) की सुरीली तान से परिचय कराने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खां (Bismillah Khan) की. एक समय था कि जब बनारस में सुबह की पहली किरण के साथ शहनाई का सुर उठता सुनाई पड़ता था. मंदिरों में एक ओर घंटियों की टन-टन होती, तो दूसरी ओर शहनाई की तेज़ धुन बजती. ये शहनाई कोई और नहीं, बल्कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बजाते थे. एक मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदू मंदिर में रियाज़ किया.

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सोशल मीडिया जो वीडियो वायरल हो रहा है कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान कहते हैं कि “गंगा जी सामने है, यहाँ नहाइए, मस्जिद है, नमाज़ पढ़िए और बालाजी मंदिर में जा के रियाज़ करिए.” यह दर्शाता है की उनके जीवन में मंदिर और गंगा की क्या भूमिका थी. यह बिस्मिल्लाह खान का संगीत और व्यवहार ही था, जिसने उन्हें भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पद्म श्री जैसे सर्वोच्च पुरस्कार दिलवाए.

15 अगस्‍त 1947 को देश की आजादी की पूर्व संध्या पर लालकिले पर फहराते तिरंगे के साथ बिस्मिल्लाह खान की शहनाई आजाद भारत का स्वागत किया था. उनसे जुड़ा किस उनसे जुड़ा किस्सा ये है कि खुद जवाहर लाल नेहरू ने शहनाई वादन के लिए उन्हें आमंत्रित किया था. उनकी शहनाई की धुन अफगानिस्तान, यूरोप, ईरान, इराक, कनाडा, पश्चिम अफ्रीका, अमेरिका, जापान, हांगकांग और विश्व भर की लगभग सभी देशों में गूंजती रही.

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