Gujarat Assembly Election 2022: बीजेपी ने 1980 में अपनी स्थापना के बाद गुजरात में हुए सभी 9 विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक ही बार एक मुससमान को उम्मीदवार बनाया है. पिछले 27 वर्षों से गुजरात की सत्ता पर काबिज बीजेपी ने आखिरी बार 24 साल पहले भरूच जिले की वागरा विधानसभा सीट पर एक मुस्लिम उम्मीदवार को उतारा था, जिसे हार का सामना करना पड़ा था.
वहीं, मुसलमानों को उम्मीदवार बनाने के मामले में भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले कांग्रेस का रिकार्ड बेहतर रहा है. हालांकि, आबादी के हिसाब से उन्हें टिकट देने में उसने भी कंजूसी ही बरती है. वर्ष 1980 से 2017 तक हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कुल 70 मुसलमान नेताओं को प्रत्याशी बनाया और इनमें से 42 को चुनाव में जीत मिली. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 6 मुसलमानों को टिकट दिया था, इनमें से 4 ने जीत दर्ज की थी. वहीं, वर्ष 2012 के चुनाव में उसने 5 मुसलमानों को टिकट दिया और इनमें से दो ने जीत हासिल की. साल 2007 के चुनाव में कांग्रेस ने 6 उम्मीदवार उतारे थे, इनमें से 3 को जीत मिली. इसी प्रकार साल 2002 में 5 में से 3, 1998 में 8 में से 5, 1995 में एक में एक, 1990 में 11 में 2, 1985 में 11 में से 8 और 1980 में 17 उम्मीदवारों में से 12 ने जीत दर्ज की.
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, गुजरात में मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है और इनकी आबादी में 10 फीसदी के करीब हिस्सेदारी है. वहीं, गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से करीब 30 सीटों पर उनकी आबादी 15 फीसदी से अधिक है. बताते चलें कि इस साल के अंत तक गुजरात विधानसभा के चुनाव होने हैं. 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 18 फरवरी 2023 को समाप्त हो रहा है. ऐसे में चुनाव आयोग कभी भी विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर सकता है.
90 के दशक से ही गुजरात की राजनीति में बीजेपी का दबदबा रहा है. वर्ष 1990 के चुनाव में विधानसभा त्रिशंकु हुई और बीजेपी व जनता दल गठबंधन की सरकार बनी. इसके बाद, 1995 के चुनावों से लेकर 2017 तक सभी विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने जीत दर्ज की. पीएम बनने से पहले नरेन्द्र मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. बीजेपी ने 1998 के विधानसभा चुनाव में वागरा विधानसभा से अब्दुल काजी कुरैशी को टिकट दिया था. इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार इकबाल इब्राहिम ने हराया था. इब्राहिम को 45,490 मत मिले थे. जबकि, कुरैशी को 19,051 मतों से संतोष करना पड़ा था. इसके बाद भाजपा ने आज तक किसी भी मुसलामन को उम्मीदवार नहीं बनाया.
मुसलमान उम्मीदवारों के संबंध में बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा कि यह सही है कि भारतीय जनता पार्टी ने पिछले कई गुजरात चुनावों में मुसलमानों को टिकट नहीं दिया, लेकिन ऐसा नहीं है कि यह उसके संविधान में लिखा है कि वह उन्हें टिकट ही नहीं देगी. उन्होंने कहा कि बीजेपी धर्म और जाति के आधार पर उम्मीदवार तय नहीं करती, बल्कि उम्मीदवारों की स्थानीय लोकप्रियता और उनके जीतने की क्षमता के आधार पर टिकट तय करती है. सिद्दीकी ने बताया कि बीजेपी अल्पसंख्यक मित्र कार्यक्रम के जरिए बूथ और जिला स्तर पर मुसलमानों को पार्टी से जोड़ रही है और यह सुनिश्चित कर रही है कि उन्हें केंद्र व राज्य सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिले. उन्होंने उम्मीद जताई कि 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीत की क्षमता के आधार पर मुसलमानों को भी टिकट देगी.
साल 1960 में गुजरात राज्य के गठन के बाद 1962 से लेकर 1985 तक के चुनावों में कांग्रेस का दबदबा था. हालांकि, इस दौर में भी मुसलमानों को टिकट देने में सियासी दलों ने कंजूसी बरती. इस दौरान विधानसभा पहुंचने वाले मुसलमान उम्मीदवारों की संख्या तीन दर्जन के करीब रही. गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष वजीरखान पठान ने पीटीआई-भाषा से कहा कि कांग्रेस की बदौलत ही मुसलमान गुजरात विधानसभा की दहलीज लांघता रहा है. उन्होंने कहा कि इस बार के चुनाव में हम उन्हीं सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार उतारेंगे, जहां जीत की संभावना प्रबल होगी. शेष सीटों पर हमारी कोशिश बीजेपी के उम्मीदवार को पराजित करने की होगी. हम पार्टी पर टिकटों के लिए अनावश्यक दबाब नहीं बनाएंगे.
गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष वजीरखान पठान ने कहा कि जब से गुजरात की सत्ता में बीजेपी आई है, मुसलमानों का चुनाव जीतना दूभर हो गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सांप्रदायिक राजनीति करती है और यह इस बात से भी साबित होता है कि वह इतने वर्षों में उसने सिर्फ एक ही मुसलमान को टिकट देने योग्य समझा. उल्लेखनीय है कि गुजरात के विधानसभा चुनावों के इतिहास में सिर्फ दो ही बार त्रिशंकु विधानसभा बनी है. पहली बार 1975 के चुनाव में बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में जनता मोर्चा और दूसरी बार 1990 के चुनाव में चिमन भाई पटेल के नेतृत्व में किसान मजदूर लोक पक्ष (KMLP), जनता दल और बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी. (इनपुट: भाषा)