आगरा. उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की घोषणा हो चुकी है. दो चरणों में नगर निकाय चुनाव होंगे और 13 मई को मतगणना की जाएगी. जिसके बाद प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला सामने आएगा. वहीं आगरा की बात करें तो अभी तक आगरा में जब से नगर निगम के चुनाव शुरू हुए हैं, तब से लेकर अब तक महापौर के पद पर भाजपा का ही कब्जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी के अलावा किसी भी पार्टी का प्रत्याशी महापौर नहीं बन पाया है. लगातार 34 साल से कमल का निशान आगरा में मेयर पद की सीट पर अपना जलवा बिखेरते हुए आ रहा है. आपको बता दें नगर निगम में सर्वप्रथम 1989 में महापौर का चुनाव हुआ था और पिछला चुनाव 2017 में हुआ था. इन सभी चुनावों में 6 बार भाजपा को ही महापौर की सीट मिली. वहीं बताया जाता है कि कई चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने भाजपा को टक्कर जरूर दी. लेकिन, जीत हासिल नहीं की.
वहीं सपा और कांग्रेस महापौर चुनाव में तीसरे व चौथे स्थान पर रही. इस बार नगर निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी भी मैदान में उतरी है. जानकारी के अनुसार नगर निगम के चुनाव में पहली बार भाजपा के नेता रमेश कांत लवानिया 1989 में महापौर बने उस समय यह सीट अनारक्षित थी. जिसके बाद 1995 में यह सीट अनुसूचित जाति महिला हो गई. जिस पर भाजपा की बेबी रानी मौर्य ने जीत हासिल की. वर्ष 2000 में अनुसूचित जाति की सीट पर ही भाजपा के किशोरीलाल माहौल मेयर बने. फिर से 2006 में अनुसूचित जाति महिला की सीट पर अंजुला सिंह माहौर ने अपना परचम लहराया और बीजेपी की महापौर बनी.
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वहीं 2012 में भी यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही जिसमें इंद्रजीत आर्य ने भाजपा से जीत हासिल की. 2017 में फिर से यह सीट अनारक्षित हो गई और भाजपा के नवीन जैन यहां से महापौर बने. इस बार फिर से आगरा की महापौर सीट को अनुसूचित जाति महिला किया गया है. इस बार देखने वाली बात होगी कि इस सीट पर कमल का फूल खिलेगा या अन्य दल अपना कब्जा जमाएंगे. नगर निकाय चुनाव को लेकर भाजपा, बसपा, सपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अपनी चुनावी बिसात बिछाना शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी इस बार महापौर के चुनाव में मुस्लिम पिछड़ा और अनुसूचित वर्ग को लेकर समीकरण बनाने में जुटी हुई है.