Bloody Daddy Movie Review: कमजोर स्क्रीनप्ले पर बनी एक एवरेज फिल्म है ब्लडी डैडी
Bloody Daddy Movie Review: बॉलीवुड एक्टर शाहिद कपूर की मोस्ट अवेटेड एक्शन थ्रिलर फिल्म आज सिमेमाघरों में रिलीज हुई. फिल्म में नयापन नहीं है. इसका ट्रीटमेंट ही है, जो आपको इस फिल्म से बांधे रखता है. फिल्म एक रात की कहानी है और इसे ख़ालिस एक्शन के अंदाज में कहा गया है.
फ़िल्म – ब्लडी डैडी
निर्माता- ज्योति देशपांडे
निर्देशक – अली अब्बास ज़फर
कलाकार – शाहिद कपूर, रोनित रॉय,जीशान कादरी, डायना पेंटी, संजय कपूर, सरताज कक्कड़, बादशाह और अन्य
रेटिंग – ढाई
प्लेटफार्म – जियो सिनेमा
तीन दशक के लम्बे करियर में अभिनेता शाहिद कपूर की आज रिलीज हुई फिल्म ब्लडी डैडी पहली एक्शन फिल्म करार दी जा रही है. उनकी यह फिल्म 2011 की फ्रेंच फिल्म स्लीपिंग नाइट्स का हिंदी रिमेक है. गौरतलब है कि कमल हासन ने इसका तमिल रीमेक 2015 में ही बना दिया था. खैर हिंदी रिमेक पर आते हैं, कहानी में नयापन नहीं है, ड्रामे की भी जबरदस्त कमी है हालांकि फिल्म का ट्रीटमेंट, इसका एक्शन और कलाकारों का अभिनय जरूर इस औसत फिल्म को एक बार देखने के काबिल बना गया है.
वही पुरानी है कहानी
फिल्म की कहानी नारकोटिक्स डिपार्टमेंट में काम कर रहे सुमेर (शाहिद कपूर) की है, जो एक बड़ी ड्रग्स की तस्करी को रोकता है और 50 करोड़ की कीमत के ड्रग्स को जब्त कर लेता है, लेकिन यह जांबाज ऑफिसर आम हिंदी फिल्मों के हीरोज के विपरीत उसमे वह अपना फायदा करना चाहता है. यह आसान नहीं है क्योंकि यह ड्रग पावरफुल बिजनेसमैन सिकंदर (रोनित रॉय) का है, जो किसी भी कीमत पर इस ड्रग्स को वापस पाना चाहता है, इसके लिए वह सुमेर के बेटे को किडनैप कर लेता है. उसके बाद शुरू होती है सुमेर द्वारा उसके बेटे को छुड़ाने की जंग, जिसमें सिकंदर, उसके भाई और उसके साथियों के साथ- साथ नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के करप्ट अधिकारी (जीशान कादरी, राजीव खंडेलवाल) और ईमानदार ऑफिसर (डायना पेंटी) भी सुमेर की राह का रोड़ा है. सुमेर अपने बेटे को किस तरह से ड्रग माफिया के चंगुल से छुड़वाता है. यही आगे की कहानी है.
स्क्रिप्ट की खूबियां और खामियां
2011 की इस मुल कहानी में नयापन नहीं है. इसका ट्रीटमेंट ही है, जो आपको इस फिल्म से बांधे रखता है.फिल्म एक रात की कहानी है और इसे ख़ालिस एक्शन के अंदाज में कहा गया है. हां बीच-बीच में थोड़ा बहुत ह्युमर संवाद के जरिये फिल्म में परोसने की कोशिश की गयी है, लेकिन बहुत कम जगह मेकर्स इसमें कामयाब हुए हैं. फिल्म में गीत संगीत के जरिये एक्शन को परदे पर एक अलग अंदाज में परिभाषित करने की कोशिश हुई है, हालांकि वह पर्दे पर यादगार अनुभव साबित नहीं हो पाया है.
स्क्रिप्ट की खामियां
स्क्रिप्ट की खामियों की बात करें, तो यह फिल्म पिता और बेटे के रिश्ते की कहानी है, लेकिन फिल्म में इस रिश्ते को उस मजबूती के साथ स्थापित नहीं किया गया है, जो कहानी की सबसे अहम जरूरत थी. डायना पेंटी और शाहिद कपूर के किरदार का इक्वेशन भी अधूरा सा ही रह गया है. किसी भी किरदार की बैक स्टोरी पर कुछ काम नहीं किया गया है, जिससे किरदार थोड़े अधूरे से लगते हैं.इसके अलावा फिल्म की लम्बाई भी अखरती है.फिल्म की एडिटिंग पर थोड़ा काम करने की जरूरत थी. पहले हाफ में किरदारों के बिल्डअप में थोड़ा ज़्यादा समय लिया गया है और सेकेंड हाफ में पूरा फोकस सिर्फ एक्शन पर ही रह गया है.
शाहिद कपूर और रोनित रॉय रहे हैं जबरदस्त
अभिनय की बात करें तो शाहिद कपूर अपने इस एक्शन अवतार में छाप छोड़ गए हैं. उन्हें देशी जॉन विक कहा जा सकता है, जिसमें कबीर सिंह की भी झलक मिलती है. रोनित रॉय जबरदस्त रहे है. संजय कपूर और राजीव खंडेलवाल सीमित स्क्रीन स्पेस के बावजूद याद रह जाते हैं.डायना पेंटी के लिए फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था. जीशान कादरी, अंकुर भाटिया सहित बाकी के किरदारों ने भी अपनी-अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.
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देखें या ना देखें
जियो सिनेमा पर यह फिल्म फ्री में स्ट्रीम हो रही है, ऐसे में यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है.