साल 1973, देश में अभी इमरजेंसी लागू नहीं हुई थी. एक तरफ देश का मध्यम वर्ग मजबूत हो रहा था, संस्कृति, मूल्य और जीवन दर्शन स्वरूप ग्रहण कर रहा था. समाज का ढाँचा और दिशा तय हो चली थी. दूसरी ओर व्यवस्था से मोहभंग की शुरुआत हो चली थी, तो तीसरी ओर चीन युद्ध की हार से गिरा मनोबल पाकिस्तान से जीत के बाद फिर से ऊँचा हो रहा था. उसी साल सिल्वर स्क्रीन पर एक फिल्म आयी, नाम था बॉबी और उसने आते ही दर्शकों पर जादू सा कर दिया. ऋषि ने फिल्म ‘बॉबी’ के साथ एक युवा अभिनेता के रूप में अपना डेब्यू किया था.
फ़िल्मी परिवार से होने के कारण ऋषि कपूर हमेशा से ही फिल्मों में अभिनय करने की रूचि रखते थे. उन्होने भी अपने दादा और पिता के नक्शे कदम पर पैर रखते हूए फिल्मों में अभिनय किया और वे एक सफल अभिनेता के रूप में उभर आए. श्री 420 से बॉलीवुड में अपने अभिनय की शुरूआत करने वाले ऋषि कपूर ने पर्दे पर हर तरह के जीवन को जीया. बॉबी के एक चॉकलेटी बॉय से लेकर अग्निपथ के रऊफ लाला तक ऋषि कपूर ने अपने अभिनय से हर तरह के किरदार को जीवंत कर दिया. बॉबी फिल्म के निर्देशक ‘राज कपूर’ ही थे और फिल्म में ऋषि ने ‘राजा’ नाम का किरदार अभिनय किया था. बॉबी’ की जबरदस्त सफलता के बाद ऋषि 90 से ज्यादा फिल्मों में रोमांटिक रोल किया.
साल 1989 की ऋषि की सुपरहिट फिल्म का नाम ‘चांदनी’ था. इस फिल्म के निर्देशक ‘यश चोपड़ा’ थे और फिल्म में ऋषि ने ‘रोहित गुप्ता’ नाम के किरदार को दर्शाया था। इस फिल्म में ऋषि के साथ अभिनेत्री श्रीदेवी ने मुख्य किरदारों को दर्शाया था. फिल्म को दर्शको ने बहुत पसंद किया था और साथ ही फिल्म में ऋषि और श्रीदेवी के रोमांस को भी बहुत पसंद किया गया था. अब दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहे. दामिनी, अमर अकबर एंथनी, कर्ज़, बॉबी, 102 नॉट आउट, मेरा नाम जोकर, हिना जैसी फिल्मों के ज़रिए ऋषि कपूर ने बॉलीवुड में अपनी अलग ही छाप छोड़ी. उन्होंनेअपने अभिनय से लोगों को हंसाया, गुदगुदाया और रुलाया.
साल 1970 में फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड’ जितने वाले ऋषि कपूर ने अपने डेब्यू फिल्म में ही बेस्ट एक्टर अवार्ड भी जीता था. फिल्म ‘बॉबी’ के लिए उन्हें ‘बेस्ट एक्टर’ का अवार्ड दिया गया था. 2008 में ‘फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था. साल 2016 में ‘स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था.
आज ऋषि कपूर के रूप में भारतीय सिनेमा का एक नयाब सितारा हमें छोड़ कर चला गया. उनके जाने पर आंनद फिल्म के यही बोल याद आते हैं .. ‘बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता.