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स्मृतिशेष- योगेश : सपनों का राही चला जाये सपनों से आगे कहां…

bollywood lyricist yogesh gaur died: एक दिन सपनों का राही चला जाये सपनों से आगे कहां.. ‘आनंद’ फिल्म के गीत ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय’ का यह अंतरा सुपर स्टार राजेश खन्ना के निधन के बाद बार-बार सामने से गुजरा. यूं तो सत्तर के दशक से यह गीत लोगों की जुबान और जेहन में बसा है. इसे जब तब हम सुनते, गाते, गुनगुनाते हैं और इसके साथ जिंदगी की पहेली में उलझते-सुलझते सपनों से आगे की ओर देखते हैं.

स्मृतिशेष- योगेश : (मार्च 19, 1943 – मई 29, 2020)

एक दिन सपनों का राही चला जाये सपनों से आगे कहां.. ‘आनंद’ फिल्म के गीत ‘जिंदगी कैसी है पहेली हाय’ का यह अंतरा सुपर स्टार राजेश खन्ना के निधन के बाद बार-बार सामने से गुजरा. यूं तो सत्तर के दशक से यह गीत लोगों की जुबान और जेहन में बसा है. इसे जब तब हम सुनते, गाते, गुनगुनाते हैं और इसके साथ जिंदगी की पहेली में उलझते-सुलझते सपनों से आगे की ओर देखते हैं.

लेकिन कितने लोगों को इस गीत से रूबरू होते ही इस गीत को शब्दबद्ध करने वाले गीतकार योगेश याद आते हैं! अकसर ये होता है कि कुछ गीत हमें याद रह जाते हैं, हम उन्हें रीप्ले कर-कर के सुनते हैं, लेकिन उसे शब्दों से सजानेवाले का नाम हमें नहीं पता होता. ऐसे ही सवाल ने योगेश के नाम से परिचय कराया. ये वही योगेश हैं, जिनके गीतों में जिंदगी कभी बड़ी सूनी सूनी सी लगती है, तो कभी रजनीगंधा की खुशबू में महकती है. कोई ख्यालों के आंगन में सपनों के दीप जला जाता है, तो कहीं फूल खिलखिलाकर हंस देते हैं.

गीतकार योगेश का पूरा नाम योगेश गौड़ था. उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे योगेश जब महज सोलह साल के थे, उनके सिर से पिता का साया उठ गया. पढ़ाई बीच में ही छोड़ काम की तलाश में वे मुंबई चले आये. मगर उनकी तलाश कहां जाकर ठहरेगी, वे खुद नहीं जानते थे. बेरोजगारी के ये दिन मरीन ड्राइव और हैंगिंग गार्डन में घंटों खाली बैठे हुए बीतते. उनके खाली मन में विचारों का सैलाब उफनता-उतराता रहता. ये विचार उनके भीतर के लेखक को गढ़ने लगे.

शुरुआती दिनों में संवाद लेखन को जीवन यापन का जरिया बनाया. लेकिन भीतर का गीतकार कविता भी करता रहता. इन्हीं दिनों रॉबिन बनर्जी से मुलाकात हुई. उन्होंने अपनी फिल्म ‘सखी रॉबिन’ में योगेश के लिखे छह गीतों को शामिल किया. एक गीत के 25 रुपये के हिसाब से 150 रुपये मेहनताना मिला. संघर्ष के दिनों में यह एक बड़ा सहारा था. आगे रॉबिन की ‘मार्वेल मैन’,‘फ्लाइंग सर्कस’,‘एडवंचर ऑफ रॉबिन हुड’ जैसी स्टंट फिल्मों में योगेश ने गीत लिखे. लेकिन बतौर गीतकार प्रसिद्धि मिली ह्रषिकेश मुखर्जी की ‘आनंद’ से. गीतकार शैलेंद्र की मौत के बाद संगीतकार सलिल चौधरी एक बेहतरीन गीतकार की तलाश में थे.

योगेश को ये बात सविता दी (जो आगे चलकर सलिल चौधरी की जीवनसंगिनी बनीं) से पता चली, जिन्हें वे अपना लिखा अकसर पढ़ाया करते थे. वे उनसे मिलने जा पहुंचे. सलिल चौधरी ने उन्हें गाना लिखने के लिए आधे घंटे का समय दिया. लेकिन वे एक शब्द भी नहीं लिख सके और उनके घर से बाहर चले आये. बाहर बस का इंतजार कर ही रहे थे कि गाने की एक लाइन सूझी और सलिल चौधरी के घर की ओर वापस मुड़ गये. सलिल दा को वह लाइन बहुत पंसद आयी और इस तरह ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाये’ गीत बना और योगेश नाम का गीतकार भी. इस फिल्म में शामिल योगेश का लिखा एक और यादगार गीत ‘जिंदगी कैसी है पहेली’, पहले फिल्म में नहीं था.

संगीतकार सलिल चौधरी ने फिल्म पूरी हो जाने के बाद इसे टाइटल गीत के लिए लिखवाया था. राजेश खन्ना ने इसे सुना, तो इसके दीवाने हो गये और निर्देशक ह्रषिकेश मुखर्जी को मनाया कि इतने अच्छे गीत को टाइटल पर जाया करने की बजाय उन पर फिल्माया जाये. उनके आग्रह के बाद इसे राजेश पर फिल्माया गया और कहानी के बीच में शामिल किया गया. इस गीत की लोकप्रियता आज भी कम नहीं हुई है.

एक उम्दा गीतकार के तौर पर योगेश की यह शुरुआत थी. ह्रषिकेश मुखर्जी ने ‘मिली’ के गीत भी उन्हीं से लिखवाये. इस के तीनों गीत ‘मैंने कहा फूलों से’,‘बड़ी सूनी सूनी है जिंदगी, ऐ जिंदगी’ और ‘आये तुम याद मुझे’ खासे लोकप्रिय हुए. उन्होंने बासु चटर्जी की फिल्में ‘रजनीगंधा’,‘छोटी सी बात’,‘बातों बातों में’ के लिए भी यादगार गीत लिखे. योगेश के गीतों की एक बड़ी खूबी है, उसमें बहुत ही सहजता से शुद्ध हिंदी शब्दों का इस्तेमाल. उनकी यह खूबी उन्हें प्रदीप और शैलेंद्र जैसे गीतकारों के करीब ले जाती है. इससे हिंदी साहित्य से उनका जुड़ाव भी जाहिर होता है.

योगेश ने अपने कॅरियर में सलिल चौधरी सहित सभी प्रमुख संगीतकारों, जैसे मदन मोहन, वसंत देसाई, एस डी बर्मन, आरडी बर्मन, उषा खन्ना, राजेश रोशन, दिलीप सेन, समीर सेन आदि के लिए गीत लिखे. लेकिन लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में उनका कोई गीत नहीं रिकॉर्ड हो सका. प्रदीप, साहिर लुधियानवी और शैलेंद्र को बेहतरीन गीतकार मानने वाले योगेश खुद के गीतकार बनने का श्रेय संगीतकार सलिल चौधरी को देते थे.

हिंदी सिनेमा में नये संगीतकारों और गीतकारों की भीड़ से दूर योगेश लंबे समय से गुमनाम जिंदगी जीते रहे, लेकिन उनके लिखे गीत कभी भी सुनने वालों के दिल, दिमाग और जुबान से दूर नहीं हुए. उन्होंने साल 2017 हरीश व्यास र्देशित फिल्‍म ‘अंग्रेज़ी में कहते हैं’ के साथ वापसी की और इस फिल्म के ‘पिया मोसे रूठ गये’ और ‘मेरी आंखें’ गाने लिखे थे. आज जब योगेश नहीं हैं, क्यों न उनके लिए हम गुनगुनाएं, ‘आये तुम याद मुझे…’

रिपोर्ट : प्रीति सिंह परिहार

posted by: Budhmani Minj

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