Breathe Into The Shadows Review : ब्रेथलेस है अभिषेक बच्चन की ‘ब्रीथ इन टू द शैडो’

breathe into the shadows review, abhishek bachchan, nitya menon : 'ब्रीथ 2' से अभिनेता अभिषेक बच्चन ने डिजिटल डेब्यू किया हैं. उन्होंने इस बार अपने नाम में ए भी जोड़ लिया है. आर माधवन अभिनीत 'ब्रीथ' का पहला सीजन लोगों को पसंद आया था जिससे इस सीजन से उम्मीदें बढ़ गयी थी. अभिषेक का नाम भी जुड़ गया था लगा कि डिजिटल माध्यम में अभिषेक कुछ खास कर जाए मगर अफसोस मामला यहां भी जमा नहीं है.

By कोरी | July 10, 2020 7:49 PM

‘ब्रीथ 2’ से अभिनेता अभिषेक बच्चन ने डिजिटल डेब्यू किया हैं. उन्होंने इस बार अपने नाम में ए भी जोड़ लिया है. आर माधवन अभिनीत ‘ब्रीथ’ का पहला सीजन लोगों को पसंद आया था जिससे इस सीजन से उम्मीदें बढ़ गयी थी. अभिषेक का नाम भी जुड़ गया था लगा कि डिजिटल माध्यम में अभिषेक कुछ खास कर जाए मगर अफसोस मामला यहां भी जमा नहीं है. अभिषेक का सपाट अभिनय और बेहद कमज़ोर कहानी इस सीरीज को ब्रेथलेस कर गया है.

कहानी की बात करें तो ब्रीथ के पहले सीजन की तरह यहां भी कहानी का सिरा वही है कि एक पिता अपने बच्चे को बचाने के लिए किस हद तक जा सकता है लेकिन ये सिर्फ एक सिरा कहानी का है दूसरे सिरे में रावण के दस सर हैं. स्प्लिट पर्सनालिटी है. पिछले सीजन की तरह पुलिस के साथ इस बार भी किलर का चूहे बिल्ली का खेल है. बहुत कुछ कहानी में शामिल किया है लेकिन वो सब मिलकर कहानी को प्रभावी नहीं बल्कि बोझिल बनाते हैं. कहानी इमोशन लेवल पर अपील ही नहीं करती है.

इमोशन पर ध्यान ही नहीं दिया गया है ये कहना गलत ना होगा.जब किसी की बच्ची खो जाती है तो उस दंपति का क्या हाल होता है इस पर निर्देशक ने ज़्यादा तवज्जो ही नहीं दी है. सिर्फ इमोशनल लेवल पर ही नहीं बल्कि यह सीरीज थ्रिलर और सस्पेंस के लेवल पर भी बहुत कमजोर है।कहानी का जो मूल सस्पेंस है वो दूसरे एपिसोड में किडनैपर की आवाज़ से ही साफ हो जाता है कि वो किसकी आवाज़ है.

Also Read: Sushant ने जब कहा था ‘मैं अंकिता के बिना रह नहीं सकता…’, खूब वायरल हो रहा है ये VIDEO

शुरुआती एपिसोड ना तो इतनी गहराई रखते हैं ना उत्सुकता बढ़ाते है कि 12 एपिसोड्स की सीरीज को एक बार में देखने का मन होता है. सीरीज को देखते हुए एक भी दृश्य ऐसा नहीं है जो जेहन में रह जाता है.

अभिनय की बात करें तो अभिषेक को बहुत ही चुनौतीपूर्ण किरदार मिला था. दो अलग अलग किरदारों को जीना था लेकिन उनके सपाट अभिनय ने सारा मज़ा किरकिरा कर दिया. पूरी सीरीज में उंनके चेहरे पर लगभग एक जैसे ही भाव हैं. नित्या मेनन भी निराश करती हैं. उनकी बेटी जो उन्हें उनकी जान से अज़ीज़ है उसे खोने का दुख,दर्द दिखता ही नहीं है. अमित साध अच्छे रहे हैं. उनका स्क्रीन प्रेजेंस और अभिनय सीरीज में एक राहत की तरह है. सैयामी खेर को ज़्यादा मौका नहीं मिला है लेकिन वह अपनी भूमिका से न्याय करती हैं. ऋषिकेश और रेशम श्रीवर्धनकर का काम भी अच्छा है.

दूसरे पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म के संवाद कमज़ोर रह गए तो बैकग्राउंड म्यूजिक औसत है. कुलमिलाकर यह सीरीज निराश करती है.

Posted By: Budhmani Minj

Next Article

Exit mobile version