Budget 2023: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) देश का अगला आम बजट (Union Budget 2023) 1 फरवरी को पेश करने जा रही हैं. इस बजट में लोगों को कई उम्मीदें (Budget 2023 Expectations) हैं. साथ ही, कई क्षेत्रों को इस बार बजट में बड़ी राहत मिलने की भी उम्मीद है. संसद में जब भी वित्त मंत्री का बजट भाषण होता है, हर कोई उसे देखना और सुनना चाहता है. लेकिन इस दौरान ऐसे-ऐसे शब्दों का इस्तेमाल होता है, जो आम आदमी के सिर के ऊपर से पार हो जाता है. अगर आपको भी बजट से जुड़ी शब्दावली आसानी से समझ में नहीं आती है, तो हम आपको आसान भाषा में उन शब्दों के मतलब बताते हैं, जिनका इस्तेमाल बजट अभिभाषण और उसपर चर्चा के दौरान धड़ल्ले से होता है. ऐसे में अर्थशास्त्र से जुड़ी मुश्किल शब्दावली अब मुश्किल नहीं रह जाएगी और बजट को समझने में आपको आसानी होगी.
आम बजट या यूनियन बजट कमाई और खर्च का लेखा-जोखा है. इसे सरकार के वित्त मंत्री की तरफ से संसद में जारी किया जाता है. इसमें सरकार आय और व्यय का ब्यौरा देती है. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हम अपने घर के लिए बजट बनाते हैं कि कितने पैसे कमाएंगे, कितने खर्च करेंगे और अंत में कितने पैसे बचाएंगे. साल 2016 तक फरवरी के अंतिम दिन (28 या 29 फरवरी को) बजट पेश किया जाता था, लेकिन 2017 से यह 1 फरवरी को पेश किया जाता है.
इन्फ्लेशन काे हिंदी में महंगाई कहते हैं. बजट में इन्फ्लेशन यानी महंगाई शब्द का जिक्र बार-बार किया जाता है. महंगाई दर बढ़ने का सीधा मतलब है कि देश की मुद्रा का भाव गिर रहा है. इससे लोगों की खरीदने की क्षमता घट जाती है. खरीदने की क्षमता घटने का मतलब है मांग में कमी आना.
डायरेक्ट टैक्स यानी प्रत्यक्ष कर वह होता है जो सरकार देश की जनता से सीधे तौर पर वसूलती है. इनकम टैक्स एक तरह का डायरेक्ट टैक्स है. दूसरी ओर, इनडायरेक्ट टैक्स यानी अप्रत्यक्ष कर वह होता है जो सरकार सीधे तौर पर नहीं वसूलती. जीएसटी को हम अप्रत्यक्ष कर यानी इनडायरेक्ट टैक्स कहेंगे, क्योंकि वह सरकार हमसे अप्रत्यक्ष रूप से लेती है.
फाइनेंशियल ईयर यानी वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होता है और 31 मार्च को खत्म होता है. वहीं, निर्धारण वर्ष यानी असेसमेंट ईयर किसी भी वित्तीय वर्ष का अगला साल होता है. अगर फाइनेंशियल ईयर 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2022 होता है, तो असेसमेंट ईयर 1 अप्रैल 2022 से 31 मार्च 2023 तक होगा.
फिस्कल डिफिसिट को हिंदी में राजकोषीय घाटा कहते हैं. यह सरकार की कुल आय और खर्च का अंतर होता है. अगर आय कम हो और खर्च ज्यादा, तो यह राजकोषीय घाटा कहलाता है. दूसरी तरफ, अगर आय अधिक हो और खर्च कम, तो इसे फिस्कल सरप्लस (Fiscal Surplus) कहते हैं.
बजट पेश करने से एक दिन पहले सरकार इकोनॉमिक सर्वे पेश करती है. इसमें बताया जाता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पिछले साल कैसी रही. इसके साथ, यह भी बताते हैं कि किस सेक्टर में कैसा रुझान देखा गया. इस तरह देखें, तो इकनॉमिक सर्वे एक तरह से बीते हुए साल का हिसाब-किताब होता है.
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट अथवा सकल घरेलू उत्पाद किसी भी देश की सीमा में एक निर्धारित समय में तैयार की गई सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य होता है, जिन्हें कोई खरीदता है. अगर कोई शख्स कोई उत्पाद तैयार कर उसे बाजार में बेचता है, तो जीडीपी में उसका योगदान गिना जाएगा. खर्च के लिहाज से कंज्यूमर, बिजनेस और सरकार ने जितनी रकम खर्च की, उसे जोड़ने पर जीडीपी निकलता है.
रेवेन्यू डिफिसिट यानी राजस्व घाटा उस स्थिति को कहते हैं, जब राजस्व व्यय प्राप्तियाें से अधिक होता है. वहीं, ग्रॉस फिस्कल डिफिसिट यानी सकल राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और उसकी कुल गैर-उधार प्राप्तियों के बीच के अंतर को कहते हैं.
करंट अकाउंट डेफिसिट यानी चालू खाते का घाटा, दूसरे देशों को बेचे गए सामान यानी निर्यात से आये पैसे और दूसरे देशों से सामान खरीदने यानी आयात पर खर्च हुए पैसों के बीच के अंतर को कहते हैं. आयात ज्यादा हो और निर्यात कम, तो ऐसी स्थिति में चालू खाते का घाटा होता है. वहीं, अगर निर्यात से आये पैसे आयात में गए पैसों से अधिक हो, तो उसे करंट अकाउंट सरप्लस चालू खाता अधिशेष कहते हैं.
डिस-इनवेस्टमेंट को हिंदी में विनिवेश कहते हैं. अगर सरकार अपनी किसी कंपनी की कुछ हिस्सेदारी या पूरी हिस्सेदारी बेच देती है, तो यह विनिवेश (Disinvestment) कहलाता है. ऐसा करके सरकार कुछ पैसे जुटाती है. इसका बड़ा और ताजा उदाहरण कुछ समय पहले भारत सरकार द्वारा एयर इंडिया का विनिवेश करना है. सरकार ने इस कंपनी को 18 हजार करोड़ रुपये में टाटा ग्रुप को बेचा है.
मॉनेटरी पॉलिसी काे हिंदी में मौद्रिक नीति कहते हैं. यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है. मौद्रिक नीति से कई मकसद पूरे किये जाते हैं. इनमें महंगाई पर अंकुश लगाने, कीमतों में स्थिरता लाने, रोजगार के अवसर सृजित करने और टिकाऊ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करने की कोशिश शामिल है.
जीएसटी का पूरा नाम वस्तु एवं सेवा कर (Goods & Services Tax) है. हिंदी में इसे माल एवं सेवा कर कहते हैं. वस्तु की खरीदारी करने या सेवा का इस्तेमाल करने पर यह टैक्स चुकाना होता है. पहले मौजूद कई तरह के टैक्सों (Excise Duty, VAT, Service Tax आदि) को हटाकर, उनकी जगह पर एक टैक्स GST भारत में 1 जुलाई 2017 से लागू है. देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह सिस्टम प्रभावी है.
फाइनेंस बिल को सरकार आम बजट पेश करने से पहले पेश करती है. यह आम बजट का अहम हिस्सा होता है. इस बिल में वित्त मंत्रालय आनेवाले वित्त वर्ष में नये टैक्स लगाने, मौजूदा टैक्स व्यवस्था में बदलाव करने, कोई नया बिल लाने से जुड़ी जानकारी देता है. फाइनेंस बिल कोई एक्ट न होकर बस एक बिल होता है, इसी वजह से इसे पहले लोकसभा में पेश किया जाता है ताकि इसे फाइनेंस बिल से फाइनेंस एक्ट बनाया जा सके. लोकसभा के साथ इसे राज्यसभा में भी संशोधन के लिए भेजा जाता है. 14 दिन के भीतर राज्यसभा से अगर संशोधन का सुझाव नहीं आता है, तो यह स्वत: पास हो जाता है.