बुध प्रदोष व्रत पूजा इस आरती के बिना रह जाएगी अधूरी, प्रदोष काल में पूजन के समय जरूर करें ये काम

Budh Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत देवों के देव महादेव को समर्पित है, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का विधान है. हर व्रती को इस शुभ दिन पर महादेव की पूजा करनी चाहिए, इसके साथ ही आरती के साथ पूजा का समापन करना चाहिए.

By Radheshyam Kushwaha | February 7, 2024 8:08 AM
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Budh Pradosh Vrat 2024: आज बुध प्रदोष व्रत है. सनातन धर्म में बुध प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है और इस व्रत करने से संतान सुख प्राप्त होता है और जीवन के सभी संकट भी दूर होते हैं. त्रयोदशी तिथि में प्रदोष व्रत रखा जाता है. त्रयोदशी तिथि में व्रत रखकर प्रदोष काल में देवों के देव महादेव की पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यता के अनुसार जो भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ भोलेनाथ की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. हर व्रती को इस शुभ दिन पर महादेव की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए, इसके साथ ही आरती के साथ पूजा का समापन करना चाहिए.

प्रदोष व्रत पूजा-विधि

  • सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ वस्त्र धारण करें.

  • मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक करें.

  • इसके बाद दीप प्रज्वलित करें.

  • सभी देवी-देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें.

  • शिवलिंग में गंगा जल और दूध चढ़ाएं.

  • भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें.

  • भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करें.

  • भगवान शिव को अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, दूध, पंचामृत, बेलपत्र, भांग, धतूरा इत्यादि जरूर अर्पित करें.

  • पंचामृत से अभिषेक करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का निरंतर जाप करते रहें.

  • भगवान शिव की आरती करें और भोग भी लगाएं.

सोमवार पूजा सामग्री

सोमवार के दिन शिव पूजा के लिए कच्चा दूध, गंगाजल, दही, घी, शहद, भांग, धतूरा, शक्कर, केसर, चंदन, बेलपत्र, अक्षत, भस्म, रुद्राक्ष, शमी पत्र, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, गाय का कच्चा दूध, तुलसी दल, मंदार पुष्प, ईख का रस, फल, कपूर, धूप, दीप, शिव के प्रिय फूल (हरसिंगार, आक, कनेर), इत्र, पंचमेवा, काला तिल, सोमवार व्रत कथा पुस्तक और शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि.

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भगवान शिव की आरती

जय शिव ओंकारा, स्वामी ॐ जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

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