बंगाल : चांदी के घड़े में जल भरकर घर की नव विवाहिता दुल्हन दुर्गा रूपी मां लक्ष्मी का करती है जलाभिषेक
आज भले ही कुछ परंपरा समयानुसार बदल गए है लेकिन पूजा के उत्साह और रीति रिवाज में कोई अंतर नही देखा जाता है. पारिवारिक सूत्रों के अनुसार वे लोग मूल रूप से जिले के आउसग्राम के दिगनगर के रहने वाले थे.
पानागढ़, मुकेश तिवारी : पश्चिम बंगाल में आज भी दुर्गा पूजा आयोजन को लेकर अलग-अलग पारंपरिक कथाएं और रीति रिवाज कायम है. इन्हीं में से एक ऐसा दुर्गा पूजा का पारंपरिक रीति रिवाज है जो आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करता है. एक दुर्गा पूजा जो आज भी अपनी परंपरा को कायम रखे हुए हैं .उक्त परंपरा यह है कि दुर्गापूजा के समय चांदी के घड़े में तालाब से जल भरकर घर की नव विवाहिता दुल्हन दुर्गा रूपी मां लक्ष्मी देवी का जलाभिषेक करती है. यह परंपरा कई सालों से जारी है. पूर्व बर्दवान जिले के गलसी एक नम्बर ब्लॉक के मानकर के पश्चिमी छोर पर स्थित विश्वास बाड़ी का दुर्गापूजा 363 वर्ष से अधिक समय से होता आ रहा है.
दुर्गापूजा की यह परंपरा कई सालों से जारी
लेकिन आज भले ही कुछ परंपरा समयानुसार बदल गए है लेकिन पूजा के उत्साह और रीति रिवाज में कोई अंतर नही देखा जाता है. पारिवारिक सूत्रों के अनुसार वे लोग मूल रूप से जिले के आउसग्राम के दिगनगर के रहने वाले थे. पूर्वज नीलमाधब गंगोपाध्याय निःसंतान थे. ऐसा कहा जाता है कि एक संत मानकर के पास आए और उन्हें दुर्गा पूजा करने का आदेश दिया. इस तरह वह मानकर के पास आये और दुर्गापूजा करने लगे. फिर उनका एक पुत्र हुआ. महेश विश्वास नीलमाधब गंगोपाध्याय के पोते थे. वह कश्मीर के राज एस्टेट में दीवान का काम करते थे . तभी से विश्वास घर की दुर्गापूजा को एक और आयाम मिलने लगा.
Also Read: मैड्रिड में ममता बनर्जी ने बंगाल फुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए ला लीगा से किया समझौता
ब्राह्मण प्रतिदिन देवी को भोजन की करते है व्यवस्था
महेश विश्वास एक बार दुर्गापूजा के समय नेपाल की राजकुमारी ,उनकी माता ज्ञानानंद सरस्वती और कई अन्य संतों को मानकर ले आए थे.परिवार के सदस्यों के अनुसार देवी की पूजा आज भी अतीत के नियमों और विनियमों के अनुसार की जाती है. प्रतिदिन देवी को भोजन कराया जाता है. हालांकि, खाना खाते समय किसी भी महिला को छूना मना है. इसलिए ब्राह्मणों द्वारा सब कुछ व्यवस्थित किया जाता है. अष्टमी के दिन काले बकरे की बलि देने का विधान है. पहले तोपें दागी जाती थीं .लेकिन कुछ साल पहले घटी एक दुर्घटना के बाद इस प्रथा को बंद कर दिया गया है. तब से यह प्रथा बंद है.
Also Read: बीरभूम में आंगनवाड़ी के खाने में जोक मिलने से मची अफरा-तफरी, जांच में जुटे अधिकारी
तोप तो नही लेकिन अब पटाखे फोड़ कर ही परंपरा का किया जाता है पालन
हालांकि फिलहाल बम फोड़ कर ही इस परंपरा का पालन किया जाता था. लेकिन इस बार राज्य सरकार ने पटाखों पर भी पाबंदी लगा दी है ऐसे में इस वर्ष दुर्गापूजा में विश्वास परिवार अन्य साउंड के मार्फत ही अपनी परंपरा का निर्वाह करेंगे. बताया जाता है की नौवें दिन, नर नारायण सेवा के माध्यम से मानकर सहित आसपास के गांवों के लोगों के बीच देवी प्रसाद वितरित किया जाता है. विश्वास पारिवार का परंपरा है, दुर्गा पूजा के दौरान चांदी के घड़े में तालाब से जल भर कर घर की नव विवाहित दुल्हन द्वारा परिवार की लक्ष्मी देवी पर उक्त जल चढ़ाया जाता है .परिवार का मानना है कि यह दुर्गापूजा गृह पूजा से सार्वभौमिक पूजा हो गई है. यही कारण है कि आज आस-पास के सभी गांव के लोग इस पूजा में शामिल होते हैं.
Also Read: पानागढ : छापेमारी में भारी मात्रा में गांजा जब्त, दो तस्कर गिरफ्तार