रांची: बंजर भूमि में कांटारहित कैक्टस लगाकर आय प्राप्त करने की दिशा में झारखंड आगे बढ़ रहा है. इसके लिए सरकारी पहल तेज हुई है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के वाटर शेड विकास घटक (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाइ) के तहत वाटर शेड परियोजनाओं में कांटारहित कैक्टस की खेती को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया जा रहा है. इसके तहत राज्य के ग्रामीण विकास विभाग का यह उद्देश्य है कि कांटा रहित कैक्टस के माध्यम से किसानों को लाभान्वित किया जाये. अपनी परंपरागत खेती-बाड़ी के अतिरिक्त किसान अब बंजर भूमि का इस्तेमाल कैक्टस रोपण में कर सकते हैं. झारखंड स्टेट वाटरशेड मिशन यहां की 68 प्रतिशत बंजर भूमि को जीवंत बनाकर कमाई का जरिया बनाने की दिशा में बढ़ा है. इसकी खेती और रखरखाव बहुत जटिल नहीं है. वहीं लंबे समय तक आय का स्रोत तैयार हो जायेगा.
किसान देंगे जमीन, सरकार करेगी मदद
सरकार ने यह प्रावधान किया है कि इसका लाभ झारखंड का कोई भी किसान ले सकता है. ऐसी जमीन, जहां सिंचाई की व्यवस्था नहीं है और वह जमीन बंजर हो गयी है. किसान उसका उपयोग भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में अपनी बंजर जमीन कैक्टस लगाने के लिए दे सकेंगे. सरकारी स्तर पर उस जमीन पर कैक्टस की खेती की जायेगी. इसके बाद की भी सभी व्यवस्थाएं ग्रामीण विकास विभाग ही करेगा. किसानों को देखभाल की जिम्मेवारी संभालनी होगी.
ऐसे हो सकेगी आय
कैक्टस का इस्तेमाल कई तरह के उत्पादों के निर्माण में होगा. इस तरह के कैक्टस में कांटे नहीं होते हैं. ऐसे में इसके रख-रखाव में परेशानी नहीं आयेगी. कैक्टस से जैव उर्वरक, पशु चारा, खाद्य पदार्श, जैव ईंधन, कृत्रिम चमड़ा आदि के निर्माण हो सकेंगे. सरकार के माध्यम से किसानों को बाजार उपलब्ध कराया जायेगा. बाजार के लिए भी ग्रामीण विकास विभाग ने खाका तैयार कर लिया है.
काफी कम पानी की होती है जरूरत
कैक्टस सबसे जटिल पौधों की प्रजातियों में शामिल है. इसके पैदावार और अस्तित्व के लिए काफी कम वर्षा की आवश्यकता होती है. वर्षा ऋतु के बाद भी पटवन के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है. ऐसे में इसके लिए ज्यादा परेशानी नहीं होती.
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होगा
विशेषज्ञों का कहना है कि कैक्टस की खेती से वाटरशेड का विकास होगा. भूमिगत जल के स्तर को बनाये रखने में भी यह सहायक सिद्ध होता है. इससे पारिस्थितिक संतुलन में सुधार होगा. साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होगा. इसकी खेती से वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जा सकता है. विभिन्न प्राकृतिक कारणों से जो मृदा के अपरदन होते हैं, उसे भी कम किया जा सकता है. यह भी बात सामने आयी है कि कैक्टस से बायो गैस के उत्पादन से देश के ईंधन आयात का बोझ कम होगा. कार्बन फुट प्रिंट में कमी आयेगी. इसके अलावा अवक्रमित भूमि का विकास होगा.
25 वर्षों तक मिलेगा लाभ
विशेषज्ञों का कहना है कि कैक्टस का लाभ 25 वर्षों तक मिलेगा. इसके प्लांटेशन के बाद इतने वर्षों तक यह फलता-फूलता रहेगा. इस तरह प्लांटेशन के बाद पूरी तरह से किसान निश्चिंत रह सकते हैं.
खूंटी में शुरू होगा पौधरोपण
खूंटी जिले में कैक्टस की खेती शुरू होने जा रही है. यहां प्रायोगिक तौर पर यह कार्य होने जा रहा है. करीब 157 हेक्टेयर भूमि में इसकी खेती होने जा रही है.
राष्ट्रीय व राज्य कैक्टस सेल बनेगा
भारत सरकार राज्यों के साथ समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय कैक्टस सेल (नसीसी) की स्थापना करेगी. भूमि संसाधन विभाग के वाटरशेड प्रबंधन प्रभाग में संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में यह सेल होगा. यह कांटारहित कैक्टस की खेती को बढ़ावा देने की दिशा में काम करेगा. साथ ही इसके क्रियान्वयन व निगरानी के लिए राज्यों को सुविधा मिलेगी. साथ ही तकनीकी सहायक भी करेगा. वहीं राज्य में भी वन, कृषि, उद्योग, ग्रामीण विकास विभाग आदि के प्रतिनिधियों को मिलाकर राज्य कैक्टस प्रकोष्ठ की स्थापना की जायेगी.