पश्चिम बंगाल में प्राइमरी स्कूलों में हेडमास्टरों की नियुक्ति से जुड़े मामले की सुनवाई कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High court) के जस्टिस मंथा के बेंच में हुई. वहां सुनवाई के दौरान जज ने राज्य और जिला प्राइमरी स्कूल काउंसिल (डीपीएससी) से पूछा कि कुछ जिलों में प्रधानाध्यापकों की पोस्टिंग को लेकर काउंसिलिंग क्यों नहीं होती ? इस संबंध में राज्य के पास कोई नीति नहीं है. जज ने कहा, ”क्या आप तेल मालिश करने वालों को अपनी पसंद के स्कूल में पोस्टिंग देते हैं ? इसके बाद वादी घर के पास पोस्टिंग की मांग कर सकता है लेकिन क्या ऐसा संभव है ? आपको किसी विशेष नियम के अनुसार काम करना होगा ? कहां है वह नियम ? जज के सवाल का डीपीएससी कोई जवाब नहीं दे सका.
संयोगवश, पूर्व मेदिनीपुर जिले के दो प्रमंडलों में प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति एवं पदस्थापन को लेकर हाई कोर्ट में मामला दायर किया गया था. इस संबंध में सात शिक्षकों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनके वकीलों ने अदालत को बताया कि प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति के लिए एक पैनल बनाया गया था, लेकिन उन्हें परामर्श नहीं दिया गया. तृणमूल शिक्षक संगठन से जुड़े सभी शिक्षकों को उनके घर के पास ही नियुक्ति की गई है और यह प्रक्रिया कुछ राजनीतिक हस्तियों के हस्तक्षेप से पूरी हुई.
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वादियों के इस बयान को सुनने के बाद न्यायमूर्ति मंथा ने जानना चाहा, हावड़ा, बांकुड़ा, उत्तर 24 परगना में काउंसलिंग की जा रही है. लेकिन पूर्वी मेदिनीपुर में ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? न्यायाधीश ने राज्य में प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति संबंधी नीति पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा, ”इस संबंध में 2016 का नियम है. लेकिन काउंसलिंग या पोस्टिंग के बारे में कुछ खास नहीं बताया गया है. परिणामस्वरूप, पोस्टिंग पर अनियंत्रित शक्ति जिला प्राथमिक विद्यालय बोर्डों के हाथों में केंद्रित हो गई है. इस टिप्पणी के बाद मंगलवार को हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति में कोई पद खाली है तो भी अब वहां नियुक्ति नहीं की जा सकेगी. राज्यों और डीपीएससी को नीतिगत हलफनामा दाखिल करना होगा. 18 दिसंबर को हाई कोर्ट में मामले की दोबारा सुनवाई होगी.