पंचायत चुनाव : कलकत्ता हाइकोर्ट का आदेश नामांकन संबंधी सभी शिकायतों की जांच करे आयोग
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के नजदीक आने के साथ ही कलकत्ता हाइकोर्ट में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है.कलकत्ता हाइकोर्ट की ओर से याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से गौर करने का निर्देश दिया गया है.
कोलकाता,अमर शक्ति : पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे कलकत्ता हाइकोर्ट में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है. विपक्षी पार्टी के उम्मीदवारों ने हाइकोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि उन्हें नामांकन वापस लेने के लिए मजबूर किया गया. अब हाइकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग से जबरन नामांकन वापस लेने के आरोपों की जांच कर कार्रवाई करने को कहा है.
आयोग याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से करे गौर
गौरतलब है कि माकपा के दो उम्मीदवारों पर ड्रग केस में फंसाने की धमकी देकर दबाव डाला गया, जिसकी वजह से उन लोगों ने मजबूर होकर नामांकन वापस लिया. इस मामले की सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम व न्यायाधीश अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने राज्य चुनाव आयोग से इस शिकायत पर गौर करने को कहा. मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि आयोग याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से गौर करे.
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विशेष टीम बना कर मामले की जांच करने का आदेश
इसके लिए आयोग को एक विशेष टीम बना कर मामले की जांच करनी होगी और इसकी जांच रिपोर्ट एक सप्ताह के अंदर पेश करनी होगी. मामले में आरोप लगाया गया है कि श्यामल मंडल और रेशमा अंकुजी ने दक्षिण 24 परगना के डायमंड हार्बर की कालीनगर ग्राम पंचायत में माकपा उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया और उसके बाद से ही उन पर नामांकन वापस लेने के लिए दबाव डाला गया.
हाइकोर्ट ने पुलिस से 19 जुलाई तक मामले में रिपोर्ट पेश करने का दिया निर्देश
वहीं, हावड़ा के जयपुर थाना क्षेत्र से जबरन नामांकन वापस कराने के बाद से कांग्रेस प्रत्याशी सुकुमार मिद्दा लापता हैं. मुकदमे में दावा किया गया है कि मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने सोमवार की रात वादी के वकील को एक वीडियो दिखाया. वहां श्री मिद्दा एक पुलिसकर्मी के सामने कहता है, मैं एक गुप्त जगह पर हूं, और माहौल शांत होने पर घर जाऊंगा. इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश राजशेखर मंथा ने आदेश दिया कि पुलिस इस वीडियो को देखते हुए एफआईआर दर्ज करे. पुलिस को यह जानना है कि यह बयान उसे कहने के लिए मजबूर किया गया था या उसने अपनी मर्जी से ऐसा कहा था. उसे मजिस्ट्रेट के सामने एक गोपनीय बयान की व्यवस्था करनी होगी. हाइकोर्ट ने पुलिस से 19 जुलाई तक मामले में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है.
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