कोलकाता, अमर शक्ति : कलकत्ता हाईकोर्ट (calcutta high court) ने गुरुवार को कहा कि एक कमाने वाली पत्नी की आय को अन्य कमाने वाले सदस्यों की आय के बराबर नहीं माना जा सकता है, क्योंकि वह कमाई के अलावा विभिन्न जिम्मेदारियां निभाती है. न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता की एकल-न्यायाधीश पीठ ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के पहले के आदेश को चुनौती देने वाली प्रतिमा साहू की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें सड़क दुर्घटना में गंभीर चोटों के मुआवजे के लिए उनकी याचिका खारिज कर दी गयी थी.
एमएसीटी का तर्क यह था कि चूंकि मुआवजा तभी दिया जा सकता है जब पीड़िता की मासिक आय 3,000 रुपये के भीतर हो, लेकिन प्रतिमा साहू को यह मुआवजा इसलिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह 4,000 रुपये कमाती हैं. इसके बाद उन्होंने एमएसीटी के फैसले को कलकत्ता हाइकोर्ट में चुनौती दी. गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अजय कुमार गुप्ता ने कहा कि कमाऊ पत्नी की आय को परिवार के अन्य कमाऊ सदस्यों की आय के साथ जोड़ना अनुचित है. न्यायमूर्ति ने कहा कि यहां तक कि ऐसे मामलों में उनका आय प्रमाण पत्र मांगना भी अप्रत्याशित है. हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि एक कमाऊ पत्नी की जिम्मेदारी सिर्फ पैसा कमाने तक ही सीमित नहीं है. उस पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है, जिसमें खाना बनाना, घर की साफ-सफाई और दूसरों की देखभाल करना शामिल है. इतनी सारी जिम्मेदारियां संभालने के बाद वह कमाती है। इसलिए उनकी आय किसी अन्य से तुलनीय नहीं है.
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कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ ने निचली अदालत द्वारा जारी संयुक्त जांच के आदेश पर रोक लगा दी है. एकल पीठ के इस फैसले को भर्ती भ्रष्टाचार मामले के आरोपियों में से एक कुंतल घोष ने कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ पर चुनौती दी है. कुंतल घोष ने अपनी याचिका में कहा है कि उनका पक्ष सुने बिना हाईकोर्ट की एकल पीठ कैसे फैसला सुना सकती है. उसे भी अपना पक्ष रखने दिया जाये. गौरतलब है कि कुंतल घोष की शिकायत के आधार पर अलीपुर की विशेष सीबीआई अदालत ने पुलिस और सीबीआई को संयुक्त रूप से मामले की जांच का आदेश दिया था. लेकिन हाईकोर्ट की न्यायाधीश अमृता सिन्हा ने निचली आदेश के फैसले पर रोक लगा दी है. कुंतल घोष ने अपनी याचिका में कहा है कि एकल पीठ द्वारा रोक लगाने का नतीजा यह हुआ कि फिलहाल उस मामले में कोई जांच नहीं हो रही है.
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जेल में बंद आरोपी कुंतल घोष ने सवाल उठाया कि उसका बयान सुने बिना जांच क्यों रोक दी गयी. कुंतल ने निचली अदालत के सीबीआई और कोलकाता पुलिस की संयुक्त जांच के आदेश को बहाल करने की मांग की है. पिछले साल मई में कुंतल ने निचली अदालत में जज के कमरे में जाकर उत्पीड़न की शिकायत की थी. उन्होंने दावा किया कि केंद्रीय एजेंसी पूछताछ के नाम पर उन्हें परेशान कर रही है. इस पर सुनवाई करते हुए विशेष सीबीआइ अदालत के न्यायाधीश अर्पण चटर्जी ने संयुक्त जांच का आदेश दिया और कोलकाता पुलिस के संयुक्त आयुक्त और सीबीआई के संयुक्त निदेशक को जांच की जिम्मेदारी सौंपी गयी.
लेकिन सीबीआई ने निचली अदालत के फैसले का विरोध करते हुए हाईकोर्ट का रूख किया. केंद्रीय एजेंसी ने अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान बताया कि कुंतल घोष ने निचली अदालत में सुनवाई के दौरान उत्पीड़न के बारे में कुछ नहीं कहा. लेकिन बाद में कुंतल घोष ने जज के चैंबर में जाकर उन्हें पत्र लिखकर शिकायत की. इस पर सीबीआई ने सवाल उठाते हुए कि न्यायाधीश ने आरोपी को कैमरा रहित कमरे में बुलाने के बाद क्यों बात की. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी. अब कुंतल घोष ने एकल पीठ के फैसले के खिलाफ खंडपीठ में याचिका दायर की है, जिस पर जल्द ही सुनवाई होने की संभावना है.