Career In Accountancy: अकाउंट्स, कॉमर्स स्ट्रीम का महत्वपूर्ण विषय है, जो करियर के लिहाज से छात्रों को बेहतरीन संभावनाओं की ओर ले जाता है. बैंक से लेकर हर छोटी-बड़ी कंपनी को वित्तीय लेन-देन के हिसाब के लिए अकाउंट्स डिपार्टमेंट की जरूरत पड़ती है. एक वक्त था जब कॉमर्स खासतौर से अकाउंट्स से बारहवीं करनेवाले छात्र चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) एवं कंपनी सेक्रेटरी (सीएस) बनने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ते थे, लेकिन आज अकाउंट्स एक बहुआयामी विषय बन चुका है. जानें इस विषय से बनने वाले 5 डिमांडिंग करियर विकल्पों के बारे में…
ऑडिटर वे प्रोफेशनल्स होते हैं, जो किसी कंपनी या व्यक्ति के फाइनेंस रिकॉर्ड तैयार कर समय-समय पर उनकी जांच करते हैं. क्लाइंट के सभी प्रकार के टैक्स का भुगतान सही समय पर हो, यह सुनिश्चित करना भी इनका काम है. एक ऑडिटर को कानून व विनियमों के तहत कंपनी के फाइनेंशियल स्टेटमेंट की जांच करने के लिए विभिन्न भूमिकाओं को निभाना पड़ता है. ऑडिटिंग एक विस्तृत क्षेत्र है. आज फाइनेंस, कंप्यूटर, फोरेंसिक जैसे विभिन्न क्षेत्रों में ऑडिटर की मांग बढ़ रही है.
ऑडिटर बनने के लिए न्यूनतम योग्यता अकाउंटिंग में ग्रेजुएशन है. अकाउंटिंग में मास्टर व एमबीए की योग्यता आपके करियर को विस्तार देने में सहायक होगी. इस करियर को अपनाने के लिए आप ऑडिटिंग, अकाउंटिंग एवं ऑडिटिंग, टैक्सेशन, टैक्स एंड कंपनी लॉ में डिप्लोमा कोर्स भी कर सकते हैं. टैली या कंप्यूटर अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर की जानकारी देनेवाले डिप्लोमा कोर्स आपके लिए नौकरी की संभावनाएं बढ़ायेंगे.
भारत में ऑडिटर के पास इंटरनल ऑडिटर, एक्सटर्नल ऑडिटर, गवर्नमेंट ऑडिटर, फॉरेंसिक ऑडिटर आदि बनने के मौके होते हैं. यह मौके मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, इंश्योरेंस व बैंकिंग सेक्टर, कॉरपोरेट, पब्लिक सेक्टर, एनजीओ आदि में मिलते हैं. इसके अलावा कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) परीक्षा विभिन्न सरकारी कार्यालयों में ऑडिटर बनने की राह खोलती है.
एक क्रेडिट एनालिस्ट मुख्य रूप से लोन के लिए आवेदन करनेवाली कंपनी या ग्राहक के फाइनेंशियल डेटा का विश्लेषण कर यह सुनिश्चित करता है कि ग्राहक उधार ली गयी धनराशि की भरपाई कर पायेगा या नहीं. कोई संस्थान या ग्राहक लोन क्यों लेना चाहता है, उसकी क्रेडिट वैलिडिटी क्या है, ग्राहक का भुगतान इतिहास कैसा है, जैसे मानदंडों का विश्लेषण करना क्रेडिट एनालिस्ट के वर्क प्रोफाइल में शामिल है. ये प्रोफेशनल्स अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इनके अप्रूवल के बिना बैंक, बीमाकर्ता या कंपनी, व्यवसाय, घर, कार एवं कर्मचारियों के पेरोल के लिए ऋण नहीं दे पाते.
अकाउंट्स, फाइनेंस या इससे संबंधित अन्य विषय जैसे-रेश्यो एनालिसिस, स्टेटिस्टिक्स, इकोनॉमिक्स, कैलकुलस, फाइनेंशियल स्टेटमेंट एनालिसिस और रिस्क असेसमेंट में स्नातक करनेवाले युवा क्रेडिट एनालिस्ट बनने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं. इन विषयों से स्नातक करने के बाद फाइनेंस में एमबीए करना एक लोकप्रिय विकल्प है. आप चाहें तो बैंकिंग व फाइनेंस में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा करके भी इस करियर को अपना सकते हैं.
आज बैंक से लेकर कॉरपोरेट सेक्टर तक में क्रेडिट एनालिस्ट के लिए बेहतरीन संभावनाएं हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद आपको जूनियर एनालिस्ट के रूप में करियर की शुरुआत करनी होगी. कुछ वर्षों के अनुभव के बाद आप अपनी पसंद की इंडस्ट्री, इंवेस्टमेंट बैंक, फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन, इंश्योरेंस कंपनी, सरकारी लोन विभागों, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, फिक्स्ड इनकम डोमेन, प्राइवेट इक्विटी फर्म आदि में क्रेडिट एनालिस्ट के पद पर अपनी जगह बना सकते हैं.
स्टॉक ब्रोकर को शेयर ब्रोकर भी कहते हैं. इनका काम दूसरो के लिए शेयर खरीदना व बेचना होता है. शेयर मार्केट में कदम रखने के लिए हर ग्राहक को एक डीमैट अकाउंट और एक ट्रेडिंग अकाउंट की जरूरत होती है. ये दोनों अकाउंट स्टॉक ब्रोकर खोलते हैं. स्टॉक ब्रोकर डीलर, एडवाइजर या सिक्योरिटी एनालिस्ट के रूप में काम करते हैं.
कॉमर्स, अकाउंटिंग, इकोनॉमिक्स, बिजनेस मैनेजमेंट या मैथ्स विषय से 12वीं करने के बाद आप बीए/बीकॉम इन फाइनेंस/ अकाउंटिंग/ इकोनॉमिक्स/ बिजनेस मैनेजमेंट/ मैथ्स, बीएससी इन मैथ्स/ इकोनॉमिक्स, एनएससी सर्टिफिकेट इन फाइनेंशिल मार्केट्स, एनएससी सर्टिफिकेट इन मार्केट प्रोफेशनल आदि काेर्स कर स्टॉक ब्रोकर बनने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं. आप चाहें तो एमबीए, एमकॉम की योग्यता के साथ करियर की राह को आसान बना सकते हैं. स्टॉक ब्रोकर बनने की शुरुआत सब-ब्रोकर के रूप में करनी होती है, जिसके लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए. स्टॉक ब्रोकर को स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर्ड कराना होता है, लेकिन स्टॉक मार्केट का मेंबर बनने के लिए ब्रोकर को परीक्षा पास करनी होती है और उसके बाद उसकी ट्रेनिंग भी लेनी होती है.
स्टॉक ब्रोकर के रूप में स्टॉक एक्सचेंज के अलावा रेगुलेशन अथॉरिटी, इंवेस्टमेंट कंसल्टेंसी, म्यूचुअल फंड कंपनी, फॉरेन इंवेस्टमेंट फर्म, ब्रोकर फर्म और बैंक व इंश्योरेंस एजेंसी में जॉब की अच्छी संभावनाएं मिलेंगी. एक्सपीरियंस के आधार पर आप इक्विटी ट्रेडर, इक्विटी एडवाइजर, इक्विटी डीलर, स्टॉक एडवाइजर, वेल्थ मैनेजर, फाइनेंशियल एनालिस्ट, इंवेस्टमेंट एडवाइजर, सिक्योरिटी एनालिस्ट और रिस्क मैनेजर जैसे पदों पर कार्य कर सकते हैं.
अकाउंटिंग की इस शाखा में कानून व्यवस्था से जुड़े मामलों को सुलझाने के लिए अकाउंटिंग के सिद्धांतों के साथ ऑडिटिंग और जांच-पड़ताल के हुनर का इस्तेमाल किया जाता है. इस काम को करनेवाले पेशेवरों को फॉरेंसिक अकाउंटेंट कहते हैं. ये अनुभवी ऑडिटर होते हैं, जो वित्तीय घपलों का पता लगाने के लिए किसी व्यावसायिक संस्थान (कंपनी, फर्म) के अकाउंट्स पर निगरानी रखने का कार्य करते हैं. फॉरेंसिक अकाउंटिंग के लिए सबसे जरूरी होती है अकाउंटिंग की अच्छी जानकारी. इसके बाद ऑडिटिंग, रिस्क असेसमेंट और घपलों को पहचानने की व्यावहारिक समझ को इस पेशे के लिए आवश्यक माना जाता है. किसी कानूनी विवाद में फंसे व्यक्ति या फर्म के मामले में फॉरेंसिक अकाउंटेंट की मुख्य भूमिका संबंधित वित्तीय रिकाॅर्ड की जांच और उनका विश्लेषण करना होती है. अपने पेशेवर जीवन में फॉरेंसिक अकाउंटेंट को अकाउंटेंट, डिटेक्टिव और लीगल एक्सपर्ट जैसी भूमिकाएं निभानी होती हैं.
फॉरेंसिक अकाउंटेंट बनने के लिए अकाउंटिंग, फाइनेंस, फॉरेंसिक अकाउंटिंग या संबंधित क्षेत्र में स्नातक या मास्टर डिग्री आवश्यक है. क्रिमिनल जस्टिस या लॉ एनफोर्समेंट की योग्यता करियर को आगे बढ़ाने में सहयोग प्रदान करती है.
आमतौर पर सभी बड़ी अकाउंटिंग फर्मों में फॉरेंसिक अकाउंटेंट की जरूरत होती है. इन फर्मों में उनका कार्य कंपनियों के बीच होनेवाले गठजोड़ों और अधिग्रहण समझौतों की जांच करना, विशेष ऑडिट करना, आर्थिक अपराधों एवं टैक्स की गड़बड़ी से संबंधित मामलों की जांच करना होता है. तलाक, व्यापार और दुर्घटनाओं से संबंधित क्लेम के मामलों की जांच में भी फॉरेंसिक अकाउंटेंट की जरूरत होती है. ये प्रोफेशनल्स अपनी इच्छा के अनुसार नौकरी के लिए सरकारी या निजी क्षेत्र की कंपनियों का रुख कर सकते हैं. प्रमुख रोजगारदाता क्षेत्रों में पब्लिक अकाउंटिंग फर्म, प्राइवेट कॉरपोरेशन, बैंक, पुलिस एजेंसियां, सरकारी एजेंसियां, इंश्योरेंस कंपनियां, लॉ फर्म्स आदि शामिल हैं.
फाइनेंशियल अकाउंटेंट किसी संस्थान की अकाउंट्स व फाइनेंशियल गतिविधियों को चलाने के लिए जिम्मेदार होता है. ये कंपनी की आर्थिक स्थिरता का विश्लेषण करते हैं और अन्य विभागों को वित्तीय जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे ये विभाग बजट और निवेश निर्णय लेने में सक्षम होते हैं. फाइनेंशियल अकाउंटेंट कंपनी की कॉस्ट, प्रोडक्टिविटी, मार्जिन व अन्य खर्चों की रिपोर्ट तैयार करता है. कंपनी को प्रतिमाह होनेवाले फायदे, नुकसान एवं बैलेंस शीट तैयार करना, टैक्स रिपोर्टिंग एवं इंवेंट्री प्रोसेसिंग, साप्ताहिक और मासिक अनुमान तैयार करके लिए फाइनेंस से संबंधित डेटा एकत्र करना और उसका विश्लेषण करना, प्रोजेक्ट फंडिंग के लिए अनुमानों पर सलाह देना, केपीआइ रिपोर्ट बनाना, साप्ताहिक कैश फ्लो स्टेटमेंट तैयार करना और डेटा एकत्र कर उसकी व्याख्या करके वित्तीय पूछताछ का जवाब देना, वेतन समीक्षा जैसे आंतरिक ऑडिट आयोजित करना आदि इनके वर्क प्रोफाइल में शामिल है.
फाइनेंशियल अकाउंटेंट के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए फाइनेंस से संबंधित डिग्री और अनुभव आवश्यक होता है. इस करियर को अपनाने के लिए आप अकाउंट्स एवं फाइनेंस, इकोनॉमिक्स, मैथमेटिक्स, बिजनेस स्टडीज एवं मैनेजमेंट में स्नातक या परास्नातक कर सकते हैं.
फाइनेंशियल अकाउंटिंग, बिजनेस ऑडिटिंग का एक अनिवार्य हिस्सा है. हर कंपनी या व्यवसाय को अपना स्टेटमेंट तैयार करना होता है. अकाउंट्स सेक्टर में यह प्रोफेशन सबसे ज्यादा मांग में रहनेवाले करियर विकल्पों में से एक है.