पर्यटकों को आकर्षित करता हजारीबाग का वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, जंगली जानवरों की अठखेलियां लोगों को खूब लुभाती
jharkhand news: हजारीबाग का वाइल्ड लाइफ सेंचुरी पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है. यहां जंगली जानवरों की अठखेलियां जहां लोगों को खूब लुभाती है, वहीं मनोरंजन के साधन भी यहां मौजूद हैं. झारखंड-बिहार समेत दूसरे राज्यों से भी सैलानी यहां आते हैं.
Jharkhand news: हजारीबाग जिला मुख्यालय से करीब 17 किलोमीटर दूर रांची- पटना मार्ग पर स्थित हजारीबाग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी सिर्फ हजारीबाग ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है. यहां प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा आश्रयणी के अंदर कई चीजें देखने लायक है. जिस कारण सैलानियों को हर साल नेशनल पार्क निहारने का इंतजार रहता है.
186 वर्ग किलोमीटर जंगली भू-भाग पर फैले हजारीबाग वन जीव प्राणी आश्रयणी को वर्ष 1955 में केंद्र सरकार ने नेशनल पार्क के रूप में विकसित किया था. तब यह पार्क अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था. देश-विदेश के सैलानी यहां कि प्राकृतिक छटा को निहारने और जंगली जीव-जंतु को देखने सालों भर आते रहते थे. लेकिन, उसके बाद सरकार ने उदासीनता बरती. जिसके कारण इस पार्क का अस्तित्व खोता गया.
बाद में वर्ष 2002 में नेशनल पार्क का दर्जा को घटाया गया और हजारीबाग वन जीव प्राणी प्रमंडल प्रक्षेत्र आश्रयणी (हजारीबाग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी) का दर्जा दिया गया. आश्रयणी में आज भी जंगली जानवर हिरण, चीतल, सांभर, बंदर, भालू, नीलगाय समेत अन्य जंगली जीव-जंतु एवं अनेक प्रकार की पक्षियों को देखा जा सकता है. दिसंबर महीने से मार्च तक आज भी झारखंड के अलावा बंगाल एवं बिहार समेत अन्य राज्यों के पर्यटक यहां आते हैं. यहां पर्यटक मित्र हैं जो यहां आनेवाले हर सैलानियों की सेवा में लगे रहते हैं.
आश्रयणी क्षेत्र में पर्यटकों के लिए कई सुविधाएंआश्रयणी का मनोरम स्थल है राजडेरवा. यह क्षेत्र प्रकृति की गोद में बसा है. यहां पहुंचने के लिए नेशनल पार्क मुख्य द्वार से सैलानियों को 10 किमी कच्ची सड़क पश्चिम की ओर घने जंगल से जाना पड़ता है. यहां झील, म्यूजियम, अतिथि गृह, काटेज के अलावा कैंटीन की सुविधा है. पर्यटकों को ठहरने के लिए काटेज की व्यवस्था है. यहां झील है जहां पर्यटक नौका विहार का आनंद लेते हैं. लेकिन, नौका विहार के चार वोट में सिर्फ एक ही ठीक है. शेष तीन बोट चलने के लायक नहीं है.
आश्रयणी क्षेत्र के अंदर 11 वाच टावर बने हैं जहां से पर्यटक दूर-दूर तक देख सकते हैं. यहां अधिकारियों के ठहरने के लिए गेस्ट हाउस, पर्यटकों को ठहरने के लिए 5 काटेज, सिंगल बेड के लॉज एवं 6 बेड का एक डोमेट्री है. यहां ठहरने वाले पर्यटकों को खुद से राशन देना पड़ता है. खलसामा उन्हें भोजन पकाकर खिलाता है. अन्य लोग आश्रयणी का भ्रमण कराने में पर्यटकों का सहयोग करते हैं .
Also Read: झारखंड का गर्म जलस्रोत, जहां नहाने से दूर होते हैं चर्म रोग, नये साल का जश्न मनाने जुटती है पर्यटकों की भीड़ 54 हेक्टेयर भूमि पर बना है केजआश्रयणी के अंदर 54 हेक्टेयर भूमि पर केज बना हुआ है. वहीं, 10 हेक्टेयर भूमि पर एक और नया केज बनाया जा रहा है. केज के अंदर हिरण, चीतल, सांभर, कोटरा, नीलगाय समेत 60-65 जीव-जंतु है. यहां बंदर की संख्या अधिक है, जबकि केज के बाहर खुले जंगल में भी हिरण, चीतल, सांभर को छोड़ा गया है. आश्रयणी में भालू व सूअर भी विचरण करते नजर आते हैं. यदा-कदा तेंदुआं और लकड़बग्घा भी देखने को मिलता है.
टाइगर ट्रेपमुख्य द्वार से करीब तीन किमी पर है टाइगर ट्रेप. कहा जाता है कि इस ट्रेप की सहायता से पदमा के राजा बाघ और तेंदुआ पकड़ते थे और दूसरे राजा को उपहार स्वरूप बाघ भेंट करते थे. टाइगर ट्रेप जमीन खोदकर बनाया गया है. इसकी गहराई 40 फीट एवं परिधि 40 फीट है. ट्रेप में जाने के लिए 60 फीट का लंबा सुरंग बना हुआ है. गड्ढे के बीच शंकु आकार का एक पिलर है, जिसपर बाघों को प्रलोभन देने के लिए बकरी बांधा जाता था. बकरी की आवाज को सुनकर बाघ और चीता उसके शिकार करने आता था. छलांग लगाने के दौरान दूरी अधिक होने के कारण बाघ नीचे गड्ढे में गिर जाता था एवं जाल में फंस जाता था.
बाघमारा डैमआश्रयणी के अंदर कई तालाब व चेकडैम है. पर, बाघमारा चेकडैम का सौंदर्य ही अलग है. डैम के पानी को देख पर्यटक अचंभित होते हैं और सुकून महसूस करते हैं. तैरती जंगली पक्षियां एवं छलांग लगाते बंदर को देख लुत्फ उठाते हैं. बांध के नीचे की चट्टान एवं नीचे गिरते पानी के झरने को देख प्रसन्न होते हैं.
आश्रयणी क्षेत्र में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गयी है. रात के अंधेरे में पर्यटक खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं. यहां बिजली की व्यवस्था नहीं है. इस कारण शाम ढलते ही यह क्षेत्र अंधेरे में डूब जाता है. यहां मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं पकड़ता है. जिस कारण पर्यटक रात को ठहरने में कतराते हैं. इन तमाम कमियों को दूर करने पर नेशनल पार्क दोबारा पुराना अस्तित्व में लौट सकता है.
रिपोर्ट: रामशरण शर्मा, इचाक, हजारीबाग.