पश्चिम बंगाल की कल्याणकारी योजना ‘शिशु साथी’ का फंड केंद्र सरकार (Central Government) ने रोक दिया है. इस योजना के तहत 0-18 वर्ष तक के उम्र के बच्चों की हृदय संबंधी सर्जरी की जाती है. कहा जा रहा है कि इस योजना का नाम पसंद नहीं आने के कारण, केंद्र ने आवंटन रोक दिया है. इससे बीमार बच्चों के अभिभावकों की परेशानी बढ़ गयी है. फिलहाल बच्चों की सर्जरी जारी रखने के लिए राज्य सचिवालय ने करीब 300 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. राज्य स्वास्थ्य विभाग ने बच्चों के इलाज के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहने के बजाय शिशु साथी को स्वास्थ्य साथी से जोड़ने की योजना बनायी है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बच्चों के हृदय रोग के इलाज के लिए 2013 में ‘राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम’ शुरू किया था. उसी साल राज्य सरकार ने ‘शिशु साथी’ योजना शुरू की. स्वास्थ्य भवन के एक अधिकारी ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय इस योजना की लागत का 60 फीसदी खर्च वहन करता है, शेष राशि राज्य सरकार देती है. स्वास्थ्य विभाग कुछ निजी अस्पतालों के साथ पीपीपी मॉडल पर बच्चों की सर्जरी करा रहा है. शिशु साथी को स्वास्थ्य साथी योजना से जोड़े जाने पर जिले के बच्चों को इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. किसी भी निजी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में इलाज हो सकेगा.
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बता दें कि बंगाल में इस योजना के तहत पिछले 10 वर्षों में लगभग 28 हजार बच्चों का इलाज किया गया है. जो देश में एक रिकॉर्ड है. इसके बाद महाराष्ट्र दूसरे और पंजाब तीसरे स्थान पर रहा. राज्य के एनआरएस, एसएसकेएम, आरजीकर मेडिकल कॉलेज सहित आठ सरकारी अस्पतालों में हर साल औसतन 3,000 बच्चों की हार्ट सर्जरी होती है. यहां तक कि निजी अस्पतालों में इलाज का सारा खर्च भी सरकार उठाती है.
चालू वित्तीय वर्ष में कम से कम साढ़े तीन हजार बच्चों के अभिभावक उनकी हृदयजनित समस्याओं के लिए सर्जरी का इंतजार कर रहे हैं. केंद्र द्वारा फंड रोके जाने से इन बच्चों का इलाज नहीं हो पा रहा है.वित्त और स्वास्थ्य विभाग की एक विशेषज्ञ समिति जांच कर रही है. इसके बाद ही शिशु साथी को स्वास्थ्य साथी से जोड़ा जायेगा. बकाया राशि प्राप्त करने के लिए राज्य स्वास्थ्य विभाग ने केंद्र सरकार को पत्र भी भेजा है. पर इसका कोई लाभ होता नहीं दिख रहा है.