Chaiti Chhath Puja Nahay Khay 2023: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) की शुरुआत नहाय-खाय (Nahay Khay) के साथ होती है. चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व हिंदू पंचांग (Hindu Panchang) के मुताबिक छठ पूजा कार्तिक माह (Kartik Month) की षष्ठी से शुरू हो जाती है. आज 25 मार्च से चैती छठ महापर्व की शुरूआत हो रही है. यहां देखें चैती छठ पूजा की तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त से जुड़ी हर अपडेट
नहाय खाय (Chaiti Chhath Puja Nahay Khay) – 25 मार्च 2023
खरना (Chaiti Chhath Puja Kharna) – 26 मार्च 2023
अस्तगामी सूर्य (ढ़लते सूर्य) अर्घ्य – 27 मार्च 2023
उदयीमान सूर्य को अर्घ्य – 28 मार्च 2023
चैत मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पर्व का प्रथम दिन होता है. इस दिन व्रती प्रातः काल जल्दी उठकर साफ-सफाई करते हैं और स्नानादि करने के पश्चात छठ पर्व का आरंभ माना जाता है. नहाय खाय के दिन व्रती चने की दाल, कद्दृ की सब्जी और चावल खाते हैं. इसे भी छठ व्रत शुरू होने के प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है. विभिन्न जगहों पर नहाय-खाय वाले दिन को कद्दू भात वाला दिन भी कहा जाता है. इस साल नहाय खाय की तिथि आज यानी 25 मार्च को है.
चैत मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को छठ व्रत का दूसरा दिन होता है. इस दिन को खरना कहते हैं. इस दिन व्रती दिन भर निर्जला उपवास रखते हैँ.मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर चावल, दूध और गुड़ की खीर बनाई जाती है.बिहार के नालंदा, पटना जैसे जिलों में इस दिन अरवा चावल, चने की दाल, चावल का पीठा, घी वाली रोटी और खीर बनाने का भी चलन है. संध्याकेसमयस्नान केबाद सूर्य देव को भोग लगाने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और फिर छठ का कठिन निर्जला व्रत आरंभ हो जाता है. इस साल खरना पूजा 26 मार्च को है.
षष्ठी तिथि को छठ पर्व का तीसरा दिन होता है. इस दिन व्रती पूरे दिन कठिन निर्जला उपवास करते हैं. शाम के समय नदी या पोखर में जाकर कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं. वर्ष 2023 चैत मास शुक्ल पक्ष, षष्ठी तिथि, 27 मार्च दिन सोमवार को है.
षष्ठी के अगले दिन सप्तमी को प्रात. नदी या पोखर जाकर व्रती फिर से उगते सूर्य को जल से अर्घ्य देते हैं. धूप-दीप के बाद छठ पर्व का समापन प्रसाद ग्रहण करके पारण के साथ किया जाता है. वर्ष 2023 चैत्र मास शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, 27 मार्च दिन मंगलवार को है.
हिंदू शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष जबकि बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. इसमें सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है. शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं माता की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि में षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.