Chaitra Navratri 2021, Ma Chandraghanta Puja Benefits, Swaroop, Origin, History: धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मां चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित रूप है. कहा जाता है कि महागौरी ने भगवान शिव से शादी के पश्चात आधे चांद से अपने माथे का श्रृंगार करना शुरू कर दिया था. जिसके कारण उन्हें देवी चंद्रघंटा के रूप में जाना जाने लगा. चैत्र नवरात्र में इनकी पूजा तीसरे दिन की जाती है. मां चंद्रघंटा का स्वरूप अद्भुत है. उनकी दस भुजाएं है. कमण्डल, तलवार, त्रिशूल, गदा समेत अन्य सामग्री होती हैं. आइए जानते हैं इनके इतिहास, स्वरूप और पूजा के महत्व के बारे में विस्तार से…
नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा करने की परंपरा है. इन्हें भी चमेली का फूल बेहद प्रिय है.
ऐसी मान्यता है कि देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने से कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत होते है. आपको बता दें कि शुक्र ग्रह को सुख-सुविधाओं का ग्रह माना गया है.
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देवी चंद्रघंटा की सवारी बाघिन है.
उनके माथे पर आध चंद्रमा अलंकृत रहता है. जो चांद की घंटी सा दिखता है. इसे कारण उन्हें चंद्रघंटा भी कहा जाता है.
दस भुजाओं वाली मां चंद्रघंटा के बाएं के चारो हाथों में त्रिशूल, तलवार, गदा और कमंडल होता है.
वहीं, बाएं के पांचवें हाथ को वे वरदा मुद्रा में रखती हैं.
जबकि, दाएं के चारों हाथों में कमल फूल, धनुष, तीर और जपने वाली माला होती है.
वहीं, पांचवें दाहिने हाथ को वे अभय मुद्रा में रखती हैं.
धार्मिक विशेषज्ञों की मानें तो मां चंद्रघंटा का स्वरूप यूं तो शांत स्वभाव का होता है. वे भक्तों के कल्याण में विश्वास रखती हैं. लेकिन, उनकी दशों भुजाएं और सभी हथियार युद्ध के लिए या अधर्म के नाश के लिए भी तैयार रहती हैं. मान्यता है कि उनके माथे पर विराजमान चंद्रमा और घंटी की आवाज जब होती है तो सभी प्रकार की आत्माओं या नाकारात्मक शक्तियां दूर हो जती है.
Posted By: Sumit Kumar Verma