चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं और इसकी समाप्ती 21 अप्रैल को होंगी. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. ये नौ स्वरूप अलग-अलग शक्तियों की प्रतीक हैं. नौ दिन तक चलने वाले इस पावन पर्व में श्रद्धालु मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं और माता का विशेष आशीर्वाद पाते है. अगर आप भी इस नवरात्रि अपनी मनोकामना को पूर्ण करना चाहते हैं तो नौ दिनों तक मातारानी को अलग-अलग स्वरूपों के हिसाब से उनकी पूजा व जाप करें. ताकि माता प्रसन्न होकर आप पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखे.
नवरात्रि में माँ भवानी को प्रसन्न करने के लिए उनके नौ रूपों की शुभ तिथि की अनुसार पूजा-अर्चना की जाती है. देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग शक्ति स्वरूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि.
नवरात्रि के पहले दिन की शुरुआत कलश की स्थपन से की जाती. जहां माता की चौकी लगी हो उसके ठीक सामने लाल रंग का कपड़ा बिछाकर कलश स्थापना के लिए मिट्टी की वेदी बनायें. इसमे पहले से भीगे हुये जौ के दाने बिखेर दें, वेदी के बीच में एक अष्टदल कमल बनायें. अब कलश पर रोली से स्वास्तिक और त्रिशूल अंकित करें. फिर कलश के गले पर मौली लपेट दें. कलश के अन्दर गंगाजल भरे और उसके ऊपर पंच पल्लव लगाकर उस पर किसी मिट्टी के पात्र में चावल भरकर रख दें. इसके बाद सूखे नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर कलश के ऊपर रखें मिट्टी के कटोरे में रख दें, ध्यान रहे नारियल को सीधा खड़ा करके रखना है. इसके बाद हाथ में फूल और अक्षत लेकर सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें.
पहले दिन चैत्र प्रतिपदा पर मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा की जाती है. शैलराज हिमालय के घर मे जन्म लेने की वजह से माता का नाम शैलपुत्री पड़ा. माता शैलपुत्री बैल पर सवार रहती हैं. उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल होता हैं. यह त्रिशूल जहां भक्तों को अभयदान देता है, वहीं पापियों का विनाश करता है. वही बाएं हाथ में कमल का पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक है. माता की पूजा सच्चे श्रद्धा भाव से उनको अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध, पुष्प आदि अर्पित करते हुए करें. इसके बाद माता के मंत्र का उच्चारण करें- शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी।पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी,रत्नयुक्त कल्याण कारीनी।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।। अंत में कपूर या घी के दीये जलाकर माता की आरती उतारें और शंखनाद करें.
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है. इन्हे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा अन्य नामों से भी जाना जाता हैं. जो भक्त मां के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है. पूजा के लिए माता को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करते हुए मंत्र बोलें- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
माँ दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. इनके माथे पर घंटे का आकार का अर्धचंद्र होता है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है.पूजा के लिए सबसे पहले इन्हें गंगा जल से स्नान कराएं. इसके बाद धूप-दीप, पुष्प, रोली, चंदन और फल-प्रसाद से देवी की पूजा करें. अब मां चंद्रघंटा का ध्यान करते हुए मंत्र बोले – या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम॥ पिंडजप्रवरारुढ़ा चन्दकोपास्त्रकैर्युता! प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघंटेति विश्रुता॥
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा का पूजन होता है. अपनी हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्मांडा हुआ. कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएं हैं, जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है. इसलिए ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं. हरे वस्त्र धारण करके माँ कुष्मांडा का पूजन करने से माता अति प्रसन्न होती है. पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित करें. इसके बाद उनके मंत्र “ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः” का 108 बार जाप करने से समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है.
चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है. स्कंदमाता की पूजा करने से शत्रुओं और विकट परिस्थितियों पर विजय प्राप्त होता है, वहीं, नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख मिलता है. मां दुर्गा ने बाणासुर के वध के लिए अपने तेज से 6 मुख वाले सनतकुमार को जन्म दिया, (जिनको स्कंद भी कहते हैं) तब से माता को स्कंदमाता के नाम से जाना जाने लगा. सिंह पर सवार रहने वाली स्कंदमाता के गोद में सनतकुमार होते हैं. माता की पूजा के लिए स्कंदमाता का ध्यान करते हुए अक्षत्, धूप, गंध, पुष्प अर्पित करें. उनको बताशा, पान, सुपारी, लौंग का जोड़ा, किसमिस, कमलगट्टा, कपूर, गूगल, इलायची आदि भी चढ़ाएं.
नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित होता है. ऋषि कात्यायन माता के परम भक्त थे. इनकी तपस्या से खुश होकर ही माँ दुर्गा ने इनके घर पुत्री के रुप में होने का वरदान दिया. ऋषि कात्यायन की बेटी होने के कारण मां को कात्यायनी कहा जाता है.महिषासुर का वध करने वाली देवी मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी के नाम से भी पुकारते हैं. मां कात्यायनी का ‘कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां। स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते’ से जप करने के बाद उन्हें गंगाजल, नारियल, कलश, चावल, रोली, चुन्नी, शहद आदि अर्पित करना चाहिए.
चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन माँ कालरात्रि की उपासना की जाती. मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण का है, काले रंग के कारण उनको कालरात्रि कहा गया है. आज के दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस कारण से मां कालरात्रि को शुभंकरी के नाम से भी पुकारा जाता है। पूजा के लिए मां कालरात्रि का स्मरण करते हुए माता को अक्षत्, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ चढ़ाएं. मां कालरात्रि का प्रिय फूल रातरानी है, यह फूल उनको जरूर अर्पित करें. इसके बाद मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें- ओम देवी कालरात्र्यै नमः। ज्वाला कराल अति उग्रम शेषा सुर सूदनम। त्रिशूलम पातु नो भीते भद्रकाली नमोस्तुते।।
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है. मां महागौरी का रंग अत्यंत गोरा है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता. महागौरी को मंगला नाम से भी जाना जाता. पूजा में माता को वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, – नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि अर्पित करें. अगर आपके घर अष्टमी पूजी जाती है तो पूजा के बाद कुमारी कन्याओं को भोजन कराना अति शुभ माना गया है.
नवरात्र के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना का की जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर ने माता सिद्धिदात्री से कई सिद्धियों की प्राप्ति की थी. देवी की कृपा से ही भोलेनाथ का आधा शरीर देवी का हो गया था. इसलिए भगवान शिव को ‘अर्द्धनारीश्वर’ भी कहा जाता है. माता का ध्यान करते हुए उनको कुमकुम, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाल, फूल, चूड़ियां, लाल चूनरी, श्रंगार सामग्री समर्पित करें. फल, पंचमेवा, खीर, नारियल का भोग लगाने के बाद माता की आरती करें और मंत्रों का जाप करे – वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥ स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥ पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥