पंडित विवेक शास्त्री
नवरात्रि पर्व 22 मार्च से शुरू हो रहा है . देवी का स्वागत के लिए मंदिरों में तैयारी की जा रही है. इस दिन से विक्रम संवत 2080 यानी हिंदू नववर्ष भी शुरू हो रहा है . परंपरा के अनुसार इस दिन द्वार पर आम के पत्तों की बंदनवार और घरों की छत पर ध्वजा लगाकर देवी का स्वागत करना चाहिए.
देवी की साधना करने वाले साधकों को नवरात्रि की प्रतिक्षा रहती है . वर्ष में कुल चार नवरात्रि पर्व पड़ते हैं जिसमें चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं. जिनमें चैत्र और आश्विन के नवरात्र प्रसिद्ध हैं शेष दो नवरात्रि गुप्त नवरात्रि कहे जाते हैं. इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 22 मार्च बुधवार से हो रहा है . इन्हें वासंतिक या बासंतिक नवरात्र भी कहा जाता है.
इस बार माता का आगमन नाव की सवारी पर होगा और उनका गमन हाथी को सवारी पर होगा. ज्योतिष की दृष्टि से यह दोनो अत्यंत शुभ हैं. देवी मंदिरों और घरों में इस पर्व को श्रद्धा और भक्ति से मनाने की तैयारी जोर शोर से हो रही है. इस दौरान मां से आशीर्वाद की कामना के उद्देश्य स्वयं अथवा योग्य आचार्य द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ, ललिता सहस्रनाम और श्री रामचरितमानस का पाठ करवाना अत्यंत लाभदायक होता है. इस बार वासन्तिक नवरात्र 22 मार्च बुधवार से प्रारंभ होकर 30 मार्च गुरुवार को पूर्ण होंगे. इस बार नवरात्र अष्टमी 29 मार्च दिन बुधवार को रहेगी वहीं रामनवमी 30 मार्च दिन गुरुवार को रहेगी. नवरात्र व्रत रहने वालों के लिए व्रत का पारण 31 मार्च शुक्रवार को रहेगा.
इस बार घटस्थापना ब्रह्ममुहूर्त से पूरे दिन भर है . विशेष रूप से 22 मार्च को घट स्थापना सुबह 8 बजकर 45 से 10 बजकर 41 तक मिल रहा है .
मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें और उसमें सप्तधान्य बोएं. अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बांधें फिर पंचपल्लव या आम के पत्तों को कलश के ऊपर रखें. कलश में रोली, फूल, सुपारी, दूर्वा, फूल, सिक्का डालने के बाद उसके ऊपर पूर्णपात्र ( चावल से पूरा भरा सकोरा ) रखे फिर नारियल में कलावा लपेटे. उसके बाद नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पत्तों के बीच में रखें. घटस्थापना पूरी होने के माँ दुर्गा जी का आवाहन कर पूजन पाठ के साथ व्रत प्रारम्भ किया जाता है.
प्रतिपदा तिथि: मां शैल पुत्री की पूजा और घटस्थापना
द्वितीया तिथि: मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीया तिथि: मां चंद्रघंटा पूजा
चतुर्थी तिथि: मां कुष्मांडा पूजा
पंचमी तिथि: मां स्कंदमाता पूजा
षष्ठी तिथि: मां कात्यायनी पूजा
सप्तमी तिथि: मां कालरात्रि पूजा
अष्टमी तिथि: मां महागौरी
नवमी तिथि: मां सिद्धिदात्री और रामनवमी पूजा
दशमी को कन्या भोज और व्रत पारण