Chaitra Navratri 2021, Ma Kushmanda Puja Benefits, Swaroop, Origin, History: चैत्र नवरात्र 2021 के दौरान मां कुष्मांडा की पूजा चौथे दिन यानी 16 अप्रैल को की जाएगी. ऐसी मान्यता है कि देवी कुष्मांडा में सूर्य के समान तेज है. वे अपनी चमक से पूरे ब्रह्मांड को जगमगा सकती हैं. आठ भुजाओं वाली मां कुष्मांडा कमंडल, धनुष, अमृत कलश, जपने माला, गदा और चक्र समेत अन्य सामग्रियां रहती है. आइये जानते हैं उनके इतिहास और स्वरूप के बारे में विस्तार से…
ऐसी मान्यता है कि देवी सिद्धिदात्री का रूप लेने के बाद मां पार्वती सूर्य के केंद्र में जाकर विराजमान हो गयीं और वहां से संसार को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने लगीं. तब से ही देवी माता को कूष्मांडा के रूप में माना जाने लगा. कहा जाता है कि मां कुष्मांडा के अंदर सूर्य के समान तेज हेाता है. पौराणिक कथाओं और ड्रिकपंचांग की मानें तो इन्होंने अपनी थोड़ी सी मुस्कुराहट से ही पूरे ब्रह्मांड का निर्माण कर दिया था. इन्हें कद्दू की बाली भी पसंद करती है जिसे कुष्मांडा (कुशमानंद) के नाम से जाना जाता है. ब्रह्माण्ड और कुष्मांडा का आपस में जुड़ाव के कारण ही इनका नाम देवी कुष्मांडा पड़ा.
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा करने की परंपरा होती है.
मान्यताओं के अनुसार देवी कूष्मांडा सूर्य तक को दिशा और ऊर्जा प्रदान करने का काम करती हैं. ऐसे में जिनके कुंडली में सूर्य कमजोर होता है उन्हें देवी कूष्मांडा की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए.
देवी कूष्मांडा आठ भुजाओं वाली होती हैं. यही कारण है कि इन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है.
उनकी सवारी शेरनी हैं.
उनके चारों दाहिने हाथों में कमंडल, धनुष, बाड़ा और कमल होता है.
जबकि, चारों बाएं हाथ में जपने वाली माला, गदा, अमृत कलश और चक्र होता है.
Posted By: Sumit Kumar Verma