Chaman Bahar Review : एकतरफा प्‍यार की कहानी ‘चमन बहार’

Chaman Bahar Review, Jitendra Kumar: 'गुलाबो सिताबो' के बाद फ़िल्म 'चमन बहार' (Chaman Bahar Review) आज डिजिटली नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. यह फ़िल्म भी थिएट्रिकल रिलीज के लिए बनी थी लेकिन लॉकडाउन की वजह से फ़िल्म दर्शकों तक डिजिटल माध्यम से पहुँच रही है.

By कोरी | June 19, 2020 3:11 PM
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फ़िल्म: चमन बहार

निर्माता: यूडली और सारेगामा

निर्देशक: अपूर्व धार बड़गैईयाँ

कलाकार: जितेंद्र कुमार, रितिका, भुवन, धीरेंद्र और अन्य

रेटिंग: ढाई

Chaman Bahar Review : ‘गुलाबो सिताबो’ के बाद फ़िल्म ‘चमन बहार’ (Chaman Bahar Review) आज डिजिटली नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. यह फ़िल्म भी थिएट्रिकल रिलीज के लिए बनी थी लेकिन लॉकडाउन की वजह से फ़िल्म दर्शकों तक डिजिटल माध्यम से पहुँच रही है.

फ़िल्म की कहानी बिल्लू (जितेंद्र कुमार) की है जो फारेस्ट विभाग में अपने पिता की चौकीदार वाली नौकरी नहीं करना चाहता है. वह अपना नाम बनाना चाहता है वो भी पान की दुकान शुरू करके. छत्तीसगढ़ के छोटे से शहर की कहानी है. वह एक दुकान किराए पर लेता है लेकिन उस जगह की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी बदलती है कि वहां लोग मुश्किल से जाते हैं.

ऐसे में बिल्लू की दुकान चमन बाहर चलेगी कैसी? उस वीरान जगह में बहार तब आती है जब दुकान के ठीक सामने एक इंजीनियर का परिवार रहने आता है. उसकी एक बेटी भी है. बेटी की एक झलक देखने के लिए रोमियोज की लाइन लग जाती है फिर चाहे वह विधायक का बेटा हो या बिजनेसमैन और ऑफिसर का. जिससे बिल्लू का दुकान भी चल पड़ता है लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है.

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जब बिल्लू भी रोमियोज की लाइन में शामिल हो जाता है. बिल्लू के रोमियो बनने से कहानी एक अलग ही मोड़ ले लेती है. यही फ़िल्म की आगे की कहानी है. फ़िल्म एक तरफा प्यार की कहानी है.बहुत हल्के फुल्के और चुटीले अंदाज़ में फ़िल्म का ट्रीटमेंट किया गया है जो फ़िल्म की साधारण कहानी को एंटरटेनिंग बना जाता है.

फ़िल्म की कहानी में महिला पात्र के एक भी संवाद नहीं है. वह स्कूल जाने वाली लड़की है लेकिन उसे स्कूल के टीचर से लेकर स्कूल मेट्स सभी पसंद करते हैं।पूरे शहर के लड़के जो उससे उम्र में बहुत ज़्यादा हैं वो भी कतार में हैं.

उसे ऑय कैंडी के तौर पर ही पेश किया गया है. यह बात बहुतों को चुभ सकती हैं लेकिन हकीकत यही है. यह भारत के कई गांव और शहरों में बसे पुरुष पात्रों का सटीक चित्रण हैं जो लड़की की मर्जी जाने बगैर उसे अपनी प्रेमिका मानने लगते हैं और अगर उसमें उनको रिजेक्शन मिल जाए तो फिर वह लड़की को चरित्रहीन बताने से भी गुरेज नहीं करते हैं.

एक वक्त था जब नोट, फेसबुक से लेकर ट्विटर तक और तमाम दूसरी सोशल साइट्स के पेज सोनम गुप्ता की बेवफ़ाई से पटे पड़े थे. फ़िल्म देखने के बाद महिला सशक्तिकरण के मोर्चे पर फ़िल्म को कमज़ोर बताने वाले खुद से ये सवाल पूछ सकते हैं कि क्यों किसी लड़के के बेवफाई को ऐसा घोषित नहीं किया गया था. लड़की को ही क्यों.

फ़िल्म की कहानी में सोनम गुप्ता बेवफा वाले प्रकरण का इस्तेमाल भी किया गया है. एक तरफा प्यार के साइड इफेक्ट्स की वजह से लड़की और उसके परिवार की परेशानियों को सरसरी तौर पर ही सही फ़िल्म के आखिरी दृश्य में उसका भी जिक्र हुआ है.

अभिनय की बात करें तो जितेंद्र कुमार एक बार फिर बेहतरीन रहे हैं. छोटे शहर के युवाओं के नब्ज को पकड़ने में वह माहिर हैं. भुवन और धीरेंद्र की जोड़ी फ़िल्म में एक अलग ही रंग भरती हैं. उनका संवाद हो या केमिस्ट्री दोनों ही बेहतरीन हैं. अभिनेत्री रितिका के लिए करने को कुछ खास नहीं था।बाकी के कलाकार अपनी अपनी भूमिका में जमे हैं. गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. फ़िल्म का छत्तीसगढ़ी संवाद रियलिस्टिक किरदारों को और रीयलिस्टिक बनाता है. कुलमिलाकर कलाकारों के अभिनय और फ़िल्म के रियलिस्टिक ट्रीटमेंट की वजह से यह फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है.

Posted By: Budhmani Minj

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