Chandan Yatra Utsav: 21 दिवसीय चंदन यात्रा के साथ रथों का निर्माण शुरू, जानें इस परंपरा का इतिहास
Chandan Yatra Utsav started in Odisha: अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होने वाले चंदन लेप की परंपरा ने हाल ही के कुछ वर्षों में चंदन यात्रा उत्सव’ का रूप ले लिया हैं. यह उत्सव 21 दिन ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी तक चलता है
Chandan Yatra Utsav started in Odisha: 21 दिनों तक चलने वाली महाप्रभु की चंदन यात्रा शुरू हो गई है. श्रीविग्रह आज से 21 दिन तक नरेन्द्र सरोवर में नौका विहार करेंगे. इसके साथ आज से ही रथ बनाने का काम भी शुरू कर हो गया है.
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महाप्रभु की जलक्रीड़ा नीति शुरू
कोरोना महामारी के बाद इस बार भक्तों के समागम के बीच महाप्रभु चंदन यात्रा शुरू हुई है. नरेन्द्र सरोवर में नंदा एवं भद्रा नाव में बैठकर महाप्रभु की जलक्रीड़ा नीति शुरू हुई है. इसे देखने के लिए नरेन्द्र सरोवर के बाहर भक्तों की खासी भीड़ देखी गई. चंदन यात्रा के लिए महाप्रभु की चलंति प्रतिमा मदनमोहन, श्रीदेवी, भूदेवी रामकृष्ण के साथ पंच महादेव जम्बेश्वर, लोकनाथ, कपालमोचन, मार्कण्डेश्र एवं नीलकंडेश्वर को जगन्नाथ मंदिर से बाहर निकाला गया.
Odisha | 21 days famous Chandan yatra and construction of 3 chariots for Rathyatra was started in Puri
‘Agnyamala Bije’ ritual was performed in which the garland of nod was ceremonially brought to Rathakhala from Jagannath temple: Madhab Chandra, Secretary, Pujapanda committee pic.twitter.com/y9DcrZvmKB
— ANI (@ANI) May 3, 2022
सेवकों को लगा कोरोना टीका
निर्माण कार्य में नियोजित होने वाले 200 से अधिक महारणा, भोई, चित्रकार, रूपकार, दर्जी एवं ओझा सेवकों को कोरोना टीका लगा दिया गया है. रथ निर्माण वाले स्थल को चारों तरफ से घेरी बना दिया गया है. आम लोगों को वहां प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है. आज अक्षय तृतीया के मौके पर रथनिर्माण कार्य एवं चंदन यात्रा बिना भक्तों के शुरू हो गई है.
चंदन लेप परंपरा का इतिहास
मान्यता है कि स्वयं भगवान् जगन्नाथ ने राजा इंद्रद्युम्न को इस उत्सव को मानाने के लिए आदेश दिया था . एक बार गोपाल जी ने माधवेन्द्र पुरी को सपने में जमीन खोदकर प्रकट करने का अनुरोध किया. माधवेन्द्र पुरी ने गांव वालों की मदद से उस स्थान को खोदा और वहां मिले गोपाल जी के अर्चाविग्रह को गोवर्धन पर्वत पर स्थापित किया. कुछ दिन बाद गोपाल ने कहा कि जमीन में बहुत समय तक रहने के कारण उनका शरीर जल रहा है. सो वे जगन्नाथ पुरी से चंदन लाकर उसके लेप से उनके शरीर का ताप कम करें.महीनो पैदल चलकर वह जगन्नाथ पूरी धाम पोहचते है. ओडिशा व बंगाल की सीमा पर वे रेमुन्ना पहुंचे जहां गोपीनाथ जी का मंदिर था.
रात को उस मंदिर में गोपीनाथ को खीर का भोग लगाते देख पुरी ने सोचा कि अगर वे उस खीर को खा पाते तो वैसी ही खीर अपने गोपाल को भी खिलाते. ऐसा सोचकर वे रात को सो गए. उधर भगवान गोपीनाथ ने पुजारी को रात में स्वप्न में बताया कि मेरा एक भक्त यहां आया है, उसके लिए मैंने खीर चुराई है, उसे वह दे दो. भगवान की भक्त के लिए यह चोरी इतनी प्रसिद्ध हुई कि उनका नाम ही खीरचोर गोपीनाथ पड़ गया.
जगन्नाथ पुरी में माधवेन्द्र पुरी ने भगवान जगन्नाथ के पुजारी से मिलकर अपने गोपाल के लिए चंदन मांगा. पुजारी ने पुरी को महाराजा पुरी से मिलवा दिया और महाराजा ने अपने क्षेत्र की एक मन ‘40 किलो, विशेष चंदन लकड़ी अपने दो विश्वस्त अनुचरों के साथ पुरी को दिलवा दी.
जब पुरी गोपीनाथ मंदिर के पास पहुंचते तो गोपाल फिर उनके स्वप्न में आए और कहा कि वो चंदन गोपीनाथ को ही लगा दें क्योंकि गोपाल और गोपीनाथ एक ही हैं. माधवेन्द्र पुरी ने गोपाल के निर्देशानुसार चंदन गोपीनाथ को ही लगा दिया. तब से इस लीला के सम्मान में चंदन यात्रा उत्सव आरंभ हुआ.