चार दिवसीय नहाय-खाय के साथ आज से छठ महापर्व शुरू हो रहा है. और इस महापर्व में हर दिन का अलग अलग महत्व और मान्यता होती है. जिसे हम सबको जानना जरूरी है. इस पर्व में भागवान सूर्य को अर्घ दिया जाता है. ऊर्जा, प्रकाश, शक्ति और चेतना के असीम स्रोत भगवान सूर्य चर और अचर जगत में गति, प्रगति और विकास के वाहक हैं. लोक आस्था के महापर्व छठ में सूर्योपासना के जरिये लोग सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं. आडंबरविहीन, प्रकृति से अनुराग, स्वच्छता और सामूहिकता से ओत-प्रोत छठ महापर्व सचमुच पूरी दुनिया में अनूठा है.
नहाय-खाय का अर्थ है स्नान कर भोजन करना. शरीर को शुद्ध कर सूर्योपासना के लिए तैयार किया जाता है. व्रती नदी या तालाब में स्नान कर कच्चे चावल का भात, चनादाल और कद्दू (लौकी या घीया) प्रसाद के रूप में बनाकर ग्रहण करती हैं. इस साल अनुराधा नक्षत्र व सौभाग्य-शोभन योग के युग्म संयोग में नहाय-खाय होगा.
36 घंटे के निर्जला अनुष्ठान के संकल्प का दिन. इसमें व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास कर सायंकाल में पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी. मिट्टी के चूल्हे पर गाय के दूध व गुड़ से निर्मित खीर, ऋतुफल का प्रसाद व्रती द्वारा खुद बनाने की परंपरा है. मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर से लेकर मन तक शुद्ध हो जाता है.
केवल छठ में ही डूबते सूर्य को अर्घ देने का प्रावधान है. ऐसी मान्यता है कि सायंकाल में सूर्यदेव और उनकी पत्नी देवी प्रत्युषा की भी उपासना की जाती है. जल में खड़े होकर सूप में फल, ठेकुआ आदि रख कर अर्घ देने की परंपरा है. इस साल सुकर्मा योग, रवियोग व सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा.
माना जाता है कि जल में कमर तक खड़े होकर सूर्य को अर्घ देने की परंपरा महाभारत काल से शुरू हुई. सप्तमी तिथि को व्रती जल में कमर तक खड़े होकर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करते हैं. अर्घ देने से कुंडली में सूर्य मजबूत होते हैं. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र व धृति योग के साथ रवियोग में दूसरा अर्घ होगा. इसके साथ चार दिवसीय पर्व का समापन.