Chhath Puja 2022: नहाय खाय के साथ 28 अक्टूबर ये छठ पूजा की शुरुआत हुई. नहाय खाय के दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया 31 अक्टूबर को चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महा पर्व का समापन है. इस पूरे व्रत के दौरा स्वच्छता और साफ सफाई का अत्यंत विशेष महत्व होता है यहां जानें छठ महापर्व के दौरान क्या करें और क्या न करें. छठ पूजा के दौरान शुभ योग, 30 अक्टूबर को अस्तलचगाी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अब 31 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का समय क्या है?
छठ पूजा का पहला दिन- नहाय खाय- 28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार
छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना- 29 अक्टूबर 2022, शनिवार
छठ पूजा का तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य- 30 अक्टूबर 2022, रविवार
छठ पूजा का चौथा दिन- प्रात: अर्घ्य- 31 अक्टूबर 2022, सोमवार
संध्या अर्घ्य- सूर्यास्त का समय 30 अक्टूबर -शाम 05 बजकर 37 मिनट से
उषा अर्घ्य- सूर्योदय का समय 31 अक्टूबर- सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक
सूर्योदय- सुबह 06 बजकर 30 मिनट पर
सूर्यास्त- शाम 05 बजकर 39 मिनट पर
शोभन योग: सुबह से शुरू
सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 06 बजकर 30 मिनट से 10 बजकर 42 मिनट तक
रवि योग: सुबह 10 बजकर 42 मिनट से आरंभ
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छठ पूजा नहाय खाय के बाद मांस, मदिरा जैसी चीजों का सेवन घर के सदस्य न करें और न ही ऐसी चीजें घर लायें.
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जिस भी घर में छठ पूजा हो रहा हो वहां के सदस्य सिगरेट, खैनी जैसी चीजों के सेवन से परहेज करें.
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छठ पूजा के चार दिनों में घर में सात्विक भोजन बनायें, प्याज, लहसुन का प्रयोग न करें.
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छठ पूजा का प्रसाद जहां बनायें वहां कोई भी सदस्य खाने न बैठे, साथ ही ऐसी जगह चुनें जहां गंदगी, धूल या सखरी न हो.
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छठ पूजा के दाैरान ब्रह्मचर्य का पालन करें.
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किसी के बारे में बुरा न सोंचे, न ही करें.
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निंदा करने से बचें, गलत, बुरे विचारों से दूर रहें, कलह, द्वेष से बचें.
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व्रत के तीन दिनों तक पलंग पर सोने के बजाय अपना बिस्तर जमीन पर तैयार करें.
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तीन दिनों तक साफ-सुथरे, स्वच्छ कपड़े पहनें करें.
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भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय लोहे, स्टील या प्लास्टिक के पात्र का इस्तेमाल न करें.
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छठ पूजा सूर्यदेव की उपासना और छठी मैया की पूजा का दिन है इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है. यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते हुए सूर्य दोनों को अर्घ्य देने की परंपरा है. छठ पूजा पर एक ओर जहां पारंपरिक रूप से प्रसाद बनाया जाता है, लोकगीत गाये जाते हैं वहीं दूसरी तरफ सारे विधि-विधान भी पारंपरिक रूप से निभाये जाते हैं. शास्त्रों की बात करें तो छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया . इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है. वहीं शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. नवरात्रि पर षष्ठी तिथि के दिन भी षष्ठी माता की ही पूजा की जाती है.